6/18/2009

जब मुझे विचित्र वीणा वादन हेतु मिला आदरणीय स्वर्गीय पंडित किशन महाराज जी से आशीर्वचन

शाम के यही कोई आठ बजे का समय था , बनारस में गंगा मैया झूम झूम कर बह रही थी और कई युवा संगीत कलाकारों को शब्द ,स्वर और लय की सरिता में खो जाने के लिए प्रोत्साहित कर रही थी ,नगर के एक सभागार में 'आकाशवाणी संगीत प्रतियोगिता' के विजेताओ का संगीत प्रदर्शन हो रहा था ,मैं मंच पर विचित्र वीणा लेकर बैठी ,श्रोताओ की पहली पंक्ति में ही श्रद्धेय स्वर्गीय किशन महाराज जी को देखा और दोनों हाथ जोड़ कर उन्हें नमस्कार किया ,तत्पश्चात वीणा वादन शुरू किया ,जैसे ही वादन समाप्त समाप्त हुआ ,आदरणीय स्वर्गीय पंडित किशन महाराज जी मंच पर आए ,अपना हाथ मेरे सर पर रखा और कहा "वीणा अच्छा बजा रही हो ,खूब बजाओ "। उनका यह आशीर्वाद और फ़िर उनके हाथ से स्वर्ण पदक पाकर मेरी संगीत साधना सफल हो गई ,जीवन का वह क्षण मेरे लिए अविस्मर्णीय हैं ।

कई बार कई संगीत समारोह में उनका तबला सुनने का अवसर भी मुझे प्राप्त हुआ , उनका तबला चतुर्मिखी था ,तबले की सारी बातें उसमे शामिल थी , लव और स्याही का वे सुझबुझ से प्रयोग करते थे ,उनके उठान ,कायदे रेलों और परनो की विशिष्ट पहचान थी । उन्होंने तबले में गणित के महत्व को समझाया ,वे किसी भी मात्रा से तिहाई शुरू कर सम पर खत्म् करते थे ,जो की अत्यन्त ही कठिन हैं । प्रचलित तालो के अतिरिक्त वे अष्ट मंगल,जैत जय,पंचम सवारी , लक्ष्मी और गणेश तालो का वादन भी बहुत सुगमता और सुंदरता से करते थे . तबले की कई घरानों की रचनाओ का उनके पास समृद्ध भण्डार था ।

आदरणीय पंडित रवि शंकर ,उस्ताद बड़े गुलाम अली खान साहब,पंडित भीमसेन जोशी जी के साथ ही ,आदरणीय शम्भू महाराज ,सितारा देवी आदि के साथ उन्होंने संगत की । देश विदेश की कई संगीत सभाओ में तबला वादन की प्रस्तुति देकर तबले का प्रेम श्रोताओ के ह्रदय में अचल स्थापित किया ।

लय भास्कर ,संगती सम्राट ,काशी स्वर गंगा सम्मान, संगीत नाटक अकादमी सम्मान , ताल चिंतामणि ,लय चक्रवती , उस्ताद हाफिज़ अली खान व अन्य वादन उठाये के साथ पद्मश्री , पद्मभूषण अलंकरण से उन्हें नवाजा गया ।

वे ३ सितम्बर १९२३ की आधी रात को ही इस धरती पर आए थे और चार मई २००८ की आधी रात को ही वे इस धरती को छोड़,स्वर्ग की सभा में देवो के साथ संगत करने के लिए हमेशा के लिए चले गए। उनके जाने से हमने एक युगजयी संगीत दिग्गज को खो दिया ,पर उनका आशीर्वाद हम सभी के साथ हमेशा हैं ,इस बात से थोड़ा धैर्य मिलता हैं । आदरणीय स्वर्गीय किशन महाराज जी को मेरी भावपूर्ण श्रद्धांजलि :

सुनिए उनका तबला वादन






इति
वीणा साधिका
राधिका

(राधिका बुधकर )

6/04/2009

जीवन के रंग हज़ार ..


सुबह ६:२० का समय,आकाश का गहरा नीला रंग कुछ हल्का हो रहा हैं,रास्ते पर अब भी१०-१५ लोग ही नज़र आ रहे हैं,पंछियों की क्या कहिये ? उनके नाम पर यहाँ सिर्फ़ कबूतर ही नज़र आते हैं . सैकडो की संख्या में एक ईमारत से उड़कर दूसरी ईमारत तक पहुचते हुए ये किसी महासेना से कम नही दिखाई देते,जीवन युद्ध ' एकला चलो रे' के मंत्र से नही,वरन संगठन की शक्ति से ही जीता जा सकता हैं,शायद इस बात का इन्हे पुरा एहसास हैं ।

मैं घर की बालकनी में खडे सामने की पहाड़ी पर देख रही हूँ,जीवन वहाँ अभी शांत हैं,वहाँ के पशु पक्षियों और वृक्ष- पौधों को शायद अब भी प्रभात के आगमन का भान नही हैं । किसी छोटे बच्चे की तरह, रात में खिली चांदनी की रुपहली रजाई ओढे वो अभी सो ही रहे हैं और माँ उषा प्रभाती गा कर उन्हें जगाने का असफल प्रयास कर रही हैं ।
माँ उषा को अपने बच्चो को जगाने के प्रयास में विफल होता देख ,सूर्यदेव अपने रश्मिरथ पर सवार हो अपनी सुंदर किरणों का झिलमिल प्रकाश माँ प्रकृति के आँचल में भर देते हैं ,ताकि वह अपने आँचल में समेट अपने इन पुत्रो को जीवन मंच पर अपनी भूमिका का निर्वाह करने के लिए पुनः जागृत कर सके ।

जीवन यहाँ से अपना रंग बदलना शुरू करता हैं ,नवजात शिशु के समान सुबह का हल्का लाल रंग .. कुछ ही पलों में सहस्त्र रश्मियों के सुसज्जित सूर्य अपने अद्वितीय सौन्दर्य के साथ उदित होना प्रारम्भ करता हैं और माँ प्रकृति के शिशु अंगडाई भर,रात की रुपहली रजाई को हल्का सा झटक उठने का प्रयत्न करते हैं ,पहाड़ी के उपर बिखरा बादल वह रजाई ही तो हैं ।

मैं अपलक सृष्टि की इस अद्भुत लीला को निहार रही हूँ और सोच रही हूँ दिन और रात का इतना सुंदर चित्रण करने वाला चित्रकार वह आदि आनादी ईश्वर इस समय क्या कर रहा होगा ?शायद उसने अभी चेतना का प्रथम श्वास लिया होगा और यहाँ भूमंडल पर सवेरा हो गया ।

कुछ ही क्षणों में देखते ही देखते सूर्य पहाड़ी पर आकाश दिवा की तरह अपने पूर्ण रूप में जगमगाने लगता हैं ,चमचमाती किरणों से प्रस्फुटित हजारो रंग बिखर - बिखर कर अपनी दिव्यता से संसार को रंगीन करते हैं ,जीवन यही सारे रंग समेट कर जागता हैं,बढ़ता हैं, सँवरता हैं । कभी नाते रिश्तो के ताजे वासंती रंगो को समेट प्रेम का रंग बनाता हैं जीवन ,कभी जीत हार के चोखे फीके रंगो से चित्रकारी करता हैं जीवन ,भोर के लाल रुपहले रंगो साथ यह चितेरा रंगो की सुंदर इबारत रच देता हैं ,फ़िर ६० के दशक में सुनहले होते सर के बाल अनुभवो के रंगो की ऋचाओ को पठन अपने युवाओ को सुनाते हुए रात्रि की तारीकाओं से चमकीले चाँदी से सफ़ेद सर के साथ जीवन की संध्या को सांध्य प्रणाम कर आकाश में विलुप्त हो जाते हैं । आने वाली सुबह जीवन पुनः रश्मिरथ पर सवार हो -हजारो हजारो रंग समेट आएगा......


अपने विचारो में मैं जीवन के कितने रंग देख आई . मुंबई की भागम भाग वाले भीड़ भाड़ वाले जीवन में,सुबह का यह दृश्य भाग्यशालियों को ही नसीब होता हैं और मैं शयद उन्ही भाग्यवनों में से एक हूँ । सुना तो था मुंबई ऐसी मुंबई वैसी । सोचा जीवन को हजारो आकर और रूप देती मुंबई के जीवन का रंग भी देख ही लू और इसलिए मैं सपरिवार मुंबई रहने चली आई। कभी घर का सामान ठीक करने, कभी घर से जुड़ी सारी वयव्स्थाये करने में एक- देड महीने का समय पंख लगा कर उड़ गया .एक शहर से दुसरे शहर स्थानांतरण सरल तो कभी होता नही न ! इसी कारण ब्लॉग भी न लिख पाई।

आशा करती हूँ की अब जब मुंबई आ ही गई हूँ तो मुंबई और जीवन एक हजारो रंग देख ही लुंगी और जो भी रंग मुझे पसंद आएगा उसे आप पाठको तक अपनी पोस्ट के माध्यम से जरुर पहुचाउंगी ।