4/06/2010

क्या ये देशद्रोह नहीं ?(सभी भारतियों से एक अपील )

मुंबई का वाशी इलाका ,शाम के सात का समय.कंधे पर गिटार लिए बड़े उदास मन से मैं घर को लौट रही थी ,ऑटो में बैठ कर घर कब पहुंची कुछ पता नहीं ,पुरे समय मेरा दिमाग सोचता रहा ,कभी सारी बातो के लिए मन में दुःख हो रहा था,कभी अपने आप पर गुस्सा आ रहा था .हुआ कुछ यह था की मेरे यहाँ आने वाले शिष्यों के लिए मुझे गिटार खरीदना था ,मेरे घर से वाशी की यह दुकान सबसे पास पड़ती हैं ,सोचा यही से गिटार खरीद लेती हूँ.दुकानदार से पूछा भाई हवाइयन गिटार हैं ,उसने मुझे कुछ ऐसी नज़र से देखा जैसे मैंने कोई पुरातत्व संग्रहालय में रखी जाने वाली सातसौ साल पुरानी चीज़ मांगली हो .बोला अरे दीदी आप क्या बात कर रही हो ,आजकल ये गिटार बिकती ही कहाँ  हैं ,कोई नहीं बजाता,ये सब तो पुरानी बातें हैं ,मेरे यहाँ वेस्टर्न गिटार इलेक्ट्रोनिक गिटार सब हैं आप वह ले जाईये ,मैंने कहाँ नहीं कोई बात नहीं मुझे हवाइयन  गिटार ही चाहिए .बोला आप उसे बजा कर क्या करोगी ,बेकार हैं ,कोई नहीं सुनता ,सब तो यही म्यूजिक सुनते हैं .आप क्यों सीखना चाहती हो ?कुछ नहीं मिलेगा इंडियन म्यूजिक बजाकर सब यही वेस्टर्न ही पसंद करते हैं .

उस समय न जाने क्यों उससे कुछ बात करने का मन नहीं हुआ .लेकिन बाद में मुझे स्वयं पर ही बहुत गुस्सा आया,दुसरे दिन फिर गिटार खरीदने मैं उसी दुकान पर गयी ,स्वभावत: उस दुकानदार ने वही सब बातें बताई ,पर फिर मैंने उसे अपना परिचय दिया ,उसे बताया की मैं अपने लिए नहीं अपने शिष्यों के लिए गिटार खरीद रही हूँ ,और अगर उसे भारतीय संगीत और उससे जुडी परम्परा ,लोकप्रियता और महानता के बारे में कुछ नहीं पता तो उसे ऐसी बातें करके भारतीय संगीत का अपमान नहीं करना चाहिए .

कल मेरे एक शिष्य के साथ फिर कुछ ऐसा ही हुआ ,वह गया यहाँ के एक बड़े से मॉल में गिटार खरीदने ,गिटार चेक करने के लिए उसने उसे इंडियन स्टाइल से बजाना शुरू किया ,लेकिन दूकानदार ने कहाँ अरे ये तो गलत तरीका हैं ,यह तो सितार बजाने का तरीका हैं ,गिटार तो कभी भी ऐसे नहीं बजता ,अपना टाइम वेस्ट मत करो,वेस्टर्न म्यूजिक सीखो ,सब वही सुनते हैं .ऐसे म्यूजिक को कोई नहीं सुनता ,जबसे ये बात मेरे शिष्य ने मुझे बताई हैं ,तबसे बड़ा गुस्सा आ रहा हैं .

आप जानते हैं मेरे पास हर दिन कम से कम तीन से चार फोन आते हैं ,हर बार वही प्रश्न ,क्या आप वेस्टर्न गिटार सिखाती हैं ?हमें सीखनी हैं .हर बार जब मैं यह पूछती हूँ की आपको वेस्टर्न गिटार ही क्यों सीखनी हैं तो उत्तर मिलता हैं क्योकि सब वही बजाते हैं .

मुद्दा यह नहीं हैं की लोग वेस्टर्न म्यूजिक सीख रहे हैं,उससे भी बढ़कर मुद्दे की बात यह हैं की वो क्यों सीख रहे हैं ?क्या भारतीय संगीत इतना बेकार रहा हैं ,या उसे सीखना वाकई बोरिंग और अत्यंत कठिन हैं ,या उसे सिखने में वाकई इतना ज्यादा समय देना पड़ता हैं जो आजकल देना संभव नहीं हैं .

सच यह हैं की नयी पीढ़ी को भारतीय संगीत क्या हैं यह पता ही नहीं हैं ,बॉलीवुड सिनेमा में पहले जो गाने रागों पर आधारित होते थे,अब गानों में हीरो वेस्टर्न गिटार हाथ में ले कोई इंडियन गाना गाते हैं .मॉल्स में जहाँ तह वेस्टर्न म्यूजिक बजता हैं ,वही दुकानों में बिकता हैं .पहले प्लेनेटेम में जहाँ भारतीय संगीत का विभाग सुंदर केसेट्स और सिड़ीस से भरा रहता था ,वहाँ अब एक दो चुनिंदा सिड़ीस ही नज़र आती हैं .

हम भारतीय हैं ,बड़े आनंद से भारत में रहते हैं ,देश की चुनाव प्रक्रिया में वोट दे दिया तो दिया.कभी देश की दुर्वय्वस्था पर बड़ा सा लेक्चर झाड देते हैं .लेकिन अपने देश की संस्कृति की रक्षा के लिए हम कितने सजग हैं .हम सुबह उठते हैं ,काम पर जाते हैं खाते पीते सो जाते हैं.जो लोग भारतीय संगीत की हानी परोक्ष अपरोक्ष रूप से कर रहे हैं ,उनका विरोध क्या हम कर रहे हैं ?जो लोग भारतीय संगीत के बारे में ऐसी भ्रांतियां फैला रहे हैं ,जो लोग मिडिया और अन्य संचार माध्यमो के द्वारा संभव होकर भी भारतीय संगीत के लिए कुछ नहीं करके वेस्टर्न की धुन बजा बजा कर हमारे युवाओ को भ्रमित कर रहे हैं उनके बारे में हमने क्या सोचा हैं ?क्या ये देश द्रोह नहीं हैं ?हमारे संगीत मुनिजनो ने संगीत के प्रचार प्रसार के लिए अपनी सारी उम्र लगा दी और हम ?

अगर आपको लगता हैं की यह गलत हैं ,आप भारतीय संगीत को पसंद करते हैं ,जाने अनजाने गुनगुनाते हैं ,फिर वह लोक संगीत हो या उपशास्त्रीय ,ग़ज़ल भजन,गीत ,शास्त्रीय कुछ भी ,तो आप वीणापाणी की भारतीय संगीत के प्रचार की  मुहीम का हिस्सा बन सकते हैं.अपना प्रिय संगीत ,आपके आसपास कितने लोग भारतीय संगीत सीख रहे हैं ,इसकी जानकारी ,जो सीख नहीं रहे वो क्यों नहीं सीख रहे इसकी जानकारी ,अगर आपका बच्चा स्कूल में सीख रहा हैं तो वह कौनसा संगीत सीख रहा हैं ,आपके आसपास कौन कौनसी संगीत संस्थाएं संगीत शिक्षा दे रही हैं ,और वह किस तरीके से और क्या सीख रही हैं ,यह सब बातें मुझे लिखकर भेज सकते हैं ,आपके नाम के साथ वह में अपने ब्लॉग पर प्रकाशित करुँगी ,वीणापाणी का एक उद्देश्य हैं भारतीय संगीत का प्रचार .मुझे उसके लिए हर भारतीय की मदद चाहिए .एक भारतीय होने के नाते मैं भारतीय संगीत को नयी पीढ़ी से दूर होते हुए नहीं देख सकती .भरोसा हैं की आप सब भी नहीं देख सकते .इसलिए मुझे अपने विचार लिख भेजिए .अपने बच्चो को भारतीय संगीत के बारे में जानकारी दे.अगर आप पत्रकार हैं तो कृपया अपने लेख का विषय इस समस्या को बनाये .आप सभी श्रेष्ट ब्लोगर हैं कृपया ब्लॉग जगत में इस गंभीर विषय में चिंतन करे इस पर लिखे . 

भारतीय संगीत साधिका 
डॉ. राधिका 

22 comments:

  1. राधिका जी, जिस तरह के व्यवहार से आप आहत हुई हैं। हमें भी अनेक बार होना पड़ा है। लेकिन ये सब बाजार के लोग हैं जिस चीज में अधिक मुनाफा होता है उसे बेचते हैं और उसी का प्रचार करते हैं। वस्तुतः बात यह है कि हमें उस वेस्टर्न संगीत से मुकाबला करना होगा और अपने संगीत को श्रेष्ठ सिद्ध करना होगा। अपने शास्त्रीय संगीत को हमारे लोकप्रिय लोक संगीत के साथ जोड़ कर ऐसा किया जा सकता है। तभी शास्त्रीय संगीत जनता में पैठ बना सकेगा। इस के लिए संगीत सेवकों और संगीत प्रेमियों को मिल कर काम करना होगा।

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  2. एकदम नवीन जानकारी के लिए आभार। आपने अपने ब्‍लाग पर टेक्‍स के पीछे गणेशजी लगा रखे हैं, अच्‍छे लग रहे हैं लेकिन पढ़ने में कठिनाई हो रही है। आपने प्रश्‍न किया है तो हम भी जानकारी लेंगे कि क्‍या वास्‍तव में ही सभी विदेशी संगीत ही सीख रहे हैं क्‍या?

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  3. आपका आहत होना जायज़ है...हमारी पीढ़ी के लोग अभी भी भारतीय संगीत से चिपके हुए हैं...सांस्कृतिक कार्यक्रमों में जाते हैं...भाव विभोर होते हैं...आज कल प्लास्टिक के फूलों का चलन है असली फूलों के लिए न दिल में जगह है ना ज़मीन पर...क्या करें...

    नीरज

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  4. धन्यवाद द्विवेदी जी ,नीरज जी ,अजित जी,आपने लेख पढ़ा और अपने बहुमूल्य मतों से मुझे अवगत कराया ,आदरणीय द्विवेदी जी बात सिर्फ बाज़ार तक सिमित नहीं हैं ,बात घर घर की हैं ,बाज़ार में यह इसलिए ही हो रहा हैं क्योकि ज्यादा घरो की मांग यह बनती जा रही हैं हम सब इतना तो कर ही सकते हैं की अपने अपने घर में भारतीय संगीत का थोडा बहुत परिचय अपने घर के सदस्यों को दे ,और उन्हें इसे सिखने के लिए प्रेरित करे .आपने कहा की संगीत सेवको और संगीतज्ञो को मिल कर काम करना होगा यह बहुत ही सही हैं .

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  5. राधिका जी आप संगीत की ज्ञानी हैं । वेस्‍टर्न और इंडियन दोनों ही तरीक़ों से गिटार यहां सिखाये जाते हैं । दरअसल पंडित विश्‍वमोहन भट्ट की वजह से भी कुछ युवाओं का ध्‍यान इस ओर आकर्षित हुआ है पर कटु सत्‍य यही है कि फिल्‍मी-स्‍टाइल की वजह से बहुधा लोगों का ध्‍यान गिटार की ओर जाता है । और बच्‍चे वही सीखना चाहते हैं ।

    पर जहां तक गिटार ख़रीदने की बात है तो आपको बांद्रा में भार्गव म्‍यूजिक जाना चाहिए था । http://www.bhargavasmusik.com/

    हो सकता है आपको इस शॉप का पता हो ।

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  6. हम सबको मिलकर बौद्धिक गुलाम भारतीयों को इस गुलामी की मनोदशा से बाहर निकालना है

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  7. सब बाजारवाद का असर है

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  8. सर्वप्रथम डा. राधिका जी की प्रशंशा करना चाहूँगा की वे सही मायने में सार्थक हिंदी ब्लोगरी कर रही हैं.

    आप राष्ट्रीयता का अलख जगाये रखिये, समाधान भी जरुर निकलेगा. हर चीज़ में वेस्टर्न की प्रशंशा करना हमारी गुलामी का परिचायक है. संस्कृति की रक्षा करना ही हमारा धर्म है. मैंने भी अभियान जारी रखा है.
    http://myblogistan.wordpress.com/

    आपकी बाते मानते हुए फिलहाल यही कहूँगा, शास्त्रीय संगीत की प्रतिष्ठा के लिए, मैं जो भी हो, जन जागरण जरुर करूँगा. आप तक सूचना जरुर भेजूंगा.

    धन्यवाद!

    -सुलभ

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  9. क्या कहा जाय...आज व्यक्ति को संगीत में शांति नहीं बल्कि उन्माद चाहिए...जो उसे पर्याप्त मात्रा में पाश्चात्य संगीत से ही मिलता है.
    संगीत ही क्या, देखो न,अपने ही देश में हिन्दी भाषा कितनी तिरष्कृत है...अपनी ओर से तो मैं यही करती हूँ कि चाहे सामने वाला अंगरेजी में बात करे,पर यदि वह भारतीय है तो मैं उससे हिन्दी में ही बात करती हूँ (कर्मक्षेत्र में भी) भले ही वह लाख मुझे जाहिल गंवार समझे...

    चूँकि हम छोटे शहर में रहते हैं,इसलिए यहाँ यह स्थिति अभीतक नहीं बनी है.. यहाँ अभी भी संगीत सीखने के अभिलाषी बहुसंख्यक लोग शास्त्रीय संगीत सीखने में अभिरुचि रखते हैं...

    बड़ा पुनीत कार्य कर रही हो तुम...ईश्वर तुम्हारे प्रयास को सार्थकता प्रदान करें...मेरी शुभकामनाएं तुम्हारे साथ हैं...

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  10. प्रिय राधिका, आपका पत्र पढ़कर मुझे बहुत ख़ुशी हुई. आपकी हर कोशिश पर मेरी शुभकामनायें. कलाम

    u realy deserve it.

    I hope he same

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  11. राधिका जी,
    बहुत ख़ुशी हुई आपके ब्लॉग पर आकर ..मैं भी संगीत साधिका ही हूँ...हिन्दुस्तानी संगीत मेरा जीवन है...
    जहां तक गिटार की लोकप्रियता का प्रश्न है....आज का ज़माना स्टाइल का है...बच्चे ग्लैमर की ओर ज्यादा आकृष्ट होते हैं...गिटार लेकर स्टेज पर इधर से उधर नाचते हुए गाना गाना उनको ज्यादा भाता है....दूसरी बात पश्चिम का प्रभाव तो है ही...गिटार बजाना कूल माना जाता है...
    और यह चिंता का विषय तो है ही...और आपकी चिंता भी जायज़ है....आप हिन्दुस्तानी संगीत की एक मानी हुई हस्ती हैं...इमानदारी से अपना काम कर रही हैं...ऐसे ही करते रहिये...हमारी शुभकामना आपके साथ है..

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  12. मै दिल्ली के पास गाज़ियाबाद शहर में रहता हूँ ... इसके आस पास किसी से संगीत का नाम लो या कोई चर्चा करो तो ऐसे देखते हैं जैसे किसी दूसरे ग्रह से आया हूँ .... मुझे तो लगता है कि लोग पैसों की अंधी दौड़ में संगीत और कला दोनों से दूर होते जा रहे हैं ... ऐसे में आपका ऐसा धनात्मक प्रयास सराहनीय है
    बहुत शुभकामनाएं

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  13. हमारे अपने भारतीय शास्त्रीय संगीत के विषय में
    जानकारी पा कर प्रसन्नता हुई
    कुछ लोग अभी भी ....
    संगीत के बाज़ार से हट कर
    अपनी समृद्ध परम्पराओं से जुड़े हुए हैं
    गर्व की बात है

    अभिवादन स्वीकारें .

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  14. समाज में बदलते मूल्यों से जूझना आसान नहीं. समग्र चेतना के उत्थान की आवश्यकता होती है इसमें किन्तु इसके लिए समय का अभाव तो होता ही है, प्रयासों की इमानदारी भी कहीं न कहीं पैठ खोती दिखाई देती है, इस दिशा में. परिणाम हम सबके सामने है.

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  15. आपका ब्लॉग देखा बहुत ही अच्छा लगा।

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  16. राधिकाजी आप का ब्लॉग पढ़कर लगा कि आप सच्ची संगीत-साधिका हैं. बेबाक टिप्प्णी के लिए आप बधाई की पात्र हैं.यह सब सोचते तो बहुत से लोग हैं,लेकिन अपनी बात को इतनी मजबूती से कहने की हिम्मत बहुत कम लोग कर पाते हैं.मैं आपकी बात से पूरी तरह सहमत हूँ,क़्य़ोंकि मैं संगीत में तो कुछ ज़्यादा नहीं जानती हूँ,लेकिन भारतीय संगीत से मैं बचपन से ही जुड़ी रही हूँ. मेरा बचपन संगीत के वातावरण में ही बीता है. डॉ.लक्ष्मीनारायण गर्ग मेरे सबसे बड़े भाई हैं,जो संगीत पत्रिका के प्रधान संपादक हैं और मेरा छोटा भाई डॉ. मुकेश गर्ग 'संगीत'पत्रिका का संपादक है.अतः भारतीय संगीत से मेरा बचपन से ही गहरा परिचय रहा है.ऐसा लग रहा है, जैसे आपने मेरे मन की बात कह दी हो. मैं कोशिश करूँगी कि इस बात को लोगों को समझा सकूँ.लेकिन एक बात मेरी समझ में नहीं आ रही है कि हमारे देश के बड़े-बड़े स्कूलों में भारतीय संगीत सिखाया ही नहीं जा रहा है.मेरी साढ़े पाँच साल की धेवती चेन्नई के जिस स्कूल में पढ़ रही है,वहाँ भारतीय संगीत सिखाया ही नहीं जाता है.वहाँ तो बस वैस्टर्न म्यूजिक ही सिखाया जाता है.ऐसी स्थिति में क्या करना चाहिए, कृपया बताने का कष्ट करें.आपकी विचित्र वीणा को सुनकर मन गदगद हो गया. इतनी सुन्दर प्रस्तुति के लिए आपको ढ़ेर सारी शुभ कामनाएँ.

    डॉ. मीना अग्रवाल

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  17. नमस्कार मीना जी

    आपने जो मेरी हौसला अफजाई की हैं उसके लिए धन्यवाद .आदरणीय लक्ष्मीनारायण के ऋणी समस्त भारतीय संगीत साधक हैं.आपकी टिप्पणी के लिए आभार .

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  18. आपकी आहत भावनाओं से मैं भी आहत हूं.

    यहां जहां फ़ास्ट फ़ूड का ज़माना है, वहां श्रीखंड या पुरणपोळी से नई पीढी बाबस्ता नही हो पा रही है.

    मैं भी प्रयास करता हूं , जो भी नये स्वर साधक मेरे मार्गदर्शन के लिये आते हैं, उन्हे मैं शास्त्रीय संगीत सीखने की सलाह देता हूं. मैं किसी कारण नहीं सीख पाया मगर चाहूंगा कि जब भी समय मिलेगा, सीखूंगा.

    आपके विचित्र वीणा वादन अद्वितीय है. जितना भी समझ सका, ये बात उल्लेखनीय है कि दोनों प्रकार की मींड पर आपका अधिकार है, खींच की और स्लाईड की.

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  19. It's really unfortunate. But many of us are experiencing this.

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  20. सही कहाँ आपने हम लोग तो जरा जरा सी बातों में स्पेशलिस्ट के पास भागते हैं.वैसे मुझे आयुर्वेद पर बहुत विश्वास हैं .आयुर्वेद का कोई तोड़ नही .आपकी पोस्ट पसंद आई /.
    वीणा साधिका

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  21. sangeet ke bare mai mujhe koi jyada jankari to nahi hai parntu yah hakeekat hai ki chahe vah sangeet ko lekar pashchimi hamla ho yaa velentain day friendship day ke nam par pashchimi andhanukaran ho isliye hame khud sachet hona hoga.

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  22. अब आपके बीच आ चूका है ब्लॉग जगत का नया अवतार www.apnivani.com
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