कविता ...कभी न कभी हम सब कविता लिखते हैं ,पढ़ते हैं सुनते हैं ...कविता के विषय कई बार वही पर हर बार कविता अलग ..कभी प्रकृति सुन्दरता पर कविता कभी हाले दिल पर कविता ,कभी बढती महंगाई पर कविता ,तो कभी भक्त ने की किसी भगवान पर रची कविता ..कवी जितने कवितायेँ उतनी ,विषय चाहे जितने पर हर विषय पर हजारो लाखो कवितायेँ ...
अब आप सोचेंगे मैं क्यों कविता के बारे में इतना कुछ कही जा रही हूँ .मामला यह हैं की कविता करना एक कला हैं जैसे की गायन या वादन और जहाँ कला की बात आती हैं वहां उनका पारस्परिक सम्बन्ध भी होता हैं जैसा की कविता और राग की प्रस्तुति में ...
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मैं बताती हूँ ..
जैसे की राग के बारे में पहले भी मैंने बताया हैं ,जिसमे स्वर वर्ण हो वह राग,परंतु .....यह हुई पुस्तकी परिभाषा ,राग क्या होता हैं यह सिर्फ एक कलाकार समझ पाता हैं और एक श्रोता जो राग को सुनता हैं .राग वह हैं कुछ निश्चित स्वरों और नियमो में बंधे हुए भी संगीत का पूरा विश्व आपके सामने रख दे ,राग वह हैं शास्त्र सज्जित हो लेकिन संगीत का शास्त्र न जानने वालो के हृदयों को छू ले ..राग वह हैं जिसका मूल स्वरूप हमेशा वही हो वही गिने हुए शुद्ध कोमल स्वर वही निति वही नियम कई बार वही बंदिश पर हर बार उसका रूप अलग ,हर कलाकार की उसी राग में कृति अलग ,उसकी भव्यता उसकी शोभा सज्जा उसकी दिव्यता अलग ,होता यह हैं की जब कोई कलाकार किसी राग को गाता हैं तो वह महज उसके स्वर नहीं गाता उसमे निबद् बंदिश नहीं गाता वह गाता हैं उन स्वरों में अपनी कल्पना ,वह गाता हैं उस राग के स्वरों में अपनी आत्मा का गीत ,वह राग गाता हैं और भूल जाता हैं बाकि सारी दुनिया ,भूल जाता हैं की वह कौन हैं क्या हैं,यह हैं हमारा रागदारी संगीत ,समृद्ध सुन्दर और सतत नाविन्य पूर्ण ..
जैसे की राग के बारे में पहले भी मैंने बताया हैं ,जिसमे स्वर वर्ण हो वह राग,परंतु .....यह हुई पुस्तकी परिभाषा ,राग क्या होता हैं यह सिर्फ एक कलाकार समझ पाता हैं और एक श्रोता जो राग को सुनता हैं .राग वह हैं कुछ निश्चित स्वरों और नियमो में बंधे हुए भी संगीत का पूरा विश्व आपके सामने रख दे ,राग वह हैं शास्त्र सज्जित हो लेकिन संगीत का शास्त्र न जानने वालो के हृदयों को छू ले ..राग वह हैं जिसका मूल स्वरूप हमेशा वही हो वही गिने हुए शुद्ध कोमल स्वर वही निति वही नियम कई बार वही बंदिश पर हर बार उसका रूप अलग ,हर कलाकार की उसी राग में कृति अलग ,उसकी भव्यता उसकी शोभा सज्जा उसकी दिव्यता अलग ,होता यह हैं की जब कोई कलाकार किसी राग को गाता हैं तो वह महज उसके स्वर नहीं गाता उसमे निबद् बंदिश नहीं गाता वह गाता हैं उन स्वरों में अपनी कल्पना ,वह गाता हैं उस राग के स्वरों में अपनी आत्मा का गीत ,वह राग गाता हैं और भूल जाता हैं बाकि सारी दुनिया ,भूल जाता हैं की वह कौन हैं क्या हैं,यह हैं हमारा रागदारी संगीत ,समृद्ध सुन्दर और सतत नाविन्य पूर्ण ..
यमन का ही उदाहरण ले -
राग यमन में सातों स्वर लगते हैं सब स्वर शुद्ध ,रात्रि के प्रथम प्रहार में गए बजाये जाने वाले इस राग के बारे में और लिखने से अच्चा हैं इस मधुरतम और सुन्दरतम राग को थोडा सुना जाएँ,और जाना जाये की कैसे एक ही राग कलाकार की कल्पना से उसकी कला से अलग अलग रूप धर कर श्रोताओ के सामने आता हैं .-पर शात्री संगीत सुनने से पहले लीजिये सुनिए राग यमन में एक सुंदर गीत -जीवन डोर तुम्ही संग बांधी--
राग यमन में सातों स्वर लगते हैं सब स्वर शुद्ध ,रात्रि के प्रथम प्रहार में गए बजाये जाने वाले इस राग के बारे में और लिखने से अच्चा हैं इस मधुरतम और सुन्दरतम राग को थोडा सुना जाएँ,और जाना जाये की कैसे एक ही राग कलाकार की कल्पना से उसकी कला से अलग अलग रूप धर कर श्रोताओ के सामने आता हैं .-पर शात्री संगीत सुनने से पहले लीजिये सुनिए राग यमन में एक सुंदर गीत -जीवन डोर तुम्ही संग बांधी--
यह हैं राग यमन का चित्र
एक और सुन्दर मराठी फ़िल्मी गीत
आदरणीय हिराबाई बरोड़ेकर का गाया राग यमन
पंडित नयन घोष का बजाया राग यमन
राधिका जी कविता से शुरू होकर राग, राग का स्वरूप और फिर यमन राग के भाव गीत और शुध्द शास्त्रीय प्रस्तुति, आनंद आ गया ।
ReplyDeleteराग यमन में सातों स्वर लगते हैं सब स्वर शुध्ध केवल नि कोमल होता हैं, राधिका जी, क्या यह सही है?- Ref-
ReplyDeletehttp://surshree.blogspot.com/2008/08/blog-post_30.html
एक जिज्ञासु.