तानसेन के साथ कानसेनो का रिश्ता काफी पुराना हैं ,अगर कानसेन नही होते तो तानसेन भी नही होते ,कानसेन चाहे उस युग में रहे हो,जब स्वयं संगीत सम्राट तानसेन दीपक गाकर सम्राट अकबर के दरबार में अग्नि प्रज्वलित करते थे ,या इस युग में जब बड़ी बड़ी रोशनियों की चमक में ,बड़े से पंडाल में ,बडे बडे गायकों वादकों की सुर सिद्धि की दमक में कालजयी संगीतग्य तानसेन की स्मृति में उन्ही की समाधी पर तानसेन समारोह हो रहा हो । कानसेनो ने संगीत का साथ नही छोड़ा,चाहे कडकडाती ठण्ड हो,या संगीत सभाओ के कारण तीन रातो का सतत जागरण ,वे आते रहे और बडे -छोटे कलाकारों का मनोबल बढाते रहे । उन्ही के दिए मनोबल के हर युग में तानसेन जैसी युग गायक वादक होते रहे ,होते रहेंगे ।
बचपन मेरा इसी तानसेन संगीत समारोह की स्वर लहरिया संजोते हुए गुजरा , शायद ही अब तक कोई ऐसा साल गया हो जब मैं इस समारोह में कलाकारों का गायन वादन सुनने नही पहुँची हूँ और फ़िर इस साल तो पुनः १९८९ के बाद एक बार फ़िर मेरे पिताजी और गुरूजी पंडित श्रीराम उमडेकर का सितार वादन तानसेन में था ,बस क्या था ,पहुँच गई ग्वालियर । वही हर साल सा उत्साह वहां तानसेन के लिए ,तीन दिन स्कूल कॉलेज और ओफिसेस की छुट्टी । पहले हर बार तानसेन अलंकरण दिया जाता हैं किसी महान गायक वादक को,इस बार यह वर्षो पुरानी परम्परा टूटी ,कुछ कारणों से इस बार तानसेन सम्मान नही दिया जा सका , डीडी भारती पर इस समारोह का लाइव टेलीकास्ट भी नही दिखाया जा सका ,इससे देश विदेश के कई श्रोता यह समारोह सुनने से वंचित रह गए । किंतु समारोह स्थल पर पिछले कुछ वर्षो से कम नज़र आती कानसेनो की भीड़ इस बार बहुत बढ़ गई । साथ ही बढ़ गया कलाकारों का मनोबल पहली सभा में पंडित अजय चक्रवाती की सुपुत्री कौशिकी चक्रवती का गायन और पिताजी का सितार वादन हुआ ,जिसे कानसेनो ने खूब सराहा ,पंडित हरिप्रसाद जी का बासुरी वादन तो श्रोताओ पर इस कदर छाया की श्रोता चाहते थे की वो बजाते रहे और वे सुनते ही रहे ,श्री पुर्वायन चटर्जी ने सितार वाद्य में ही आमूलचूल परिवर्तन कर अपनी उन्नत वादन शैली को कानसेनो के समक्ष प्रस्तुत किया तो बिहाग की स्वर संध्या में कानसेन झूम उठे,इनके आलावा भी कई कलाकारों ने अपने गायन वादन से सुर और साजो का अनूठा समां बांधा । इस तरह कुछ कमियों के बावजूद ही सही इस बार भी कानसेनो की कृपा से ही तानसेन संगीत समारोह सफलता के साथ संपन्न हुआ ।
इति
वीणा साधिका
राधिका
अच्छी प्रविष्टि, धन्यवाद.
ReplyDeleteराधिका जी, काश आज भी वैसे गायक होते जो अपने रागों से दीपक जला सकते और राग मल्हार से बारिश करा पाते... आज ऐसा क्यों नही पता नही.. पर होता तो यकीन करने में आसानी होती. खैर .. एक गुजारिश है की टिपण्णी पोस्ट करने का लिंक कलर बदल दीजिये हरे में बिल्कुल दिखाई नही देता है. इसे आप लेआउट में जाकर फोंट्स एंड कलर से बदल सकती है.. तब अच्छा रहेगा.. धन्यवाद.
ReplyDeleteEverything Under The Sun
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ReplyDeleteबहुत बढिया लिखा । तानसेन एवं कानसेन के साथ एक आैर है नान सैनं। अगली बार इसका जिर्क जरूर करें।
ReplyDeleteआभार आपका राधिका जी
ReplyDeleteसँगीत की सूक्ष्म सूझ बुझ जो आपने विरासत मेँ पाई है उसी से जुडी अन्य बातेँ सुनवाते रहीयेगा
इस वर्ष टीवी से ये क्रार्यक्रम क्योँ प्रसारित नहीँ किया गया ?
क्या कारण था ?
- लावण्या
bahut achcha likha hai-
ReplyDeletehttp://www.ashokvichar.blogspot.com
इस सुंदर जानकारी के लिये ...
ReplyDeleteधन्यवाद
हम है बांलग सेन
ऐसे समारोह ही हमारी धरोहर को बचा रहे हैं।
ReplyDeletebahut rochak
ReplyDeleteरोचक समीक्षा, धन्यवाद!
ReplyDeleteसही कहा राधिका जी पर जैसा की आपने कहा उन कानसेन में आप भी शामिल थी ,अतः कलाकारों का उत्साह बढ़ाने में आपका भी हाथ रहा अतः आपको भी धन्यवाद .........
ReplyDeleteराधिकाजी,
ReplyDeleteमै एक कानसेन, आपके गानसेवाको प्रणाम करता हू. शास्त्रिय संगीतमे अच्छे लोग उभरकर आ रहे है, झी मराठीपर आजकल little Champs कार्यक्रम चल रहा है. नन्हे बच्चोंकी संगीत सेवा देखकर मन भौचंक्का हो जाता है. आप कार्यक्रम जरूर देखे सोमवार और मंगळवार शाम ९.३० बजे
radhika ji,badhayee ke liye dhnywaad.
ReplyDeletepahli baar aap ke blog par aana hua..bahut hi achcha lga.
main ne sangeet nahin sikha lekin sangeet hamesha priy hai.
aap ke blog par dobara aayungi....