आज वीणापाणी में सुनिए मेरे पसंद के राग :राग चारुकेशी और राग किरवाणी
राग चारुकेशी और राग किरवाणी .दोनों ही राग दक्षिणात्य संगीत पद्धति (South Indian style of Indian Classical Music )से लिए गए हैं .अर्थात दोनों राग ऐसे हैं जो दक्षिण में खूब गाये बजाये जाते हैं ,हिन्दुस्तानी या उत्तर भारतीय पद्धति में उनका समावेश किया गया हैं .दोनों ही राग बड़े सुंदर हैं दक्षिणात्य संगीत पद्धति में रागों की समय वयवस्था को उतना महत्व नही है जितना की उत्तर भारतीय पद्धति में हैं और इलसिए सबसे अच्छी बात यह हैं की ये सर्वकालिक माने जाते हैं .आप सभी जानते हैं की हमारी संगीत पद्धति में सभी रागों के गायन वादन का अपना एक समय निश्चित हैं .वैसे माना जाता हैं की चारुकेशी का समय मध्यरात्रि हैं और किरवाणी का सायंकाल परंतु दोनों राग किसी भी समय गाये बजाये जा सकते हैं .समय का कोई बंधन नही .ये राग इतने सरल और सुमधुर हैं की इनमे कलाकार स्वरों की मनचाही कल्पना कर सकता हैं ,अन्य रागों की तरह इनमे कोई कड़क बंधन भी नही हैं ,स्वरों के पंखो पर आसीन कलाकार राग व्योम में स्वकल्पना के कई रंग बिखरा सकता हैं .
राग चारुकेशी दक्षिणात्य पद्धति के चारुकेशी मेल से ही उत्पन्न हैं ,इस राग की सम्पूर्ण जाती का राग हैं अर्थात इसमें सभी स्वर लगते हैं ध,नि कोमल हैं बाकी स्वर शुद्ध हैं .प् वादी सा संवादी हैं .
पंडित देबाशीष भट्टाचार्य राग चारुकेशी :
राग किरवानी :किरवानी मेल से ही उत्पन्न .ग और ध कोमल बाकि स्वर शुद्ध .वादी सा संवादी प ,जाती सम्पूर्ण
पंडित रविशंकर :राग किरवानी
पंडित शिवकुमार शर्मा :राग किरवाणी
http://old.musicindiaonline.com/p/x/vUfxSKwT1t.As1NMvHdW/