10/24/2008

सुस्वर ,सुसंगीत मय , शुभ दीपावली


आप सभी को दीपावली की शुभकामनाये , दीपावली सभी के घर में आस्था ,आनंद और प्रेम का प्रकाश लाये ,अमावस की दीपावली इस बार अनंत आकाश को चंद्र , तारांगणो से सजा जाए ,हर दुखी ह्रदय का दुःख मिट जाए ,वृक्ष वल्लियो से पुनः भारतीय धरा हरी भरी हो जाए , भूखो, अनाथो को नाथ और भोजन मिल जाए , जैसे दीपो का प्रकाश शांत सुंदर होता हैं वैसे ही मानव मन में असंख्य भक्ति ,करुणा ,मानवीयता और शांति के दीप जल जाए । जो जीवन के कठिन और अंधेरे रास्तो पर चल रहे हैं उनके रास्ते सरल और प्रकाशमय हो जाए ,जो वृद्ध बीमारीयों से पीड़ित, दुखी हैं ,वे उन पर विजय पा सुखी हो जाए ,जो इस जीवन में कलाओ से वंचित हैं उन पर माँ शारदा कृपा करके कलाए बरसाए ,जो माँ लक्ष्मी की कृपा से वंचित हैं उन्हें सुख ,समृद्धि ,सम्पत्ति मिल जाए ,स्वर आराधना करने वाले संगीत की उँचाइयो को पा जाए । अध्ययन करने वाले ज्ञान के दीप जलाये । शुभ दीपावली और यही प्रार्थना :असतो मा सद्गमय तमसो मा ज्योतिर्गमय मृत्योर् मा अमृतं गमय ॐ शांति शांति शांति

पिछली कुछ पोस्टस पर श्री मार्कंड जी,सुश्री मनविंदर जी ,श्री राज भाटिया जी , श्री शिवराज गुजर जी ,श्री अनुराग शर्मा जी ,सुश्री पारुल जी ,श्री दिनेश राय द्विवेदी जी ,श्री भूतनाथ जी, श्री मोहन वशिष्ठ जी,श्री योगेन्द्र मोद्गाली जी,सुश्री आशा जोगलेकर जी ,सुश्री ममता जी,श्री तरुण जी ,श्री सागर नाहर जी,श्री श्री अशोक प्रियरंजन जी,आप सभी की टिप्पणिया मिली। आप सभी से मेरे लेखन के लिए अच्छी टिप्पणिया पाकर जो प्रोत्साहन मिलता हैं उस कारण ही लिख पा रही हूँ ,आप सभी को बहुत बहुत धन्यवाद ।

10/22/2008

वो वीणा सीखना चाहती हैं !






मेरी पिछली पोस्ट पर दीपक जी ने सवाल किया की मेरी पत्नी वीणा सीखना चाहती हैं पर हम उत्तर भारतीय हैं ,पर अधिकतर शिक्षक दक्षिण भारतीय ,इसलिए समस्या हैं । इस सवाल पर मैं उत्तर टिप्पणी मैं देने वाली थी पर सोचा की अगर वीणा के बारे में विस्तृत रूप से लिखू तो ज्यादा अच्छा रहेगा ।

वीणा शब्द प्राचीन काल में सभी तंत्री वाद्यों अर्थात उन वाद्यों के लिए प्रयुक्त होता जो तार वाले होते थे । समयानुसार वीणा शब्द मुख्य रूप से केवल कुछ खास वाद्यों के लिए ही प्रयुक्त होने लगा ।(दरसल आज भी सभी तंत्री वाद्यों के लिए वीणा शब्द उपयोग किया जा सकता हैं )

भारतीय शास्त्रीय संगीत की दो धाराए हैं ,एक उत्तर भारतीय, दूसरी दक्षिण भारतीय । दोनों शैलियों की अपनी अपनी विशेषता हैं ,और दोनों शैलियों में खासा अन्तर भी हैं । दोनों प्रकार की संगीत शैलियों में अपने अपने अलग अलग वाद्य हैं ,उत्तर भारत में जहाँ तबला ,मृदंग हैं । वही दक्षिण भारत में पखावज और घटम हैं । इसी प्रकार दक्षिण भारत में अगर सरस्वती वीणा,और चित्र वीणा प्रचलित हैं तो उत्तर भारत में विचित्र वीणा और रुद्र वीणा , दोनों शैलियों की वीणाओ में खासा अन्तर हैं ,अब सवाल यह हैं की दीपक जी की पत्नी ने पहले कभी शास्त्रीय संगीत सिखा हुआ हैं ?और अगर हाँ तो कौनसी शैली ?अगर उत्तर भारतीय संगीत शैली सीखी हुई हैं तो वह विचित्र वीणा और रुद्र वीणा सीख सकती हैं ,विचित्र वीणा बजाने वाले कलाकार बहुत नही तो भी हैं ,जिनमे आदरणीय अजित साहब का नाम अविस्मरणीय हैं . रुद्र वीणा बजाने वाले बहुत से कलाकार हैं ,जिनमे आदरणीय उस्ताद असद अली खान साहब उस्ताद बहाउद्दीन डागर का नाम विशेष उल्लेखनीय हैं ।
दोनों ही वीणाये स्वर मधुर ,सुंदर हैं ,रुद्र वीणा में जहाँ अर्ध गोल दान्ड और मोम से चिपके परदे साथ ही दो तुम्बे होते हैं और उसका एक तुम्बा काँधे पर रखकर और एक जमीन पर रखकर बजाया जाता हैं ,वहीं विचित्र वीणा की दान्ड बड़ी .और चपटी ,होतीहैं दो तुम्बे भी होते हैं पर इसे जमीन पर रखकर बजाया जाता हैं । इस वीणा को बजाने के लिए सुर ज्ञान होना बहुत जरुरी हैं ,अन्यथा पहले सुर ज्ञान करना जरुरी हैं ।
अगर पहले कोई भी संगीत शैली नही सीखी और किसी विशेष को सिखने का आग्रह नही हैं तो स्वरस्वती वीणा ,या गोटू वाद्यम् भी अर्थात चित्र वीणा भी सीखी जा सकती हैं ।
उपर फोटो:

पहला फोटो:- सरस्वती वीणा
दूसरा फोटो :-विचित्र वीणा
तीसरा फोटो :- रुद्र वीणा

10/16/2008

सुनिए राग जोग

पिछले कुछ समय से इस ब्लॉग पर नियमित रूप से नही लिख पा रही हूँ,इसलिए पाठको से क्षमा चाहती हूँ . आज आपको राग जोग जो मेरा पसंदिता राग हैं ,सुनवा रही हूँ ,व इसकी संक्षिप्त जानकारी दे रही हूँ ।

यह राग काफी थाट का राग हैं,इस राग में आरोह में शुद्ध ग व आव्रोह में कोमल ग यानि गंधार लगता हैं ,जाती औडव हैं ,इस राग का गायन वादन समय रात का हैं ।

सारंगी साज को सुरीला बजाना बहुत कठिन हैं ,उस परपंडित गोपाल मिश्रा जी ने इस राग में विलक्षण कठिन व द्रुत साथ ही सुरीली ताने बजायी हैं ,तो लीजिये सुनिए सारंगी परराग जोग का अद्भुत वादन ।

10/07/2008

कहाँ खो गया संगीत ?

आज बहुत दिनों बाद इस ब्लॉग पर कुछ लिखने जा रही हूँ,कंप्यूटर की समस्या और समय की कमी इन दोनों वजहों से पिछले कई दिनों से इस ब्लॉग पर कुछ नही लिख सकी । कुछ दिनों पूर्व रागों के परिचय से संबंधित एक पोस्ट पर आदरणीय तरुण जी ने पूछा था कि "राधिका जी आपको नही लगता कि आजकल शास्त्रीय रागों पर आधारित फिल्मी गाने बनना बंद हो गए हैं ."

अब जवाब यह हैं कि मुझे सिर्फ़ इतना ही नही लगता कि शास्त्रीय रागों पर आधारित गाने बनना बंद हो गए हैं ,बल्कि मुझे लगता हैं गीत बनना ही बंद हो गए हैं । संगीत किसे कहेंगे हम ,वह जो जिसमें मधुर स्वर ,उपयुक्त लय ,सुंदर बोल हो और उसे जिसे उसी सुन्दरता से गाया गया हो । आज जो गाने बन रहे हैं उसमे से १० भी नही ४ या ५ % ही ऐसे हैं जिन्हें संगीत कि विधा में रखा जा सकता हैं .बाकि जो हैं वो तो पता नही संगीत के नाम पर क्या हैं ?

आज से दो तिन दशक पहले फिल्मी गीत शास्त्रीय संगीत पर आधारित ही नही होते थे बल्कि बहुत सुंदर रचे हुए ,शब्दों और स्वरों से सजाये हुए ,और गाये हुए होते थे , पर आज न शब्दों का पता हैं न सुर का ,गाना तो हर कोई गा रहा हैं ,क्या करना हैं ,एक सुर पकड़ के कविता पाठ ही तो करना हैं ।

संगीत कला जिसे दैवीय, परालौकिक कहा गया हैं ,उसे सिखने में ,समझने में बरसो लग जातेहैं ,कंठ से निकलने वाली आवाज़, हर एक सुर पर गायक को बरसो मेहनत करनी पड़ती हैं ,गले की कितनी बारीकियों पर ध्यान देना पड़ता हैं ,तब कही जाकर एक मधुर गीत निकलता हैं ।

इसी तरह कविता मात्र शब्दों की जोड़तोड़ नही हैं ,नही मेरे मत से शब्दों का प्रवाह मात्र हैं ,कविता भावो और विचारो की सरिता हैं जो शब्दों के किनारों में बंध कर कल्पनारूपी हवा के झोकों में धीमे धीमे झूलती हुई ह्रदय के गीतों को गुंजरित करती हुई बहती चली जाती हैं ।

सृष्टि में सर्वत्र एक लय हैं ,लय जो जीवन को गति देती हैं, उल्लास देती हैं । पर जब यही लय सुर और शब्द पर इतनी हावी हो जाती हैं की सुर और शब्द उसके सामने बौने नज़र आते हैं और वह विशालकाय दानवी सी तो संगीत संगीत नही लगता ।

आजकल यही सब हो रहा हैं । मैं नही कहती की हर गीत शास्त्रीय रागों में निबद्ध ही होना चाहिए ,ऐसा हुआ तो इससे अच्छी कोई बात नही हो सकती ,पर कम से कम संगीत,संगीत तो लगना चाहिए ,चाहे वह किसी भी रागों में निबद्ध हो या लोक संगीत की धुनों पर थिरकता हुआ हो ।

वस्तुत: आज संगीत कहीं खो गया हैं , जो भी असांगितिक संगीत हैं ,वह श्रेष्ट संगीत के नाम पर इतना बिक रहा हैं की नई पीढी , युवा वर्ग ,बच्चे यह समझ ही नही पा रहे की संगीत क्या हैं ?शास्त्रीय संगीत को आ ऊ कहके उसका मजाक बनाया जा रहा हैं ,उसे सिखने समझने वालो को पुरा जन्म उस पर कुर्बान करने के बाद भी बहुत कम नाम ,धन और प्रशंसा मिलती हैं ,दूसरी तरफ़ चलती फिरती धुनें बनाने वाले और उसे गाने वाले रातों रात महान गायक संगीतज्ञों की सूचीं में आ जाते हैं । लगता हैं की संगीत कहीं खो गया हैं ।