कुछ दिन पहले एक पोस्ट निकाली थी कहाँ खो गया संगीत ?आज सागर जी की एक पोस्ट पढ़ी ,मेरी माँ ,मम्मी माँ । मजे की बात यह हैं की कल ही में अपने पतिदेव से कह रही थी की कितना सुंदर गीत हैं न। उन्होंने मुझसे पूछा भी की यह गीत तुम्हे क्यों पसंद आया?तो मैंने कहा की भले ही इस गीत की कविता बहुत साहित्यिक नही हैं ,स्वर संयोजन भी बहुत विचारणीय और शास्त्रीय नही हैं किंतु इस गीत में एक सरलता हैं ,भावों सुन्दरता हैं की कैसे एक बेटा अपनी माँ को अपने मन की बात कहता हैं ,यह गीत बहुत सरलता और सच्चाई से गाया गाया हैं और यही इस गीत की खासियत हैं ।
सागर नाहर जी ने अपनी पोस्ट में मेरी इस बात का उल्लेख किया हैं जब मैंने कहा था "मुझे सिर्फ़ इतना ही नही लगता कि शास्त्रीय रागों पर आधारित गाने बनना बंद हो गए हैं ,बल्कि मुझे लगता हैं गीत बनना ही बंद हो गए हैं । संगीत किसे कहेंगे हम ,वह जो जिसमें मधुर स्वर ,उपयुक्त लय ,सुंदर बोल हो और उसे जिसे उसी सुन्दरता से गाया गया हो"। साथ ही उन्होंने पूछा हैं की "सुनिये और बताइये क्या वाकई अच्छे गीत बनना बंद हो गये हैं?"
मैं कहना चाहूंगी की हर बात को देखने का, समझने का एक नजरिया होता हैं ,उस बात का एक अर्थ होता हैं ,उसका एक मर्म होता हैं ,जब मैंने कहा की अच्छे गीत बनना बंद हो गये हैं तो मेरा अभिप्राय बहुतायत में अच्छे गीत बनना बंद हो गए हैं से था ,इक्का दुक्का अच्छे गीत बन रहे हैं बनते हैं ।
जब एक गीत पूर्ण रूप में सामने आता हैं तो उससे जुड़े कई तत्व जैसे संगीत संयोजन,शब्द रचना ,गायन ,वाद्य संयोजन,प्रस्तुतीकरण आदि सभी का समावेश होता हैं ,इसलिए जब कोई गीत हम सुनते हैं तो कहते हैं की हाँ यह गीत बडा अच्छा गाया गया हैं ,या बडे अच्छे शब्द हैं,बडा अच्छा संगीत हैं ,या गीत बहुत अच्छा हैं ।
मैं किसी का नाम नही लुंगी परन्तु कुछ संगीतकार उम्दा संगीत देते हैं,पर ख़ुद बुरा गाकर गीत की स्तिथि ख़राब कर देते हैं,कुछ सारे वाद्य ठूस देते हैं,समझ ही नही आता की गीत कहाँ हैं ?कुछ लय इतनी बढा देते हैं की गीत के भावों की हानी हो जाती हैं । अब पप्पू कांट डांस साला ,कहाँ हैं सुशब्द संगीत ?सिर्फ़ लय हैं . या "ऐ साला अभी अभी हुआ यकीन" ,बाकी के शब्द ठीक होने पर भी साला शब्द ने गीत की गरिमा घटा दी न . ऐसा सब कुछ चल रहा हैं । पहले गीत जब फ़िल्म में दिया जाता था तो इन सभी पक्षों का ध्यान रखा जाता था ,तब उसे उतनी ही सुन्दरता से प्रस्तुत किया जाता था । मेरा यह आग्रह नही हैं की हर गीत शास्त्रीय संगीत की धुनों पर ही सजाया जाए,नही मेरा गैर शास्त्रीय संगीत गीतों को विरोध हैं ,मेरा व्यक्तिगत तौर पर यह मानना हैं की गीत अर्थात स्वर शब्द ताल ,लय और भावों का वैभव ,जो आजकल बहुत कम गीतों में ही या कहें यदा कदा ही पूर्ण रूप से दीखता हैं । बाकी सबकी गीतों को लेकर अपनी अपनी पसंद हैं और रहेगी,मैं और क्या कहूँ?
गीत अर्थात स्वर शब्द ताल ,लय और भावों का वैभव ,..........
ReplyDeletebilkul sahi kaha aapne.Pata nahi log kyon darte hain sundar madhur saangeet dene se ,jabki jahan kahin bhi taam jhaam se mukt shukhad sangeet hota hai,shrota use sar maathe uthate hain jabki tadak bhadak wale jhannatedaar geet kuch samay ke liye logon kee jubaan par chadh bhale jayen par unkee umra barsaatee nale se adhik nahi hotee.
एक अरसे बाद गीत-संगीत पर सार्थक लेख पढ़ा। सहमत हूं आपसे। बधाई।
ReplyDeleteएम टी वी रोडीज वाली पीढ़ी के लिए ए साला! शब्द बहुत शोभनीय है वरना उनकी भाषा में गीत बनने लग गये तो हो गया काम..
ReplyDeleteबहुत सही कहा कुश जी आपने:-)
ReplyDeleteradhika jee,
ReplyDeletegeet aur swar taa kee samajh to nahin hai mujhmein lekin itnaa yakeen hai ki maanav man jaroor hee shanti paataa hai sundar sangeet se, baanki to shor hai. umda lekh
आपकी बात सच है. आजकल या तो रदीफ़, काफिया की बात होती है या फ़िर बेतुकी (तथाकथित) ज़मीनी सच्चाई की. गीत की आत्मा को धीरे-धीरे मारा जा रहा है.
ReplyDeleteराधिका जी, वेबदुनिया पर अपने साप्ताहिक कॉलम ब्लॉग चर्चा में मैंने आपके ब्लॉग वाणी पर चर्चा की है। उसकी लिंक दे रहा हूं।
ReplyDeletehttp://hindi.webdunia.com/samayik/article/article/0810/30/1081030086_1.htm
संगीत जो दिल को छुए ..जो अच्छा संगीत ,अच्छे बोल होते हैं वह हमेशा दिल को भाते हैं .तभी कई पुराने गीतों को हम भुला नही पाते हैं ...आप की बात से सहमत हैं मेरी भी ..
ReplyDeleteसुँदर सँगीत, व गीत रचना वही है जो मन को भा जाये और आत्मा को शीतल करे -
ReplyDeleteअच्छा आलेख है राधिका जी !
राधिका जी बहुत ही सुंदर लिखा आप ने , ब्स हमे तो इतना ग्याण नही संगीत का लेकिन आज कल के गीतो मै वो बात नही.... लेकिन कभी कभी एक आध गीत फ़िर भी कानो को भा जाता है, लेकिन पुराने गीतो का मुकाबाला नही.
ReplyDeleteधन्यवाद
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteit s great pleaure to read content on music
ReplyDeleteregards
आप सभी का धन्यवाद,रविन्द्र व्यास जी आपकी टिप्पणी पढ़कर वेब दुनिया पर आपने वाणी नामक मेरे ब्लॉग के बारे में दिया आलेख पढ़ा .बहुत बहुत धन्यवाद श्री रविन्द्र व्यास जी,आपने मेरे ब्लॉग वाणी की इतनी वृहत और सारगर्भित चर्चा की हैं ,आप के जैसे सुधि वाचको और लेखको से मिले प्रोत्साहन के कारण ही मैं अपना संगीत का ब्लॉग चला पा रही हूँ ,आप को पुनः एक बार शुक्रिया ,किंतु एक बात आपसे कहनी थी वह यह की वाणी नामक जो ब्लॉग मैं चला रही थी उसका पासवर्ड खो जाने से मैं उसकी जगह वीणापाणी ब्लॉग चला रही हूँ और इस बारे में मैंने पूर्व में विस्तृत पोस्ट भी निकली थी ,आपसे अनुरोध हैं की वाणी के साथ साथ वीणापाणी का नाम दे दे .ताकि पाठको को नवीन जानकारी प्राप्त हो सके
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