1/30/2009

वह भी था देस अपना ही


एक ८-१० साल की लड़की ब्लेक एंड व्हाइट टीवी देख रही हैं,अभी कुछ ही दिनों पहले उसके घर टीवी आया हैं ,दूरदर्शन के राष्ट्रीय चेनल पर गाना आ रहा हैं बजे, बजे सरगम बजे हर तरफ़ से सरगम बजे .........वह साथ गुनगुना रही हैं । अचानक आवाज आती हैं राधिका ...

मैं सालो की दुरिया कई क्षणों में तय करके वापस अपने घर, अपने आज में लौट आती हूँ ,पतिदेव मुझसे कह रहे हैं ,कितना अच्छा गाना हैं यह देस राग का । दूरदर्शन का नेशनल नेटवर्क आज कितने महीनो ...नही सालो बाद हमारे घर लगाया हुआ हैं ,पतिदेव की टीवी में लगातार चेनल बदलने की आदत ने आज वह गीत सुनवा दिया जो बरसो पहले हर घर में हर भारतीय की जुबान पर होता था ,जिसे गुनगुनाना हर व्यक्ति को पसंद था । वह गीत जो अतुल्य हैं ,अविस्मरणीय हैं ,अद्वितीय हैं ।

आज जब टीवी चेनलो की भीड़ में दूरदर्शन की वह सादगी ढूंढने जाते हैं तो कहीं नही मिलती ,मिलते हैं तो कभी उल्ट पुलट कहानियो पर आधारित अटपटे से धारावाहिक जो दिन में से दस बार दोहराए जाते हैं या अजीबोगरीब रियलिटी शोस जो वास्तविकता से बहुत दूर, बनावटी और दिखावटी होते हैं । दिन भर गीत गुंजाने वाले चेनलो में से एक भी चेनल पर ,एक भी गीत ऐसा नही आता जिसकी तुलना बजे सरगम या मिले सुर मेरा तुम्हारा गीत से की जाए ।

इन गीतों की बात ही अलग थी ,सुंदर सुरीले,सुस्वरबद्ध । इनके संगीत संयोजन की तो जितनी तारीफ की जाए कम हैं ,इतने वाद्य इतने वादक,इतने गायक और उनका गायन। पर कहीं भी गीत की कड़ी अलग नही होती ,हर शब्द अपने आप में अर्थ पूर्ण और भावः पूर्ण,लय का ,स्वर का सुगतीमय उतार चढाव और बेहतरीन पिक्चराइज़ेशन । तभी तो आज इस युग में जहाँ स्वर युक्त ,श्रुति मधुर गीत सुनने को कान तरस जाते हैं वही यह दोनों गीत अपनी गरिमा और स्वयं के प्रति भारतीय जनमानस के लगाव को बनाये हुए हैं ।

आज इतने चेनल हैं इतने एफएम रेडियो चेनल हैं ,पर कौनसे चेनल ने भारतीय संगीत को सम्मान और स्थान दिया हैं ?हर चेनल बस पैसा कमाने की दौड़ में शामिल हैं ,भारतीय संस्कृति ,सभ्यता ,संगीत इन सबसे किसी भी चेनल का कोई लेना देना नही हैं ।आज भी भारतीय संगीत को जो थोड़ा सा आश्रय मिल रहा हैं वह दूरदर्शन के चेनल्स पर या ऑल इंडिया रेडियो पर । हाँ वर्ल्ड स्पेस का " गंधर्व" चेनल भारतीय संगीत प्रेमियों के लिए आशा की सुनहली किरण हैं ।

जो भी हो अगर दूरदर्शन आज भी अपने प्रसारण ,प्रसारण सामग्री अधिक उन्नत करे तो वह भी लोगो के दिलो पर पुनः छा सकता हैं ,ऐसा मैं विश्वास से कह सकती हूँ ,क्योकि भारतीय संस्कृति को सहेजने वाले दूरदर्शन को उन लोगो का सहयोग हमेशा मिलेगा जी अपनी भारतीयता पर गर्व हैं । आख़िर वह देश भी जहाँ दूरदर्शन का राज हुआ करता था हमारा ही था, भले ही समय आगे बढ़ गया हो वह आज भी हमारा देस ही हैं ।

लीजिये सुनिए गीत "बजे सरगम हर तरफ से "....

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1/21/2009

महानाटक ..........वीणा

नाटक शब्द से हम सभी परिचित हैं ,मराठी नाटक,हिन्दी नाटक ,गुजराती नाटक ,बंगाली नाटक,तमिल नाटक और नन्हे मुन्ने बच्चो का शरारत और मासूमियत से भरा नाटक । लेकिन क्या आपने महानाटक भी सुना हैं ,शयद आप सोचेंगे बहुत बडा नाटक यानि महानाटक ...जी नही मैं यहाँ जिस महानाटक की बात कर रही हूँ वह शास्त्रीय संगीत का महानाटक हैं ,लेकिन दक्षिण भारतीय शास्त्रीय संगीत का । चौक गए न !यह कुछ समझ नही आ रहा न ?

आप में से शायद ही कोई होगा जिसने सरस्वती वीणा का नाम नही सुना होगा ,पर क्या आप जानते हैं की दक्षिण भारतीय शास्त्रीय संगीत में एक अन्य वीणा प्रचार में हैं जिसे महानाटक वीणा भी कहा गया हैं , इस वीणा का प्रचार में नाम हैं गोट्टूवाद्यम् ,अब जब आप मेरे ब्लॉग के पाठक हैं तो आपके लिए विचित्र वीणा शब्द अपरिचित तो हैं ही नही,बस विचित्र वीणा की तरह ही सारिका याने परदे विहीन वाद्य हैं गोट्टू वाद्यम् ,हलाकि दोनों वाद्य एक दुसरे से कई बातों में अलग हैं ।देखिये प्रथम चित्र गोट्टू वाद्यम्

गोट्टू वाद्यम् नाम तमिल भाषा का हैं , तमिल में लकडी की छड़ी को कोडु कहा जाता हैं ,कोडु वाद्यम् को ही गोट्टूवाद्यम् नाम मिला ,इस वाद्य को तारो पर लकडी के टुकड़े कों दबाकर बजाया जाता हैं । अमरावती की मूर्तियों में भी वाद्यों को लकड़ी के टुकडो से बजाते हुए बताया गया हैं ,जेनकन नमक जापानी वाद्य भी लकड़ी के टुकड़े को तारो पर सरकाकर ही बजाया जाता हैं मत यह भी हैं की प्राचीन एकतन्त्री वीणा का ही परिष्कृत रूप दक्षिण भारतीय गोट्टू वाद्यम् या महानाटक वीणा हैं । एक ही लड़की का बना गोट्टू वाद्यम् इक्ड्न्डा गोट्टू वाद्यम् कहा जाता हैं ,लेकिन अगर इस वाद्य में तुम्बा अलग लकडी का बना हो और बाकी भाग एक ही लकड़ी का बना हो तो उसे एकडांडी गोट्टू वाद्यम् कहते हैं ,साधारण गोट्टू वाद्यम् में तुम्बा,दांडी,सरोकी अलग अलग लकड़ी के बने होते हैं ,और एक होता हैं "तरफ़दार गोट्टू वाद्यम्" तरफ याने मुख्य तारो के नीचे की तरफ़ लगे बारीक़ तार जो प्रतिध्वनी उत्पन्न करते हैं।
देखिये द्वितीय चित्र :विचित्र वीणा वादन करती हुई राधिका बुधकर , चित्र में दर्शाई गई मेरी विचित्र वीणा

कहने वाले कहते हैं की उत्तर भारतीय विचित्र वीणा नया वाद्य हैं पर मैं इस तर्क से असहमत हूँ ,जैसा की गोट्टू वाद्यम् के संबंध में मैंने बताया की "एक मतानुसार यह एकतन्त्री वीणा का ही परिष्कृत रूप हैं ",ठीक वही बात मैं विचित्र वीणा के बारे में भी कहूँगी ,एकतंत्री वीणा वह वीणा थी जिस में सिर्फ़ एक ही तंत्री याने तार हुआ करता था और उसे भी इसी प्रकार पत्थर से बजाते थे जैसे हम विचित्र वीणा को बजाते हैं ,सितार का विकास बहुत बाद में हुआ,पहले अत्यन्त प्राचीन कल में जब नए नए वाद्य बने होंगे तो मनुष्य ने कुदरती पत्थर से घिस कर वाद्यों को बजाने का प्रयत्न किया होगा इसलिए मैं मानती हूँ की विचित्र वीणा यह बहुत ही ,प्राचीन वाद्य हैं ,बस मध्य काल मैं यह वाद्य विलुप्त सा हो गया होगा . विचित्र वीणा बहुत बडा वाद्य हैं आपने सितार तो देखी ही होगी उस पर पीतल या धातु के परदे आडे लगे हुए भी देखे होंगे देखे चित्र



















अब
विचित्र वीणा पर यह परदे होते नही ,वास्तव में ये परदे हमें स्वरों का अंदाज़ देते हैं याने वाद्य पर कौनसा स्वर कहाँ आ रहा हैं ये बताते हैं,गोट्टू वाद्यम् हो या विचित्र वीणा दोनों में यह परदे नही होने के कारण ये वाद्य बजाना बहुत कठिन हो जाता हैं ,साथ ही इन दोनों वाद्यों को उंगलियों से नही, गोट्टू वाद्यम् तो लकड़ी यानि कोडु और कांच के गट्टे से भी बजाया जाता हैं ,पर विचित्र वीणा या तो कांच के गट्टे से या मैं इसे शालिग्राम शीला से बजाती हूँ ,बजाया जाता हैं ।विचित्र वीणा और गोट्टू वाद्यम् के संबंध में एक मजेदार तथ्य यह भी हैं की जहाँ हम विचित्र वीणा बजाते हैं ,दक्षिण भारतीय चित्र वीणा बजाते हैं ,जी हाँ गोट्टू वाद्यम् का एक नाम चित्र वीणा भी हैं । तो हुआ न हमारा शास्त्रीय संगीत चित्र विचित्र । किंतु सुरीला और मधुर चाहे वह उत्तर भारतीय हो या दक्षिण भारतीय । वीणाओ की बात भी ले तो भी, हैं तो वीणा भारतीय ही । काफी समय से कई पाठक चाहते थे की मेरा विचित्र वीणावादन मैं अपने ब्लॉग पर दू, तो लीजिये आज सुनिए मैंने विचित्र वीणा पर बजाई राग कीरवाणी में धुन ।


1/05/2009

वीणापाणी टू चाइना......................


जी हाँ आज वीणापाणी आपको ले जा रहा हैं चीन,अभी तक चांदनी चौक टू चाइना रिलीज़ नही हुई ,पता नही मूवी कैसी हैं ? संगीत भी मैंने नही सुना । पर क्या आप में से किसी ने भी चीनी संगीत सुना हैं ?क्या आप जानते हैं भारतीय संगीत की तरह ही चीन का भी संगीत हैं ,चीनी संगीत । युवो .....अरे मै नही युवराज मूवी का शीर्षक लिख रही हूँ ,नही किसी का नाम ,युवो अर्थात चीन का संगीत ,जी चीन में संगीत के लिए युवो ही शब्द हैं ,इस शब्द का अर्थ हैं पवित्रता .चीन में संगीत को बहुत पवित्र दर्जा प्राचीनकाल से ही प्राप्त हैं ,महान दार्शनिक कनफ्यूशस संगीत की महत्ता बताते हुए कहते हैं "अच्छे संस्कार कविता से बनने प्रारम्भ होते हैं ,शालीनता के नियमो से दृढ़ होते हैं ,और संगीत के द्वारा पूर्णता को प्राप्त होते हैं । "

संगीत के स्वरों को चीन में ल्यु कहा जाता हैं ,चीनी संगीत का स्केल पॉँच स्वरों ...कुंग,शेंग,चिओओ चिह ,तथा यु का होता था ,जो भारतीय संगीत के भूपाली राग के स्वरों सा, ,रे, ग, प, ध से मिलता हैं ,इन स्वरों का सबंध सम्राट शुन ने ऋतू ,तत्व ,वर्ण ,दिशा और ग्रहों से भी जोड़ा ,। यह बात और भी गौरव पूर्ण लगेगी की भारतीय भिक्षु चीन जाते थे ,और वहां चीनी लोगो को उपदेश देते थे ,वहां इन भारतीय भिक्षुओ ने "चिन" नमक वाद्य को अपनाया ,पर इस चीन के 'चिन' वाद्य को भारतीय तरीके से बजाकर प्रचारित किया । इस वाद्य पर उन्होंने गमके बजाई और चीनी संगीत को उन्नत किया । एक तुर्की संगीतज्ञ ने अपने देश के सातों स्वरो का समावेश तुर्की संगीत में किया , किंतु प्राधान्य वहां पॉँच स्वरों के स्केल का ही रहा हैं । संगीत का रूप बहुत सरल हैं यहाँ का संगीत शांति का भाव लिए हुए हैं । नही तो भारतीय संगीत की तरह पूर्ण आध्यात्मिक भाव हैं ,नही पश्चिमी संगीत की तरह भौतिक ,चिन का संगीत शांत हैं ,सरल हैं सहज हैं ,किंतु बहुत सुंदर हैं .

चीनी संगीत पर पाश्चात्य संगीत का बहुत प्रभाव पड़ा हैं ,किंतु पारंपरिक चीनी संगीत को संरक्षित करने के उपाय भी किए जा रहे हैं । चीनी संगीत में कई सुमधुर ध्वनी प्रदान करने वाले वाद्यों का समावेश भी हैं जिनका विस्तृत विवरण अगली किसी पोस्ट में. फिलहाल सुनिए चीनी वाद्य शेंग पर श्री ng Cheuk -yin का वादन .






इति
वीणा साधिका
राधिका




सन्दर्भ : "संगीत "

1/02/2009

इंस्टेंट फ़ूड और इंस्टेंट म्यूजिक

मेरे यहाँ कुछ बच्चे आए मैंने पूछा बच्चो क्या खाओगे ?बोले इंस्टेंट फ़ूड !
इंस्टेंट फ़ूड??
अरे मतलब मैगी या पास्ता कुछ भी फटाफट ...ठीक हैं, बना दी मैगी ,कुछ देर बाद मुझसे बोले.आप वीणा बजाते हो मम्मी कह रही थी ,मैंने कहा हाँ ..
तो कुछ बजाओ ..मैंने कहा ठीक और जैसे ही एक मिनिट आलाप किया बोले नही ये नही कुछ अच्छा बजाओ ,मैंने गत शुरू की बोले यह भी नही ,कुछ फटाफट...मैंने ताने बजाई..बोले नही नही ये भी नही कुछ और,मैंने एक पुरानी फ़िल्म का गाना बजाया ..बोले नही ये क्या हैं रोनू टाइप ..कुछ और मैंने एक नई फ़िल्म का गाना बजाया बोले हाँ ठीक हैं,कुछ सही हैं लेकिन आपको कुछ फटाफट अच्छा वाला म्यूजिक नही आता ,हमारे भइया तो ड्रम के साथ ये फटाफट फटाफट केसियो बजाते हैं ,अभी मैं अगर उनसे कहता की भइया कुछ नया फटाफट बजाओ तो मेरे भइया ,केसियो पर ड्रम बीट्स लगाकर इतना अच्छा सा कुछ बजाते की हम सब उस पर डांस भी कर सकते थे । मैं निराश॥
इन बच्चो को क्या सुनाऊ ,अंत मैंने इलेक्ट्रॉनिक तबले पर भागती ,नाचती सी एक इंस्टेंट धुन बनाकर बजाई,बच्चे खुश ,खूब नाचे और फ़िर से आने का वादा कर अपने घर लौट गए ,मैं काफी देर इस वाकये पर और बच्चो की तेज तर्रारी पर हँसती रही , सोचने लगी क्या बच्चे हैं इन्हे सब कुछ तुरत फुरत चाहिए ,फ़िर सोचा बच्चे ही क्यो आजकल बडे भी कुछ ऐसे ही हैं,फास्ट फ़ूड खाने वाले,धमाधम म्यूजिक सुनने वाले ,तेज गति से नित्य घर ऑफिस भागने वाले...फ़िर सोचा आख़िर क्यो ?

उत्तर मिला .. हर किसी को सब कुछ फटाफट ही चाहिए क्योकि मनुष्य सवभाव में धैर्य की कमी आ गई हैं । पहले एक समय था जब आराम से घरो में खाना बनता था ,भगवान् को भोग लगता था ,बच्चो के लिए काफी अच्छे तरह तरह के पदार्थ बनाये जाते थे,और घर के सब छोटे बडे सदस्य मिल कर साथ खाते थे ,और अब रखी गैस पर कढाई ,पानी उबाला ,मैगी डाली और इंस्टेंट फ़ूड तैयार । नही हुआ तो होटल से खाना तैयार ,कभी पास्ता कभी पिज्जा ,कभी ब्रेड .. बात यह नही हैं की समय की कमी हैं बात यह हैं की धैर्य की कमी हैं ।
संगीत में भी पहले लोग घंटो आलाप सुनने को तैयार रहते थे,अब कहते हैं ये क्या हैं नींद आ रही हैं,कुछ तबले के साथ सवाल जवाब हो तो आनंद आए ,और जब तबले के साथ बजे तो चाहते हैं कुछ बोलो का काम या लयकारी ,ताने वाने बजे,मजे की बात तो यह हैं कई बार जनता जनार्दन ऐसी जगह पर तालियाँ बजाती हैं जब तालियाँ बजाने का कोई औचित्य ही नही हो,उदहारण कोई तबले की तिहाई तबला वादक ने बजाई दुर्भाग्य से वो सही जगह नही आई ,लेकिन क्योकि खूब धमाधम बजाई तो श्रोताओ ने तालियाँ भी बजा दी ,सही ग़लत कौन देखता हैं,धम धम धम आवाज आई तो क्या कमाल हैं . ताने सुनना हैं ,अब वो बेसुरी हो या सुर में,वाह क्या हाथ चलता हैं सितार पर ,गिटार पर ,अजी! यह भी तो देखिये की कितना स्वर से हटकर बज रहा हैं .सबसे ज्यादा हँसी तो तब आती हैं की कमाल हैं भाई इतना अच्छा बजाया पुरा, तब इतनी तालियाँ नही बजी अब झाले के अंत में जब सिर्फ़ हवा से बाते करता धा धिन धीन धा और सा सा सा सा का झाला बज रहा हैं तो इतनी तालियाँ बज रही हैं की अपना अपने को क्या बजा रहे हैं तक नही सुनाई आ रहा ।भगवान की दया से कुछ श्रोता अब भी कफिऊ धैर्य और समझ से संगीत सुनते हैं,उनकी हौसला अफजाई के कारण ही कलाकार पुरा गायन वादन शांति और सुंदरता से कर पाता हैं .
एक संगीतकार महोदय कहते हैं उनके पास हजारो गानों की धुनें तैयार हैं ,वाह भाई कब बनाई ,अभी ,मैं तो यु ही बैठे बैठे पल में बना लेता हूँ ,कमाल हैं यहाँ एक धुन बनानी हो ,तो विचार किया जाता हैं ,सोचा जाता हैं ,स्वर संयोजन,वाद्य संयोजन आदि आदि किया जाता हैं,दसो बार उसमे ऐसा नही ऐसा ज्यादा अच्छा लग रहा हैं करके परिवर्तन किया जाता हैं,और इनकी धुनें तैयार इंस्टेंट ..कैसे ?भई ऐसे, करना क्या हैं ?सबसे सरल स्वर संयोजन गा दिया ,जैसे ग ग म म प प ग ग रे रे ग ग रे सा और बिठा दिए इस पर शब्द ,कोई भी तेज सी ड्रम बीट सजा दी साथ में और हो गया स्वर संयोजित गीत ,सुनने वाले झूम रहे हैं,क्योकि उनके लिए तो काफी अच्छा हैं,इसे वह आसानी से गा सकते हैं ,कार चलाते सुन भी सकते हैं,मन किया तो इस पर नृत्य भी कर सकते हैं , या अपनी कालर ट्यून बना कर फ़ोन कर्ताओ को सुनवा भी सकते हैं .

ज़रूरत हैं स्वभाव में शांति,और धीरज लाने की,समय पहले भी वही था २४ घंटे का,और १९०० से लेकर आज २००९ में भी वही हैं २४ घंटे का ,सालो से लोगो के पास यही २४ घंटे रहे हैं,समय कम नही हुआ हैं धैर्य की कमी हो गई हैं,आज भी धीरज से बैठे सुने संगीत तो आनंद आएगा ,कुछ अच्छा संगीत समझा जाएगा ,नही तो हैं ही इंस्टेंट म्यूजिक ॥
खैर इसी बात पर सुनते हैं कुछ अच्छा सा संगीत :सुनते हैं आदरणीय पंडित विश्व मोहन भट द्वारा ,मोहन वीणा पर बजायी केसरियां बालमा दादरा /गीत जो की बिल्कुल इंस्टेंट नही हैं ,बहुत ही सुंदरता से बनाया बहुत ही मधुरता से बजाया गया हैं,सुस्वर और संगीत से भरपूर .
इति
वीणा साधिका
राधिका
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