सुर से संगीत हैं और संगीत से जीवन संग सुरीली संगती।
सुर संगीत की उत्पत्ति का इतिहास हमने जाना ,भारतीय पाश्चात्य स्वर संगीत को जाना , किंतु सम्पूर्ण संगीत साम्राज्य के अधिष्ठाता सुर हैं क्या ?यह जानना भी तो आवश्यक हैं न ।
ध्वनी अर्थात एक ऐसा आवाज़ जिसे हम स्पष्ट पहचान सके और उसका पुनरुत्पादन संभव हो ।
हम अपने चारो और रोज़ विभिन्न ध्वनियाँ सुनते हैं ,किंतु सभी ध्वनियाँ कर्णप्रिय या मधुर नही होती .कुछ ध्वनियाँ मधुर होती हैं ,वो सुनने में अच्छी लगती हैं .कानो को प्रिय इन कर्णप्रिय ध्वनियों को नाद कहा गया । अधिक सरल भाषा में कहे तो नाद अर्थात वह ध्वनी जिससे संगीत उपजने की सम्भावना हो । इसी नाद रूपी ध्वनी से स्वर निर्माण होता हैं ।
आवाज़ किसकी हैं,वह मनुष्य की हैं ,किसी सांगीतिक वाद्य यंत्र की हैं ,आवाज़ या हम कहे नाद कितना बड़ा या छोटा हैं ,साथ ही आवाज़ की कंपन संख्या। यह तीन आवाज़ के महत्वपूर्ण घटक गुणधर्म हैं।
आवाज़ की कंपन संख्या frequency यह बताती हैं की एक सेकेण्ड में आवाज़ कितनी बार कंपित हुई हैं । यह कंपन संख्या कुछ समय तक एक जैसी और यथावत रहे तो निर्मिती होती हैं सुर की । कंपन संख्या बदलने से स्वर या सुर भी बदल जाता हैं । इन कंपन संख्याओ में अधिक अन्तर हो तो बदला हुआ स्वर एक साधारण श्रोता भी आसानी से समझ सकता हैं ,लेकिन अगर इन कंपन संख्याओ में अन्तर अत्यधिक कम हो तो स्वर में हुआ मामूली अंतर केवल स्वर की अच्छी पहचान रखने वाला संगीतग्य ही जान सकता हैं ।
अगर टीवी शोस का उदहारण लिया जाए ,तो कई बार गायक या गायिका सुर में नही गाते,ये सुर में नही गा रहे हैं यह संगीत प्रेमी आसानी से जान जाते हैं और कहते भी हैं की यह गायक बेसुरा हो रहा हैं । लेकिन कई बार सुरों निश्चित स्थान और गायक या गायिका के द्वारा गाये जाने वाले सुरों के स्थान(या कंपन संख्या ) में इतना- इतना कम अंतर होता हैं की एक संगीत रसिक को लगता हैं की गायन सुर में ही हो रहा हैं ,लेकिन जिन संगीतज्ञों के कान सुरों के मामले में पक्के हैं ,वह बता सकते हैं की यह कनसुरा हैं ।
सुरों की यह समझ विकसित होती हैं संगीत के प्रति अत्यन्त प्रेम ,साधना और अधिक से अधिक संगीत श्रवण से । तो आप भी सुनिए अच्छा संगीत और जान लीजिये सुरीले ,बेसुरे और कनसुरे में भेद ।
ध्वनि के तकनीकी पहलू तो ज्ञात थे - इसमें पिच, आयाम और आवृत्ति, और आवृत्तियों के गुणक (यही हैं जो भिन्न आवृत्ति के सुरों का श्रवण भी एक जैसा अनुभूत कराता है - जिसे शायद आप संगीत साधक Scale कहते हों, यह मूल आवृत्ति के गुणक ही होते हैं)। संगीत का प्राणियों पर प्रभाव निर्विवाद रूप से मान्य है। मनोदशा पर तो इसका तात्कालिक प्रभाव होता है ही। हम तो साधारण श्रोता है सुनते समय भी संगीत का आनंद लेना ही जानते हैं उसके विश्लेषण के लिये मष्तिष्क पर ज़ोर नहीँ देते। कभी कभी लाईव कार्यक्रमों में किसी गायक के गायन में क्षणिक रूप से, कहीँ-कहीँ "कुछ" पटरी से हटा हुआ अनुभूत होता है। शायद कुछ महान कलाकार इसे कभी कभी प्रयोग के तौर पर भी करते हैं और कुछ विशिष्टता सी लाते हैं। क्या विवादी स्वर यही होते हैं?
ReplyDeleteजितना सुनों-सुरों का ज्ञान तो बढ़ता ही है. अच्छा आलेख रहा, बधाई.
ReplyDeleteswar ke baare me kya kahun.... jitna gyan mile kam lagata hai.... aapko dhero badhaaee
ReplyDeletearsh
सुरों की रिश्तेदारी का सिलसिला अच्छा है, जारी रहे। राजीव भाई की टिप्पणी महत्वपूर्ण है। एक अनुरोध।
ReplyDeleteजहां ज़रूरी हो, वहीं चित्रों का प्रयोग करें। चित्रों का अनुपात सही नहीं लग रहा है। संख्या की दृष्टि से भी और आकार की दृष्टि से भी। इस पोस्ट में एक प्रतीकात्मक चित्र पर्याप्त होता। ज्यादा चित्र नेवीगेशन में दिक्कत पैदा करते हैं।
सुर से संगीत हैं, और संगीत से जीवन संग सुरीली संगति।
ReplyDeleteसुर से संगीत हैं तो असुर लेखक ही होंगे।
सुरों का सफर जारी रखें।
बधाई।
सुर और नाद से उपजा सँगीत आत्मा तक पहुँचता है - अच्छा आलेख -
ReplyDelete- लावण्या
मैं कोई ऐसा गीत गाऊं, कि आरजू जगाऊं, अगर तुम कहो.
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