8/29/2009

दुनिया जिसे कहतें हैं .................

दुनिया जिसे कते हैं जादू काa खिलौना हैं ,मिल जाए तो मिटटी हैं खो जाए तो सोना हैं ..................सच हैं न! इस जादू के खिलौने को समझ पाने के लिए पुरा पुरा जीवन लगा दिया लोगो ने । किसी ने शास्त्र लिखे,किसीने ग्रन्थ रचे . १०-२० पन्नो के आलेख में भी इंसान जो न कह पाए वह एक पंक्ति में गजलकार ने कह दिया ,और कुछ इस तरह से कहाँ की हर मन पर अंकित हो गई यह गजल ।


संगीत से चाहे कितना ही अल्प परिचय क्यों हो!शास्त्रीय संगीत की राग रचना,आलाप,सुरताल का ज्ञान हो, हो,लोक संगीत की सरसता,प्रवाहशीलता में मन बहे बहे,फ़िल्म संगीतकी सुरीली झंकारों पर पाव थिरके थिरके,पर गज़ल वह विधा हैं कि हर किसी को पसंद आती हैं,हर किसी को अपनी सी लगती हैं,हर कोई सुनना पसंद करता हैं,गुनगुनाना पसंदकरता हैं,सच कहे तो कभी यह अपने ही दिल कि बात सुनाती सी,कहती सी लगती हैं इसलिए आज जब कई अन्य सांगीतिक विधाये अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रही हैं,तब गज़ल हर मन छा गई हैं,हर दिल पर राज कर रही हैं


भावपूर्ण,अर्थपूर्ण ,चमत्कारिक भी शेर गजल की शान हैं कल्पनाओ का समुंदर ही मानो गज़ल में समाया होता हैं.शास्त्रीय व् सुगम संगीत इन दोनों के सुंदर तत्वों का मिश्रण गज़ल में होने से वह लोकप्रिय हुई हैं


गज़ल गायन की तीन शैलिया हैं -बनारसी,दिल्ली,व् लखनवी शैली
बनारसी गज़ल प्रौढ़ गज़ल कहलाती हैं,तो दिल्ली की गज़ल अधिक कल्पना युक्त औरविस्तार पूर्ण होती हैं ,लखनवी गज़ल के तो क्या कहने!पुरबी अंग की इस गज़ल में बारीक़-बारीक़ हरकतों और मुर्कियो का बाहुल्य होता हैं जिससे गज़ल गायन और सुंदर हो जाता हैं

आज से लगभग ७० -८० वर्ष पूर्व अफजल हुसैन नगीना इन्होने गज़ल गायन प्रारम्भ किया,उस्ताद बरकत अली खान साहब ने भी शास्त्रीय गायन के साथ गज़ल गायन प्रारम्भ किया , आदरणीय बेगम अख्तर साहिबा ने गज़ल गायन को लोकप्रिय करने में बहुत बड़ा योगदान दिया ,उनके बाद मलिका पुखराज का नाम भी गज़ल गयिकाओ में लिया जाताहैं,गज़ल गायकी को नए रूप में श्री कुंदनलाल सहगल ने पेश किया,उस्ताद तलत महमूद के नाम से शायद ही कोई अपरिचित हैं ,उस्ताद मेहंदी हसन ,श्री जगजीत सिंह जी ने अच्छी अच्छी स्वर संयोजना कर,सुंदर गजलो को अभूतपूर्व ढंग से प्रस्तुत किया

उस्ताद गुलाम हुसैन ने अपनी गजलो में शास्त्रीय संगीत कि सरगमो का समावेश कर एकनए ही अंदाज़ में गज़ल गाई .मिर्जा ग़ालिब साहब कि लिखी गजले तो समुद्र में मिलने वाले सच्चे मोतियों जैसी सुंदर,कलात्मक हैं ,उनकी लिखी "हजारो ख्वाहिशे इसी कि हर ख्वाहिश पे दम निकले बहुत निकले मेरे अरमान फ़िर भी कम निकले" । न जाने कितने लोगो कि पसंदिता गज़ल हैं गज़ल कि लोकप्रियता का अंदाजा हम इस बात से ही लगा सकते हैं कि आज मराठी,हिन्दी,सिन्धी,गुजराती,अंग्रेजी आदि भाषाओ में भी गज़ल का लेखन हो रहा हैं ,

आदरणीय जगजीत सिह जी ने गाई गज़ल "वो कौन है , दुनिया में जिसे , गम नहीं होता
किस घर में खुशी होती है , मातम नहीं होता"कितनी सहजता से जीवन कि व्याख्या कर जाती हैं।
सच हैं गज़ल अपने आप में पूर्ण होती हैं,तभी तो ये बात भी गज़ल में ही कही जा सकती हैं-

लब पे आती हैं दुआ बनके तमन्ना मेरी
ज़िन्दगी शम्मा कि सूरत हो खुदा या मेरी

हो मेरे दम से यूँ ही मेरे वतन कि जीनत
जिस तरह फूल से होती हैं चमन कि जीनत

ज़िन्दगी हो मेरी परवाने कि सूरत या रब
इल्म कि शम्मा से हो मुझको मोहब्बत या रब

हो मेरा काम गरीबों कि हिमायत करना
दर्द मंदों से ज़ईफों से मोहब्बत करना

मेरे अल्लाह बुराई से बचाना मुझको
नेक जो राह हो उस राह पे चलाना मुझको

सुनिए गजल दुनिया जिसे कहतें हैं



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6 comments:

  1. गजल सुनने और गुनगुनाने का शौक सभी रखतें है लेकिन कुछ बारीकियों से कम ही लोग परिचित रहतें हैं.... मेरे साथ इसके साथ एक चीज और जुड़ी थी वो है लखनऊ, दिल्ली और बनारस में रहकर भी गजल की इस विधा से अनभिज्ञ रहना......
    इसीलिए आपको धन्यवाद दूंगा....

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  2. बहुत आभार इस उम्दा प्रस्तुति के लिए.

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  3. बहुत खूब. मेरी पसंदीदा ग़ज़लों में से एक. शुक्रिया.

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  4. umda chayan..chitra aur jagjeet sinh ab to saath gaate bhi nahin ..shukriya.

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