आज बहुत दिनों बाद इस ब्लॉग पर कुछ लिखने जा रही हूँ,कंप्यूटर की समस्या और समय की कमी इन दोनों वजहों से पिछले कई दिनों से इस ब्लॉग पर कुछ नही लिख सकी । कुछ दिनों पूर्व रागों के परिचय से संबंधित एक पोस्ट पर आदरणीय तरुण जी ने पूछा था कि "राधिका जी आपको नही लगता कि आजकल शास्त्रीय रागों पर आधारित फिल्मी गाने बनना बंद हो गए हैं ."
अब जवाब यह हैं कि मुझे सिर्फ़ इतना ही नही लगता कि शास्त्रीय रागों पर आधारित गाने बनना बंद हो गए हैं ,बल्कि मुझे लगता हैं गीत बनना ही बंद हो गए हैं । संगीत किसे कहेंगे हम ,वह जो जिसमें मधुर स्वर ,उपयुक्त लय ,सुंदर बोल हो और उसे जिसे उसी सुन्दरता से गाया गया हो । आज जो गाने बन रहे हैं उसमे से १० भी नही ४ या ५ % ही ऐसे हैं जिन्हें संगीत कि विधा में रखा जा सकता हैं .बाकि जो हैं वो तो पता नही संगीत के नाम पर क्या हैं ?
आज से दो तिन दशक पहले फिल्मी गीत शास्त्रीय संगीत पर आधारित ही नही होते थे बल्कि बहुत सुंदर रचे हुए ,शब्दों और स्वरों से सजाये हुए ,और गाये हुए होते थे , पर आज न शब्दों का पता हैं न सुर का ,गाना तो हर कोई गा रहा हैं ,क्या करना हैं ,एक सुर पकड़ के कविता पाठ ही तो करना हैं ।
संगीत कला जिसे दैवीय, परालौकिक कहा गया हैं ,उसे सिखने में ,समझने में बरसो लग जातेहैं ,कंठ से निकलने वाली आवाज़, हर एक सुर पर गायक को बरसो मेहनत करनी पड़ती हैं ,गले की कितनी बारीकियों पर ध्यान देना पड़ता हैं ,तब कही जाकर एक मधुर गीत निकलता हैं ।
इसी तरह कविता मात्र शब्दों की जोड़तोड़ नही हैं ,नही मेरे मत से शब्दों का प्रवाह मात्र हैं ,कविता भावो और विचारो की सरिता हैं जो शब्दों के किनारों में बंध कर कल्पनारूपी हवा के झोकों में धीमे धीमे झूलती हुई ह्रदय के गीतों को गुंजरित करती हुई बहती चली जाती हैं ।
सृष्टि में सर्वत्र एक लय हैं ,लय जो जीवन को गति देती हैं, उल्लास देती हैं । पर जब यही लय सुर और शब्द पर इतनी हावी हो जाती हैं की सुर और शब्द उसके सामने बौने नज़र आते हैं और वह विशालकाय दानवी सी तो संगीत संगीत नही लगता ।
आजकल यही सब हो रहा हैं । मैं नही कहती की हर गीत शास्त्रीय रागों में निबद्ध ही होना चाहिए ,ऐसा हुआ तो इससे अच्छी कोई बात नही हो सकती ,पर कम से कम संगीत,संगीत तो लगना चाहिए ,चाहे वह किसी भी रागों में निबद्ध हो या लोक संगीत की धुनों पर थिरकता हुआ हो ।
वस्तुत: आज संगीत कहीं खो गया हैं , जो भी असांगितिक संगीत हैं ,वह श्रेष्ट संगीत के नाम पर इतना बिक रहा हैं की नई पीढी , युवा वर्ग ,बच्चे यह समझ ही नही पा रहे की संगीत क्या हैं ?शास्त्रीय संगीत को आ ऊ कहके उसका मजाक बनाया जा रहा हैं ,उसे सिखने समझने वालो को पुरा जन्म उस पर कुर्बान करने के बाद भी बहुत कम नाम ,धन और प्रशंसा मिलती हैं ,दूसरी तरफ़ चलती फिरती धुनें बनाने वाले और उसे गाने वाले रातों रात महान गायक संगीतज्ञों की सूचीं में आ जाते हैं । लगता हैं की संगीत कहीं खो गया हैं ।
बहुत अच्छी तहरीर है...
ReplyDeleteबिल्कुल सही बात है । आज संगीत में बस केवल धूमधड़का ही बजता है । कितने गीत कब आये और चले गये पता ही नहीं चलता है । सदाबहार गीत बनते ही नहीं। ऐसे लोगों की कमी है जो कि ऐसा लिख सके ।
ReplyDeleteआज के गाने तो ऐसे लगते हैं जैसे पास में ही कहीं जोरों से मिर्च कूटी जा रही हो।
ReplyDeleteअजी आज का संगीत तो ऎसा लगता है कि पडोसी के घर लडाई हो रही हो, ओर बीबी दे धना धन बरतन फ़ेक रही हो, बस ऎसा ही हे कुछ
ReplyDeleteधन्यवाद
इसी लिए तो आज के गाने ज्यादा याद नही रह पाते है । बस २-४ दिन मे भूल जाते है।
ReplyDeleteक्वालिटी संगीत पर ज़्यादा से ज़्यादा ब्लाग आ रहे हैं, ये बहुत अच्छी बात है।
ReplyDeleteHumne to socha tha aapne humari tippani pari nahi kyonki woh har blog me sabse end me hoti hai. Achha sangeet nahi banta ye such hai lekin sangeet ko sire se nakar bhi nahi sakte. Mujhe sastriya sangeet ka to gyan nahi lekin kaano ko sundar lagne wale sangeet ka thora bahut hai isliye mene bhi shuru kiya hai Geet Gaata chal, Meri sawal ka javab dene ke liye shurkiya.
ReplyDeleteumeed hai ki badlav key saath hi sahi achchey sangeet key din aayengey.
ReplyDeletemaine apney blog per ek lekh -kitni ladaiyein ladeingi ladkiyan-likha hai.aapki rai mere liye badi mahatavpurn hogi.
http://www.ashokvichar.blogspot.com
क्षमा चाहूंगा राधिकाजी,
ReplyDeleteअच्छे गीत बनना बिल्कुल बंद हो गये हों ऐसा भी नहीं है। कई बार बीच बीच में बढ़िया गीत सुनाई देते रहते हैं, हाँ संभव है कि वे शास्त्रीय रागों पर आधारित ना होते हों, पर कर्णप्रिय तो होते ही हैं, और वह हर संगीत अच्छा है जो कर्णप्रिय हो।
कोशिश करूंगा कि उन गीतों की सूचि महफिल में रख सकूं।
सूअर कीचड में मुँह मारते हैं.
ReplyDeleteहंस तो मोती ही चुगता है ना !!
अपनी-अपनी फितरत है !!
कितना सही लिखा है आपने कि आज के गीतों मे से संगीत लुप्त हो गया है । जो है वह सिंथेटिक है प्लास्टिक की तरह ।
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