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मेरी आवाज़ ही पहचान हैं .....सुना तो होगा ही यह गीत ।आवाज़ ...हर व्यक्ति की व्यक्तिगत संपत्ति ,उसके व्यक्तित्व का आइना। दो लोगो के चेहरे कभी कभार एक जैसे हो भी लेकिन आवाज़ वह कभी एकदम एक जैसी नही होती । हर किसी की आवाज़ एकदम यूनिक ,अपने आप में मौलिक और सबसे अलग होती हैं ।
आवाज़ का जादू जब छाता हैं तो कोई लता मंगेशकर Lata Mangeshkar संगीत प्रेमियों के ह्रदय पर छा जाती हैं तो कोई अभिताभ बच्चन (Abhitabh Bachchn)
द ग्रेट हीरो बन जाता हैं ।
इस आवाज़ को सवारने ,सजाने के लिए और सहेजने के लिए विश्व वैज्ञानिको ने न जाने कितने प्रयत्न किए और इन्ही प्रयत्नों के फलस्वरूप हुआ रिकॉर्डिंग तकनीक का अविष्कार .रिकॉर्डिंग तकनीक संगीत जगत में एक विलक्ष्ण क्रांति लाई । यह रिकार्डिंग तकनीक की ही देन हैं की हम आज कभी कोई ऍफ़ एम् चेनल पर गीत सुन पाते हैं ,पार्टी में डीजे लगा पाते हैं ,या कार में म्यूजिक प्लेयर लगा कर अपने सफर को सुंदर सांगीतिक बना पाते हैं ।
सन १८७७ में थॉमस अल्बा एडिसन में ध्वनी मुद्रण का आविष्कार किया ,जस्ते के पत्तर की खोखली नलियों पर आवाज़ को खोद कर रखा जा सकने लगा ,और चाहे जब सुना जा सकने लगा । सन १८८७ में अलेकजेंडर ग्राहम बेल ने एडिसन के फोनोंग्राफ में संशोधन किया ,१८८८ में एमिली वर्लिंर ने सपाट डिस्क का आविष्कार किया ,सन
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सन १९०० से १९४७ तक अनेक कम्पनियों ने ग्रामोफोन रिकॉर्ड बनाये .बीसवी शती के पूर्वार्द्ध में ग्रामोफोन रिकार्डिंग पद्धति एक अभूतपूर्व क्रांति लायी ,आप में से बहुत से लोगो ने ग्रामोफोन देखा होगा ,उस पर संगीत सुना भी होगा ,मीरा आदि के भजन की लता जी की ग्रामोफोन रिकॉर्डिंग और अन्य कई लोक संगीत ,शास्त्रीय संगीत के ग्रामोफोन रेकॉर्ड्स बहुत लोकप्रिय हुए ,सर्वप्रथम ग्रामोफोन रिक्रोड्स कम्पनी की शाखा भारत में कोलिकाता में १९०१ में प्रारम्भ हुई । दो या तीन मिनिट के रिकार्डिंग बहुत लाजवाब होते थे जानोफोन, मेगाफोन नामक कम्पनियों के रिकार्ड्स की इस समय खूब बिक्री हुई .गाना शुरू होने से पहले कलाकार अपना नाम बताते थे ।
आवाज़ के मुद्रण का यह सफर ग्रामोफोन से लेकर cd और vcd तक कैसे पहुँचा यह जानने के लिए जारी रहेगा ध्वनी मुद्रण का सफर "ताकि गुम न हो आपकी आवाज़ "
यह आलेख पढने के लिए धन्यवाद
विचित्र वीणा साधिका
राधिका