9/11/2008

टेस्ट पोस्ट

कृपया ध्यान न दे

9/05/2008

राग बागेश्री में गीत :राधा ना बोले


रागों के सफर में आज जानेंगे रागा बागेश्री को ,राग बागेश्री काफी ठाट का राग हैं,इस राग में ग व नि स्वर कोमल हैं ,कोमल स्वरों को जब लिखा जाता हैं तो उनके नीचे एक आड़ी रेखा लगाई जाती हैं ,आरोह में रे व प स्वर वर्जित हैं ,अवरोह में केवल प वर्जित हैं इसलिए क्योकि आरोह में पाँच और अवरोह में छ:स्वर लगते हैं तो जाती हुई औडव षाडव। कभी कभी म प ध ग इस तरह से प का प्रयोग किया जा सकता हैं । इसका गायन वादन समय मध्यरात्रि का हैं .इस राग के वादी संवादी स्वर हैं म व सा कुछ लोग वादी कोमल नि और संवादी कोमल ग भी बताते हैं । यह राग मध्यम प्रधान राग हैं यानि इस राग में म स्वर का बहुत प्रयोग हैं किंतु आजकल इस राग पर धैवत्व छाया हुआ हैं,यानि लोग इसमें ध का प्रयोग अधिक कर रहे हैं ।

राग का स्वरुप मैं आपके सामने और अधिक स्पष्ट कर सकूँ , इस हेतु मैंने सोचा की राग के आरोह -अवरोह गायन से ही आपके सामने प्रस्तुत करू ,इसके लिए मैंने अपनी छोटी बहन श्रीमती गीतिका मसूरकर (उपर फोटो )से मदद मांगी की वो यह गा कर रिकॉर्ड कर मुझे भेजे और उसने तुंरत यह मान भी लिया । गीतिका कुशल गायिका हैं और आकाशवाणी और दूरदर्शन की बी हाई ग्रेड कलाकार हैं साथ ही कई शहरो में गायन के कार्यक्रम भी दे चुकीं हैं । तो पहले सुनते हैं गीतिका से राग बागेश्री के आरोह अवरोह और पकड़ .पकड़ याने राग के स्वरों का वह समूह जिससे राग एकदम तुंरत पहचाना जा सके ।


अब सुनते हैं राग बागेश्री में ये गीत :-

9/04/2008

सुनिए गीत :तुम तो प्यार हो सजना

रागों के सफर में आज हम चलेंगे एक नवनिर्मित ,मिश्रित राग की ओर(मिश्रित राग याने जो राग दो या अधिक रागों के मिश्रण से बनाये गए हो ) ,इस राग का नाम हैं,राग मारूबिहाग । प्राचीन ग्रंथो में केवल मारू नामक राग का उल्लेख मिलता हैं ,अत:मारूबिहाग, राग मारू और बिहाग( जिसे हमने अपनी पूर्व पोस्ट में जाना) के मिश्रण से बना हैं , बिहाग की तरह ही इस राग के आरोह में रे व ध वर्ज्य हैं ,अवरोह सम्पूर्ण हैं ,इसलिए जाती भी औडव- सम्पूर्ण हुई। कुछ लोग इसकी जाती वक्र औडव, सम्पूर्ण भी बताते हैं,अब ये क्या लोचा हैं ??वक्र औडव??
बताती हूँ , इस राग का आरोह वैसे तो नि से शुरू होकर । नि(मंद्र सप्तक का ) सा ग म((तीव्र)तीव्र म के उपर खड़ी रेखा होती हैं जो यहाँ नही लग पा रही ) नि सां हैं ।
स्पष्ट रूप से :आरोह हैं -नि सा ग म(तीव्र )प नि सां
अवरोह हैं- सां नि ध प म(तीव्र ) ग म(तीव्र ) ग रे सां
अब यह तो स्पष्ट हो गया की इसमे तीव्र म लगता हैं जबकि बिहाग में शुद्ध(ज्यादा (तीव्र का क्वचित प्रयोग )) ,पर एक बात और हैं ,वह यह की मारू बिहाग में दोनों म लगते हैं शुद्ध भी तीव्र भी बस आरोह मेंशुद्ध म का वक्र प्रयोग याने कुछ इस तरह से सा म(शुद्ध )ग, म (तीव्र ) प म (तीव्र ) ग रे सा ,इस तरह शुद्ध म के अल्प किंतु वक्र प्रयोग से ही इस राग की जाती वक्र औडव सम्पूर्ण कहलाती हैं । इस राग में तीव्र म का प्रामुख्य से प्रयोग होता हैं
वादी संवादी भी वही हैं बिहाग वाले,ग और नि । समय रात !10 से 11:30 तक का ।

लीजिये हो गया हमें राग मारू बिहाग का सामान्य ज्ञान । अब सुनते हैं राग मारूबिहाग में यह प्यारा सा गीत ।

9/03/2008

सुनिए मोहन वीणा

नमस्कार।

वाणी पर पिछली पोस्ट में हमने राग बिहाग को जाना और राग बिहाग में संगीतनिबद्ध दो फिल्मी गीत भी सुने,आज मैं आपको सुनवाने जा रही हूँ ,पंडित विश्व मोहन भट्ट के द्वारा "मोहन वीणा" पर बजाये राग बिहाग में द्रुत गत व झाला। यह रिकॉर्डिंग तब का हैं
,
जब पंडित विश्व मोहन भट्ट जी ने भोपाल में मेरी बुआ स्वर्गीय श्रीमती संगीता कठाले की स्मृति में भारत भवन में आयोजित कार्यक्रम में मोहन वीणा वादन किया था ।


आप सभी जानते हैं की पंडित विश्व मोहन भट्ट जो की ग्रेमी अवार्ड विजेता हैं ,ने पश्चिमी हवाईयन गिटार के आधार पर मोहन वीणा का आविष्कार किया हैं । उन्होंने इसमे १४ तार जोड़े हैं । पंडित जी की वादन शैली बहुत ही मधुर हैं ,इनके वादन में कोयल की गूंज,घसीट ,मींड का बहुत सुंदर प्रयोग होता । इनके द्वारा बजाया प्रत्येक स्वर अत्यन्त सटीक और मधुर होता हैं .
---------------------------- मोहन वीणा------------>>


तो आनंद लीजिये मोहन वीणा राग बिहाग का ।

9/02/2008

सभी के सूचनार्थ

नमस्कार !सभी के सूचनार्थ ,मेरे पुराने ब्लोग्स वाणी और मंथन का पासवर्ड खोने से मैंने दो नए ब्लॉग बनाये आरोही जिसका URL हैं http://aarohijivantarang.blogspot.com/
और वीणापाणी जिसका URL हैं http://vaniveenapani.blogspot.com/
मेरे अभी तक के वाणी और मंथन के प्रयास में आप सभी ने मेरा बहुत उत्साह वर्धन किया ,डॉ,चन्द्र कुमार जैन,महेन जी ,सुश्री लावण्या जी ,श्री दिनेश राय द्विवेदी जी,श्री राज भाटिया जी ,श्री अनुनाद सिंह जी,श्री अजित वडनेरकर जी,श्री जीतेन्द्र भगत जी,सुश्री पारुल जी ,श्री नीरज गोस्वामी जी ,श्री समीर जी,श्री अनिल पुसड़कर जी , श्री राजेश रोशन जी ,सुश्री शोभा जी,श्री अनूप शुक्ल जी,श्री सिद्धेश्वर जी,श्री तरुण जी,श्री प्रियंकर जी ,श्री शिवकुमार मिश्रा जी ,श्री कुश जी,सुश्री रंजना जी,श्री रंजन जी ,डॉ अमर कुमार जी,श्री जीतेन्द्र जी,सुश्री वर्षा जी,व सुश्री संगीता पुरी जी की मैं विशेष रूप से आभारी हूँ की आप सभी ने मेरे दोनों ब्लोग्स पढ़े,व अपनी टिप्पणिया दर्ज करवाकर मुझे रोज़ नया और अच्छा लिखने का हौसला दिया । मुझे भरोसा हैं की आप सब आगे भी मुझे इसी तरह लेखन की प्रेरणा देते रहेंगे। वाणी नामक ब्लॉग पर जो भी मैं संगीत के विषय में लिखती थी अब आपको वीणापाणी पर पढने मिलेगा,और मंथन ब्लॉग की सामग्री आरोही ब्लॉग पर उपलब्ध होगी।

ये क्या हुआ?????

कल क्या हुआ?न जाने क्या हुआ?मेरे बुद्धि के बल्ब समान तारे चमके,उन्होंने चमक के कहा ,परिवर्तन ..और मेरे हाथों ने एक कुशल नौकर की तरह आज्ञा का पालन किया.कुछ पल बाद मैं कंप्यूटर के सामने सर पकड़ के बैठी थी ,दिमाग सोच सोच कर थक चुका था ,मुझे अपने उपर इतना गुस्सा आ रहा था की अपना सर फोड़ दूँ . पर वह याद नही आ रहा था ,जिससे मेरी सारी यादें जुड़ी थी, जिसके सहारे मैं जीवन में रोज़ आगे बढ़ रही थी,जिससे मेरा दिन होता था,जिससे शाम मुस्कुराती थी .मेरा दिल गा रहा था..... सूने शाम सबेरे,तब से हैं मेरे,जबसे गये तुम ..................मैंने उसे याद करने का हर सम्भव प्रयत्न कर लिया,फ़िर अपने मित्रो की मदद ली,पर सारे प्रयत्न विफल,अब उसे भुला देना ही एक मात्र उपाय बचा था मेरे पास। ऐसा किसी के साथ न हो की जिसे आप अपने मन मस्तिष्क में इतना बिठा ले वही कही खो जाए।
अरे आपको बताया ही नही वह कौन?अब कैसे बताऊँ ?कैसे ?फ़िर भी बताना तो पड़ेगा ।
वो .............मेरा साथी ,मेरा हमसफ़र ........मेरा .........मेरा ....ईमेल id का पासवर्ड .....
वो खो गया.हुआ यह की मेरे आराम प्रेमी मन ने ब्लॉग पर सारी पोस्ट डाल देने के बाद जब मुझे थोड़ा आराम करने को कहा ,तब मेरे सतत कार्यशील दिमाग ने कहा ...राधिका फालतू नही बैठ ,कुछ नही तो ईमेल का पासवर्ड चेंज कर .मैंने उसकी बात मानली,पासवर्ड बदला और थके हुए दिमाग ने मुझे धोखा दे दिया ,कुछ क्षण बाद वह पासवर्ड मैं भूल गई,और फ़िर शुरू हुई रामकहानी .मेरे दोनों ब्लॉग वाणी और मंथन नही खुल रहे थे,Mail बॉक्स भी नही खुल रहा था ।मैं समझ नही पा रही थी क्या करूँ ?तभी मेरे पतिदेव ऑफिस से लौट आए,उन्हें जब मैंने बताया की ऐसा हो गया हैं ,तो उनके हाथ पैर फूल गए,थरथराती आवाज़ में बोले तुम ये कैसे कर सकती हो ????अब इस सवाल का जवाब मुझे मालूम होता तो बात ही क्या थी ??बोले अब कैसे होगा,तुम ब्लॉग पर कैसे लिखोगी?हे राम !!!!!!!!!!इस सदमे से उनका ब्लड प्रेशर लो हो गया,सारा काम धाम छोड़ कर पहले उन्हें दवाई दी ,ग्लूकोस दिया।

वैसे मैंने अपने दिमाग को धोखेबाज तो कह दिया पर वह भी बिचारा क्या करे?कितने पास वर्ड याद रखे,बैंक का अलग atm का अलग,Mailid का अलग,बैंक लॉकर का अलग,कंप्यूटर का अलग, इंटरनेट का अलग ..पासवर्ड पासवर्ड और पासवर्ड ...इतने पासवर्ड और उस पर गणित की शत्रु मैं । अब कैसे बताऊँ?बचपन से ही मेरी और गणित की बनती नही ,हम दोनों में छत्तीस का आंकडा हैं,इस गणित के चक्कर में न जाने कितनी बार मैंने दोस्तों के उलहाने सहे हैं,टीचर की डांट और मम्मा की मार सही हैं ,हर विषय में, मैं 100 में से 98 कभी 97 कभी ९९ लाती और गणित में 100 में से 10,5 -6-8-3-2-और कभी तो 000000000 इस गणित ने मेरे साथ छल किया ,और कल भी इसी ने दांव साधा,मैं एक बार फ़िर इस गणित के कारण अकेली रह गई ...ब हु हु हु :-(

खैर फ़िर मन को संभाला और रात के तीन बजे तक प्रयत्न कर दो नए ब्लॉग बनाये आरोही जिसका URL हैं http://aarohijivantarang.blogspot.com/
और
वीणापाणी जिसका URL हैं http://vaniveenapani.blogspot.com/

मेरे अभी तक के वाणी और मंथन के प्रयास में आप सभी ने मेरा बहुत उत्साह वर्धन किया ,डॉ,चन्द्र कुमार जैन,महेन जी ,सुश्री लावण्या जी ,श्री दिनेश राय द्विवेदी जी,श्री राज भाटिया जी ,श्री अनुनाद सिंह जी,श्री अजित वडनेरकर जी,श्री जीतेन्द्र भगत जी,सुश्री पारुल जी ,श्री नीरज गोस्वामी जी ,श्री समीर जी,श्री अनिल पुसड़कर जी , श्री राजेश रोशन जी ,सुश्री शोभा जी,श्री अनूप शुक्ल जी,श्री सिद्धेश्वर जी,श्री तरुण जी,श्री प्रियंकर जी ,श्री शिवकुमार मिश्रा जी ,श्री कुश जी,सुश्री रंजना जी,श्री रंजन जी ,डॉ अमर कुमार जी,श्री जीतेन्द्र जी,सुश्री वर्षा जी,व सुश्री संगीता पुरी जी की मैं विशेष रूप से आभारी हूँ की आप सभी ने मेरे दोनों ब्लोग्स पढ़े,व अपनी टिप्पणिया दर्ज करवाकर मुझे रोज़ नया और अच्छा लिखने का हौसला दिया । मुझे भरोसा हैं की आप सब आगे भी मुझे इसी तरह लेखन की प्रेरणा देते रहेंगे। वाणी नामक ब्लॉग पर जो भी मैं संगीत के विषय में लिखती थी अब आपको वीणापाणी पर पढने मिलेगा,और मंथन ब्लॉग की सामग्री आरोही ब्लॉग पर उपलब्ध होगी।

आप सभी से एक और पूछना था की चूँकि मेरे पुराने ब्लोग्स खुल नही रहे इसलिए इन नए ब्लोग्स पर मैं पुराने ब्लॉग का सारा डाटा इंपोर्ट करना चाहती हूँ, वह कैसे करूँ?

आशा हैं आप मेरी पुनःमदद करेंगे ।

तेरे सुर और मेरे गीत


तेरे सुर और मेरे गीत,दोनों मीलकर बनेंगी प्रीत ....सुंदर गीत हैं न! जानते हैं किस राग मैं हैं ?यह हैं राग बिहाग .पिछली पोस्ट में हमने जाना . राग क्या होता हैं ?शुध्द ,विकृत स्वर क्या होते हैं ?और जाना राग यमन .

आज हम जानेंगे राग बिहाग और राग से सम्बंधित कुछ और महत्व पूर्ण तथ्य .

हम सभी जानते हैं की राग थाट से उत्पन्न होता हैं ,तो राग बिहाग का थाट हैं बिलावल ,थाट बिलावल में सब स्वर शुध्द होते हैं,और राग बिहाग में भी सब स्वर शुध्द होते हैं .

इस राग में सारे स्वर लगते हैं पर आरोह में रे ध वर्जित हैं .
आरोह हैं ..

सा ग म प नि सां
आवरोह हैं

सां नि ध प म ग रे सा

यहाँ जिस सा पर मैंने उपर बिंदी लगाई हैं वह हैं तार सप्तक का सां यानि उपर का सा .
यहाँ मैं थोड़ा और स्पष्ट कर दू,जिस राग में सातों स्वर लगते हैं ,उसकी जाती होती हैं सम्पूर्ण,जिस राग में छ: स्वर लगते हैं उसकी जाती होती हैं ,षाड्व,जिस राग में पॉँच स्वर लगते हैं उसकी जाती होती हैं .........औडव .

अब अगर किसी राग में आरोह में पॉँच और अवरोह में सात स्वर लगते हैं तो उसकी जाती हुई ............??
औडव-सम्पूर्ण !इस प्रकार के कॉम्बिनेशन से कुल 9 जातिया बनती हैं ,और मुख्य जातिया होती हैं तीन . इसलिए राग बिहाग की जाती हुई ...?????????

जी ..बिल्कुल सही कहा आपने...औडव - सम्पूर्ण क्योकि आरोह में पॉँच स्वर आवरोह में सात स्वर .

जिस स्वर को राग में सबसे अधिक लगाया जाता हैं वह होता हैं राग का वादी स्वर ,इसे राग का राजा स्वर भी कहते हैं ,तो राग बिहाग का वादी हैं ग .जिस स्वर को राग में वादी स्वर से कम और बाकि स्वरों से ज्यादा लगाते हैं वह होता हैं संवादी स्वर ..राग बिहाग का संवादी स्वर हैं नि,यानि नि राग बिहाग का मंत्री स्वर हैं .विवादी स्वर वह होता हैं जिसके लगाने से राग का रूप नही बिघ्द्ता पर उसको यदा कदा ही लगाते हैं ,इस राग बिहाग में तीव्र मध्यम विवादी के नाते ही लगाते हैं .

रागों के समय के सम्बन्ध में मैंने पी.एच .डी करते समय बहुत रिसर्च किया हैं रागों के समय के सम्बन्ध में ,मैं आपको विस्तृत रूप से धीरे धीरे बताउंगी .पर अभी इतना ही कहूँगी की राग किसी भी समय का क्यो न हो अगर बहुत अच्छे से गाया,बजाय जाए तो हमेशा ही अच्छा लगता हैं,फ़िर भी जानकारी के लिए बिहाग का समय हैं रात्रि का दूसरा प्रहर .

लीजिये अब सुनिए राग बिहाग में ये दो सुरीले गीत ..और सुनकर अगर आपको और कोई गीत इसी राग में हैं ऐसा लगे तो मुझे जरुर बताये ,ताकि मैं उस गीत की स्वर रचना के सम्बन्ध में पुरी जानकारी दे सकू .क्योकि कई बार गीत उस राग से मिलते जुलते रागों में या आंशिक रूप से उस राग में भी हो सकता हैं .




5 Comments - Show Original Post Collapse comments

Anonymous अफ़लातून said...

' इक प्यार का नगमा है ' - फिल्म 'शोर' , राग बिलावल । सही?

September 1, 2008 2:16 AM

Blogger महेन said...

इस कक्षा में बहुत ही सीरियस होना पड़ेगा। आज की पोस्ट पढ़कर मालूम हुआ कि पिछली पोस्ट का सब भूल गया। दोबार पढ़ना पढ़ेगा। :(

September 1, 2008 3:42 AM

Blogger Dr. Chandra Kumar Jain said...

बहुत अच्छी प्रस्तुति.
जिंदगी के सफर में.....
ये मकाम संगीत के सुरों का
मेला-सा लेकर आया है.
हमारा आभार स्वीकार कीजिए
इस सुर-सधी सुंदर श्रृंखला के लिए.
आप नाम से भले 'राधिका' हों
पर कर्म से वीणावादिनी की
सच्ची 'आराधिका' हैं !
=======================
शुभकामनाओं सहित
डॉ.चन्द्रकुमार जैन

September 1, 2008 3:46 AM

Blogger दिनेशराय द्विवेदी said...

सुंदर, मधुर गीत सुने बहुत दिन हो गए थे। आप के सौजन्य से सुनने का सौभाग्य मिला।

September 1, 2008 6:43 AM

Blogger अबरार अहमद said...

भई मजा आ गया। इस गीत को सुनवाने के लिए धन्यवाद।

September 1, 2008 11:36 AM