3/20/2009

बंसुरी के स्वर में डूबा नीला आसमां

मुरली से उनका प्रेम अब जग जाहिर होने लगा,भारत ही नही विदेशो में भी उनकी मुरली के सुर लोगो को आनंदित करने लगे । पंडित हरीप्रसाद चौरसिया जी की बांसुरी वादन की शिक्षा और कटक के मुंबई आकाशवाणी केन्द्र पर उनकी नियुक्ति के बारे में हमने आलेख के पिछले अंक में जाना ,अब आगे ...

पंडित हरिप्रसाद जी के मुरली के स्वर अब श्रोताओ पर कुछ ऐसा जादू करने लगे की उनके राग वादन को सुनकर श्रोता नाद ब्रह्म के सागर में डूब जाने लगे,उनका बांसुरी वादन श्रोताओ को बांसुरी के सुरों में खो जाने पर विवश करने लगा । संपूर्ण देश भर में उनके बांसुरी के कार्यक्रम होने लगे,भारत के साथ साथ यूरोप ,फ्रांस ,अमेरिका ,जापान आदि देशो में उनकी बांसुरी के स्वर गुंजायमान होने लगे ।

बड़ी बांसुरी पर शास्त्रीय संगीत बजाने के बाद छोटी बांसुरी पर जब पंडित हरिप्रसाद जी धुन बजाते तो श्रोता बरबस ही वाह वाह करते ,सबसे बड़ी बात यह की बड़ी बांसुरी के तुंरत बाद छोटी बांसुरी को बजाना बहुत कठिन कार्य हैं ,बड़ी बांसुरी की फूंक अलग और छोटी बांसुरी की फूंक अलग,दोनों बांसुरीयों पर उंगलिया रखने के स्थान अलग । ऐसा होते हुए भी जब वे धुन बजाते ,सुनने वाले सब कुछ भूल कर बस उनके बांसुरी के स्वरों में खो जाते ।

मैंने कई बार तानसेन संगीत समारोह में उनका बांसुरी वादन सुना हैं ,उनके आने की बात से ही तानसेन समारोह का पुरा पंडाल ठसाठस भर जाता ,रात के चाहे २ बजे या ४ श्रोता उनकी बांसुरी सुने बिना हिलते तक नही हैं ,पंडाल में अगर बैठने की जगह नही हो तो कई श्रोता देर रात तक पंडाल के बहार खडे रह कर उनकी बांसुरी सुनते हैं ,उनका धुन वादन श्रोताओ में बहुत ही लोकप्रिय हैं ,लगता हैं मानों स्वयं श्री कृष्ण बांसुरी पर धुन बजा कर नाद देव की स्तुति कर रहे हैं ।


उनके बांसुरी वादन के अनेको धवनी मुद्रण निकले हैं , १९७८ में "कृष्ण ध्वनी ""सन १९८१ में राग हेमवती ,देश भटियाली ,का रिकॉर्डिंग,१९९० में इम्मोर्टल सीरिज ,गोल्डन रागा कलेक्शन ,माया ,ह्रदय,गुरुकुल जैसे अत्यन्त प्रसिद्द रेकॉर्ड्स के साथ अन्य कई रिकॉर्ड निकले और अत्यंत लोकप्रिय हुए हैं ।

पंडित शिव कुमार शर्मा जी के साथ मिल कर शिव -हरी के नाम से प्रसिद्द जोड़ी ने चाँदनी ,डर,लम्हे सिलसिला आड़ी फिल्मो में दिया संगीत अत्यन्त लोकप्रिय हुआ ,इनके संगीत निर्देशित सिनेमा को उत्कृष्ट संगीत निर्देशन का फिल अवार्ड भी मिला हैं ।सुनते हैं सिलसिला फ़िल्म का गीत नीला आसमान सो गया ।

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पंडित हृदयनाथ मंगेशकर ,पंडित हरिप्रसाद चैरासियाँ जी के बारे में कहते हैं :"पंडित हरिप्रसाद और पंडित शिव कुमार शर्मा जी जैसे दिग्गज कलाकार हमारे साथ थे यह हमारा बडा भाग्य था । "

कई मराठी और हिन्दी गानों में बांसुरी पर बजाये पंडित जी के पाशर्व संगीत ने इन गानों में मानों प्राण भर दिए ।


पंडित जी को राष्ट्रिय व अंतरराष्ट्रिय कई सम्मान प्राप्त हुए , संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार ,पद्मश्री,पद्मभूषण ,पदम्विभूषण ,कोणार्क सम्मान,यश भारती सम्मान के साथ अन्य कई महत्वपूर्ण सम्मानों से सम्मानित किया गया ।

पश्चिमी संगीत के कलाकारों के साथ इनके फ्यूजन संगीत के कई रिकार्ड्स भी निकले । वृंदावन नामक मुमी के जुहू में स्थित गुरुकुल की स्थापना पंडित जी द्वारा की गई ,इस गुरुकुल में गुरु शिष्य परम्परा से देशी -विदेशी शिष्यों को संगीत की शिक्षा दी जाती है । पंडित जी का शिष्य समुदाय काफी बडा हैं ।

पंडित हरिप्रसाद जी बांसुरी पर सुंदर आलाप के साथ वादन का प्रारंभ करते हैं ,जोड़,झाला,मध्यलय ,द्रुत गत यह सब कुछ इनके वादन में निहित होता हैं ,इनकी वादन शैली,स्सुमधुर,तन्त्रकारी के साथ साथ लयकारी का भी समावेश किए हुए हैं ।




बांसुरी पर पंडित हरिप्रसाद जी के स्वर इसी तरह युगों युगों तक भारतीय संगीत प्रेमियों के ह्रदय पर राज्य करते रहे यही मंगल कामना ।

3/09/2009

बाजे मुरलिया बाजे ..................................


संगीत की होरी बरसाती मुरली ,सुर,श्रुतिमय सुंदर रंग बिखेरती मुरली . मुरली ,बंसरी ,बाँसुरी ......वंसी ,वेणु ,वंशिका कई सुंदर नामो से सुसज्जित हैं बाँसुरी का इतिहास ,प्राचीनकाल में लोक संगीत का प्रमुख वाद्य था बाँसुरी अधर धरे मोहन मुरली पर ,होठ पे माया विराजे ,बाजे मुरलियां बाजे ..................
मुरली और श्री कृष्ण एक दुसरे के पर्याय रहे हैं मुरली के बिना श्री कृष्ण की कल्पना भी नही की जा सकती उनकी मुरली के नाद रूपी ब्रह्म ने सम्पूर्ण चराचर सृष्टि को आलोकित सम्मोहित किया कृष्ण के बाद भी भारत में बांसुरी रही ,पर कुछ खोयी खोयी सी ,मौन सी . मानो श्री कृष्ण की याद में उसने स्वयं को भुला दिया हो ,उसका अस्तित्व तो भारत वर्ष में सदैव रहा . हो भी कैसे ? आख़िर वह कृष्ण प्रिया थी . किंतु श्री हरी के विरह में जो हाल उनके गोप गोपिकाओ का हुआ कुछ वैसा ही बाँसुरी का भी हुआ ,कुछ भूली -बिसरी,कुछ उपेक्षित सी बाँसुरी किसी विरहन की तरह तलाश रही थी अपने मुरलीधर को, अपने हरी को

युग बदल गए ,बाँसुरी की अवस्था जस की तस् रही ,युगों बाद कलियुग में पंडित पन्नालाल घोष जी ने अपने थक परिश्रम से बाँसुरी वाद्य में अनेक परिवर्तन कर ,उसकी वादन शैली में परिवर्तन कर बाँसुरी को पुनः भारतीय संगीत में सम्माननीय स्थान दिलाया लेकिन उनके बाद पुनः: बाँसुरी एकाकी हो गई


हरी बिन जग सुना मेरा ,कौन गीत सुनाऊ सखी री ?सुर,शबद खो गए हैं मेरे ,कौन गीत बजाऊ सखी री

बाँसुरी की इस अवस्था पर अब श्री कृष्ण को तरस आया और उसे उद्धारने को कलियुग में जहाँ श्री विजय राघव राव और रघुनाथ सेठ जैसे महान कलाकारों ने महान योगदान दिया ,वही अवतार लिया स्वयं श्री हरी ने ,अपनी प्रिय बाँसुरी को पुनः जन जन में प्रचारित करने ,उसके सुर में प्राण फुकने ,उसकी गरिमा पुनः लौटाने श्री हरी अवतरित हुए श्री हरीप्रसाद चौरसिया जी के रूप में पंडित हरी प्रसाद चौरसिया जी ......एक ऐसा नाम जो भारतीय शास्त्रीय संगीत में बाँसुरी की पहचान बन गया एक ऐसा नाम जिसने श्री कृष्ण की प्राणप्रिय बाँसुरी को ,पुनः: भारत वर्ष में ही नही बल्कि सम्पूर्ण विश्व में, सम्पूर्ण चराचर जगत में प्रतिष्ठित किया ,प्रतिस्थापित किया , प्रचारित किया गुंजारित किया सम्पूर्ण सृष्टि को बाँसुरी के नाद देव से आलोकित किया बाँसुरी के तम् हरण ब्रह्म नाद रूपी प्रकाश से ब्रह्माण्ड को


श्री कृष्ण का जन्म हुआ था मथुरा नगरी के कारावास में ,मथुरा नगरी याने यमुना की नगरी ,उसके पावन जल के सानिध्य में श्री कृष्ण का बालपन ,कुछ यौवन भी गुजरा . पंडित हरीप्रसाद जी का जन्म जुलाई १९३८ के दिन गंगा ,यमुना सरस्वती नदी के संगम पर बसी पुण्य पावन नगरी अलाहाबाद में हुआ , पहलवान पिता की संतान पंडित हरी प्रसाद जी को उनके पिताजी पहलवान ही बनाना चाहते थे ,किंतु उनका प्रेम तो भारतीय संगीत से था ,बाँसुरी से था शास्त्रीय गायन की शिक्षा पंडित राजाराम जी से प्राप्त की और बाँसुरी वादन की शिक्षा पंडित भोलानाथ जी से प्राप्त की संगीत साधना से पंडित हरिप्रसाद जी का बाँसुरी वादन सतेज होने लगा बाँसुरी वादन की परीक्षा में सफल होने के बाद पंडित जी आकाशवाणी पर बाँसुरी के कार्यक्रम देने लगे कुछ समय पश्चात् आकाशवाणी के कटक केन्द्र पर इनकी नियुक्ति हुई और इनके उत्कृष्ट कार्य के कारण वर्ष के भीतर ही आकाशवाणी के मुख्यालय मुंबई में इनका तबादला हो गया
पहले पंडित जी सीधी बाँसुरी बजाते थे ,तत्पश्चात उन्होंने आड़ी बाँसुरी पर संगीत साधना शुरू की ,बाँसुरी में गायकी अंग ,तंत्र वाद्यों का आलाप जोड़ आदि अंगो के समागम की साधना पंडित जी करने लगे उसी समय इनका संगीत प्रशिक्षण आदरणीय अन्नपूर्णा देवी जी के सानिध्य में प्रारम्भ हुआ ,विदुषी अन्नपूर्णा जी के संगीत शिक्षा से इनकी बाँसुरी और भी आलोकित हुई
आइये सुनते हैं पंडित हरिप्रसाद चौरसिया जी का बांसुरी वादन, तबले पर है उस्ताद जाकिर हुसैन. ये दुर्लभ विडियो लगभग ९३ मिनट का है. हमें यकीन है इसे देखना-सुनना आपके लिए भी एक सम्पूर्ण अनुभव रहेगा.
http://www.youtube.com/watch?v=oVxdjdJ0ZAc


अगली कड़ी में पंडित हरिप्रसाद चौरासियाँ जी की बांसुरी यात्रा सविस्तार

आलेख प्रस्तुतिकरण
विचित्र वीणा साधिका
राधिका बुधकर