8/05/2011

तारों की माला

आज बहुत दिनों के बाद ब्लॉग लिख रही हूँ ,पिछले महीने सांगीतिक कारणों से यूरोप गयी हुई थी ,वहां कुछ वर्कशॉपस ली,कुछ कार्यक्रम दिए. .वहां जाकर जाना की वहां के लोग भारतीय संगीत,कला और भारतियों का कितना सम्मान करते हैं.बहुत अच्छा लगा वहां जाकर,पराये देश में परायों ने अपनों सा प्यार दिया.वहां इतना अपनापन इतना प्यार मिला ,विचित्र वीणा और भारतीय संगीत के प्रति लोगो का इतना प्रेम और सम्मान देखकर इतनी मन: शांति मिली की आज भी मैं ईश्वर को धन्यवाद दे रही हूँ ..वहां की कई तस्वीरे हैं जो मैं बाद में पोस्ट करुँगी,आज के लिए वहां मैंने सिखाई और मेरे गुरूजी पंडित विश्व मोहन भट्ट जी की बनाई धुन जिसको कुछ शब्द मैंने भी दिए वह लोरी :