3/30/2010

सुर ना सधे.......................

 क्या गाऊ मैं?सुर के बिना जीवन सुना ............सुर ना सधे ?
कितना सुंदर गीत हैं न!और कितनी सुन्दरता से एक गायक की मनोवय्था का वर्णन हैं ।
सुर की महिमा अपार हैं ,सम्पूर्ण जीव सृष्टि मैं सुर विद्यमान हैं ,उसी एक सुर को साधने में संगीत्घ्यो की सारी आयु निकल जाती हैं ,पर सुर हैं की सधता ही नही हैं । कहते हैं ........
" तंत्री नाद कवित्त रस सरस नाद रति रंग ।
अनबुढे बूढे,तीरे जो बूढे सब अंग । "

अर्थात - तंत्री नाद यानि संगीत,कविता आदि कलाए ऐसी हैं की इनमे जो पुरी तरह से डूब गया वह तर गया और जो आधा-अधुरा डूबा ,वह डूब गया अर्थात उसे यह कलाए प्राप्त नही हो सकी ,वह असफल हो गया ।
सच हैं ,कला सीखना,कला से प्रेम करना एक बात हैं ,पर कला की साधना करना दूसरी बात!एक बार पक्का निर्णय हो गया की हमें यह कला सीखनी हैं तो उस कला के लिए अपना सम्पूर्ण जीवन समर्पित किए बिना काम नही चलता,सब कुछ भूल कर दिन रात एक करके रियाज़ करना होता हैं ,साधना करनी पड़ती हैं ,तपस्या करनी पड़ती हैं । तब कही जाकर सुर कंठ में उतरता हैं ,हाथो से सृजन बनकर वाद्यों की सुरिल लहरियों में बहता हैं ।

कलाकार होना कोई सरल काम नही। आप चाहे लेखक हो,संगीतग्य हो,चित्रकार हो ,उस विधा में आपको स्वयं को भुला देना होता हैं,और एक बार जब ये कलाए आपको अपना बना लेती हैं,जब आप इनके आनंद में खो जाते हैं ,तो दुनिया में कोई दुःख नही रहता ,कोई मुश्किल नही रहती ,आप योगियों,मनीषियों की तरह आत्मानंद प्राप्त करते हैं । जीवन सुंदर -सरल और मधुर हो जाता हैं। इन कलाओ के नशे में जो डूब गया उसके लिए नशा करने की जरुरत ही नही रह जाती,सुर सुधा से बढ़कर कोई सुधा नही ,कला सुधा ही सबसे सरस सुधा हैं।
इन कलाओ जब कृपा होती हैं ,तो सारे संसारी जनों का प्रेम मिलता हैं,तभी तो यह कलाए स्वयं ईश्वर को भी प्रिय रही हैं ।कंठ से जब सुर सरिता बहती हैं तो नही गाना पड़ता "सुर ना सधे क्या गाऊ मैं ?"बस उसके लिए जरुरी हैं साधना अर्थात रियाज़ !


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3/25/2010

दौर - ऐ क्रश कोर्स

एक समय की बात हैं ,एक राजा था ,उसके दो राजकुमार थे ,एक का नाम राम दुसरे  का श्याम ,राम बिचारा सीधा सादा,जो काम करता बड़ी मेहनत और लगन से,राजा ने उसे धनुर्विद्या सिखाई ,बड़े धैर्य से सीखी ,राजा ने चित्रकला सिखाई ,तो चित्रों में ही खुदको डुबो दिया ,राजा ने गायन कला सिखाई ,तो ऐसे सीखी की तानसेन को भी नाज़ हो जाये ,इस प्रकार राजा ने जो जो विद्या सिखाई उसने इसमें बड़ी मेहनत से निपुणता हासिल की .


श्याम .........उसका स्वभाव बड़ा ही चंचल, राजा जो सिखाता ,एक पल में ही उसका मन भर जाता ,एक दिन चित्र निकाले,दुसरे दिन कुछ गीत रचे ,तीसरे दिन अर्थमंत्री से धन का वह्य्वार जाना तो चौथे दिन तलवार बाजी की ,राम पर राजा को बड़ा गर्व था और श्याम की बड़ी चिंता .राम श्याम दोनों बड़े हुए ,राम का बड़ा नाम हुआ ,वह चक्रवती सम्राट हुआ और श्याम सब आधा अधुरा सीखकर कुछ भी न कर सका .

समय बढ़ता गया राम और श्याम बुढे हुए और उनकी मृत्यु  हो गयी .बरसो तक चित्रगुप्त के यहाँ उनके कर्मो के हिसाब किताब चलते रहे ,२१ वि सदी में राम और श्याम का पुनरजन्म हुआ.राम बिचारा सीधा साधा बालक ,जिस कला को सिखने बैठता घंटो उसी में डूबा रहता ,श्याम चंचल उसके लिए कुछ पल ही काफी थे कई कलाओ को जानने के लिए .माँ राम से तंग दुखी .उसे लगता मानसिक रूप से कमजोर हैं राम ,उसके लिए बड़ी चिंतित .श्याम हर प्रतियोगिता में अव्वल ,हमेशा औरो से एक कदम आगे .
समय बढता गया माँ सहीं थी राम न तो जीवन में बड़ा धन कमा पाया न नाम बस एक कमरे में बैठ कर चित्र ही बनाता रहा . बच्चे उस पर हँसते .लोगबाग ताने देते .श्याम ........श्याम अब राजा था ,जहाँ जाता छा जाता ,वो थोडा बहुत गा भी लेता ,जरुरत पड़ने पर चित्र भी बना लेता .कभी लंबा सा भाषण भी दे देता ,अच्छे खासे पैसे भी कमा लेता और एक बड़ा सा नेम  प्लेट भी उसने घर के दरवाजे पर लगा रखा था .


जानते हैं उसकी इस सफलता का राज क्या था? .. क्रश कोर्स .राम जहाँ सारा दिन सारी रात चित्र ही निकलता रहता ,श्याम उतने ही समय में कई सारे क्रश कोर्स कर डालता .उसने अपनी २६ साल की उम्र में ३२ क्रश कोर्स किये थे .चित्रकला का क्रश कोर्स ,सुसंवाद (उत्कृष्ट बातचीत )का क्रश कोर्स ,विभिन्न भाषाओ का क्रश कोर्स ,इसी तरह कई अनेक क्रश कोर्स .


समय क्या किसी के लिए रुकता हैं ,वह अपनी गति से बढ़ता गया ,राम और श्याम अब ५० की उम्र पार कर चुके ,श्याम को अब क्रश कोर्स में सीखी किसी कला से आनंद नहीं मिलता ,खुदका व्यवसाय भी अब उसके बच्चे ही सँभालते .एक समय जहाँ श्याम राजा था अब एक अकेला वृद्ध ,जिसको कोई भी मान सम्मान नहीं देता .


राम की कला धीरे धीरे बढती गयी ,देश विदेश में उसका नाम होने लगा ,लोग उसके बनाये चित्रों की प्रदर्शनियां देखने को व्याकुल रहते ,देश के महान चित्रकारों में उसका नाम शामिल हुआ ,५० -५५ की उम्र में उसके साथ कई लोग थे और थी उसकी चित्रकला जो हर सुख दुःख में उसका साथ देती .


जानते हैं यह कहानी मैंने आप को क्यों सुनाई ? कल ही अखबार में पढ़ा ,यही मेरे घर के पास एक छोटी सी म्यूजिक अकादेमी हैं ,जहाँ ,फास्ट म्यूजिक सिखाया जाता हैं .(फास्ट म्यूजिक संगीत की कोई नई विधा नहीं बल्कि संगीत को जल्दी जल्दी  सिखाने की विधा हैं )' वहाँ संगीत का क्रश कोर्स करवाया जा रहा हैं मैं सोचती रह गयी संगीत का क्रश कोर्स ???????????????????????????????शास्त्रीय संगीत का क्रश कोर्स(crash course ) .जिस विधा को सिखने के लिए मैंने इतने साल समर्पित कर दिए उसका क्रश कोर्स .


उस अकादेमी में सारे वाद्य हैं ,सुबह से रात तक अकादेमी में बच्चे ,युवा सीखते हैं .चार छ: महीने सीखने के बाद कहते हैं ,सच कुछ नहीं आया .      क्यों ?क्योकि मुंबई की तेज गति से ताल मिला कर अकादेमी में गायन वादन भी फटाफट सिखाया जाता हैं .अकादेमी में सिखाने वाले कई गुरु ऐसे भी हैं जिनका स्वर ज्ञान ही शुद्ध नहीं हैं .सिर्फ यही अकादेमी नहीं कई संगीत संस्थाओ का यही हाल हैं ,फटाफट बहुत कुछ सिखाया जाता हैं ,पर बच्चो को कोई भी चीज़ ठीक से नहीं आती ,न वे सुर लगा पाते हैं ,न ताल पकड पाते हैं ,चलिए इतना कर भी लिया तो गायन या वादन में कलाकारी का कोई नमो निशान नहीं होता .


मेरी छोटी बेटी को चिप्स वेफर्स बड़े पसंद हैं ,आते जाते आलू चिप्स वेफर्स खाती रहती हैं .मैंने घर में चिप्स लाना ही बंद कर दिया हैं ,क्योकि मैं चाहती हूँ की वो भरपेट खाना खाए ,पौष्टिक भोजन खाए ताकि हमेशा स्वस्थ रहे .शायद हर माँ यही चाहती हैं ,फिर संगीत और अन्य कलाओ के बारे में क्यों नहीं ??क्रश कोर्स करके थोडा बहुत जो सिखा उससे क्या हासिल हो पायेगा ,चलिए समझ लाने के लिए बच्चे को क्रश कोर्स करवा भी दिया तो कम से कम बाद में तो यह उसे उस कला की विधिवत  और सम्पूर्ण शिक्षा दी जानी जरुरी हैं ,जिसमे उसकी रूचि हो .


संगीत शिक्षण को व्यवसाय मात्र बनाकर सिर्फ आर्थिक दृष्टया इन संस्थाओ का भला हो सकता हैं ,लेकिन हम अपने देश की एक समृद्ध परम्परा का बड़ा नुकसान कर रहे हैं इस बात का जरा एहसास नहीं हैं इन संस्थाओ को .


बच्चे को स्कूल में डालते समय कितनी जाँच  पड़ताल करते हैं माता पिता ,कोई नया टेक्निकल इंस्टीट्युट ज्वाइन करने से पहले कितनी जानकारी लेते हैं उसके बारे में युवा .पर संगीत संस्थाओ को ज्वाइन करते समय सर्वसाधारण और सबसे महत्वपूर्ण बात होती हैं "आपके यहाँ फ़ीस कितनी हैं "?कितने महीने में कोर्स हो जायेगा ?क्या कोई सर्टिफिकेट मिलेगा ?


कल रामनवमी थी ,मैं सोच रही थी ,राम का जन्म हुए कई युग हुए ,पर आज भी बच्चे बुढे जवान कितना मानते हैं राम को .राम सच में कितने महान होंगे इतने युगों तक उनका गुणगान हम करते हैं .मैं मानती हूँ की राम महान थे ईश्वर थे ,पर कल कही यह विचार भी मन में आया की वह महान थे यह तो सच ही हैं ,लेकिन यह भी सच हैं की हमारे पूर्वजो ने ,हमारे बड़ो ने हमें राम की पूजा करना उन्हें ईश्वर मानना सिखाया ,यह उनके संस्कार ही हैं की राम और कृष्ण आज भी हमारे मन में वैसे ही जिवंत हैं .


जब तक हमारा किसी व्यक्ति से किसी कला से पूर्ण परिचय नहीं होता हम उसकी महानता को नहीं समझ पाते.जरुरी हैं की हम क्रश कोर्स करने के बजाये इन कलाओ के समीप जाये ,उनको समझे ,और अपनी सांगीतिक धरोहर को बचाए .