सुबह ६:२० का समय,आकाश का गहरा नीला रंग कुछ हल्का हो रहा हैं,रास्ते पर अब भी१०-१५ लोग ही नज़र आ रहे हैं,पंछियों की क्या कहिये ? उनके नाम पर यहाँ सिर्फ़ कबूतर ही नज़र आते हैं . सैकडो की संख्या में एक ईमारत से उड़कर दूसरी ईमारत तक पहुचते हुए ये किसी महासेना से कम नही दिखाई देते,जीवन युद्ध ' एकला चलो रे' के मंत्र से नही,वरन संगठन की शक्ति से ही जीता जा सकता हैं,शायद इस बात का इन्हे पुरा एहसास हैं ।
मैं घर की बालकनी में खडे सामने की पहाड़ी पर देख रही हूँ,जीवन वहाँ अभी शांत हैं,वहाँ के पशु पक्षियों और वृक्ष- पौधों को शायद अब भी प्रभात के आगमन का भान नही हैं । किसी छोटे बच्चे की तरह, रात में खिली चांदनी की रुपहली रजाई ओढे वो अभी सो ही रहे हैं और माँ उषा प्रभाती गा कर उन्हें जगाने का असफल प्रयास कर रही हैं ।
माँ उषा को अपने बच्चो को जगाने के प्रयास में विफल होता देख ,सूर्यदेव अपने रश्मिरथ पर सवार हो अपनी सुंदर किरणों का झिलमिल प्रकाश माँ प्रकृति के आँचल में भर देते हैं ,ताकि वह अपने आँचल में समेट अपने इन पुत्रो को जीवन मंच पर अपनी भूमिका का निर्वाह करने के लिए पुनः जागृत कर सके ।
जीवन यहाँ से अपना रंग बदलना शुरू करता हैं ,नवजात शिशु के समान सुबह का हल्का लाल रंग .. कुछ ही पलों में सहस्त्र रश्मियों के सुसज्जित सूर्य अपने अद्वितीय सौन्दर्य के साथ उदित होना प्रारम्भ करता हैं और माँ प्रकृति के शिशु अंगडाई भर,रात की रुपहली रजाई को हल्का सा झटक उठने का प्रयत्न करते हैं ,पहाड़ी के उपर बिखरा बादल वह रजाई ही तो हैं ।
मैं अपलक सृष्टि की इस अद्भुत लीला को निहार रही हूँ और सोच रही हूँ दिन और रात का इतना सुंदर चित्रण करने वाला चित्रकार वह आदि आनादी ईश्वर इस समय क्या कर रहा होगा ?शायद उसने अभी चेतना का प्रथम श्वास लिया होगा और यहाँ भूमंडल पर सवेरा हो गया ।
कुछ ही क्षणों में देखते ही देखते सूर्य पहाड़ी पर आकाश दिवा की तरह अपने पूर्ण रूप में जगमगाने लगता हैं ,चमचमाती किरणों से प्रस्फुटित हजारो रंग बिखर - बिखर कर अपनी दिव्यता से संसार को रंगीन करते हैं ,जीवन यही सारे रंग समेट कर जागता हैं,बढ़ता हैं, सँवरता हैं । कभी नाते रिश्तो के ताजे वासंती रंगो को समेट प्रेम का रंग बनाता हैं जीवन ,कभी जीत हार के चोखे फीके रंगो से चित्रकारी करता हैं जीवन ,भोर के लाल रुपहले रंगो साथ यह चितेरा रंगो की सुंदर इबारत रच देता हैं ,फ़िर ६० के दशक में सुनहले होते सर के बाल अनुभवो के रंगो की ऋचाओ को पठन अपने युवाओ को सुनाते हुए रात्रि की तारीकाओं से चमकीले चाँदी से सफ़ेद सर के साथ जीवन की संध्या को सांध्य प्रणाम कर आकाश में विलुप्त हो जाते हैं । आने वाली सुबह जीवन पुनः रश्मिरथ पर सवार हो -हजारो हजारो रंग समेट आएगा......
अपने विचारो में मैं जीवन के कितने रंग देख आई . मुंबई की भागम भाग वाले भीड़ भाड़ वाले जीवन में,सुबह का यह दृश्य भाग्यशालियों को ही नसीब होता हैं और मैं शयद उन्ही भाग्यवनों में से एक हूँ । सुना तो था मुंबई ऐसी मुंबई वैसी । सोचा जीवन को हजारो आकर और रूप देती मुंबई के जीवन का रंग भी देख ही लू और इसलिए मैं सपरिवार मुंबई रहने चली आई। कभी घर का सामान ठीक करने, कभी घर से जुड़ी सारी वयव्स्थाये करने में एक- देड महीने का समय पंख लगा कर उड़ गया .एक शहर से दुसरे शहर स्थानांतरण सरल तो कभी होता नही न ! इसी कारण ब्लॉग भी न लिख पाई।
आशा करती हूँ की अब जब मुंबई आ ही गई हूँ तो मुंबई और जीवन एक हजारो रंग देख ही लुंगी और जो भी रंग मुझे पसंद आएगा उसे आप पाठको तक अपनी पोस्ट के माध्यम से जरुर पहुचाउंगी ।
मैं घर की बालकनी में खडे सामने की पहाड़ी पर देख रही हूँ,जीवन वहाँ अभी शांत हैं,वहाँ के पशु पक्षियों और वृक्ष- पौधों को शायद अब भी प्रभात के आगमन का भान नही हैं । किसी छोटे बच्चे की तरह, रात में खिली चांदनी की रुपहली रजाई ओढे वो अभी सो ही रहे हैं और माँ उषा प्रभाती गा कर उन्हें जगाने का असफल प्रयास कर रही हैं ।
माँ उषा को अपने बच्चो को जगाने के प्रयास में विफल होता देख ,सूर्यदेव अपने रश्मिरथ पर सवार हो अपनी सुंदर किरणों का झिलमिल प्रकाश माँ प्रकृति के आँचल में भर देते हैं ,ताकि वह अपने आँचल में समेट अपने इन पुत्रो को जीवन मंच पर अपनी भूमिका का निर्वाह करने के लिए पुनः जागृत कर सके ।
जीवन यहाँ से अपना रंग बदलना शुरू करता हैं ,नवजात शिशु के समान सुबह का हल्का लाल रंग .. कुछ ही पलों में सहस्त्र रश्मियों के सुसज्जित सूर्य अपने अद्वितीय सौन्दर्य के साथ उदित होना प्रारम्भ करता हैं और माँ प्रकृति के शिशु अंगडाई भर,रात की रुपहली रजाई को हल्का सा झटक उठने का प्रयत्न करते हैं ,पहाड़ी के उपर बिखरा बादल वह रजाई ही तो हैं ।
मैं अपलक सृष्टि की इस अद्भुत लीला को निहार रही हूँ और सोच रही हूँ दिन और रात का इतना सुंदर चित्रण करने वाला चित्रकार वह आदि आनादी ईश्वर इस समय क्या कर रहा होगा ?शायद उसने अभी चेतना का प्रथम श्वास लिया होगा और यहाँ भूमंडल पर सवेरा हो गया ।
कुछ ही क्षणों में देखते ही देखते सूर्य पहाड़ी पर आकाश दिवा की तरह अपने पूर्ण रूप में जगमगाने लगता हैं ,चमचमाती किरणों से प्रस्फुटित हजारो रंग बिखर - बिखर कर अपनी दिव्यता से संसार को रंगीन करते हैं ,जीवन यही सारे रंग समेट कर जागता हैं,बढ़ता हैं, सँवरता हैं । कभी नाते रिश्तो के ताजे वासंती रंगो को समेट प्रेम का रंग बनाता हैं जीवन ,कभी जीत हार के चोखे फीके रंगो से चित्रकारी करता हैं जीवन ,भोर के लाल रुपहले रंगो साथ यह चितेरा रंगो की सुंदर इबारत रच देता हैं ,फ़िर ६० के दशक में सुनहले होते सर के बाल अनुभवो के रंगो की ऋचाओ को पठन अपने युवाओ को सुनाते हुए रात्रि की तारीकाओं से चमकीले चाँदी से सफ़ेद सर के साथ जीवन की संध्या को सांध्य प्रणाम कर आकाश में विलुप्त हो जाते हैं । आने वाली सुबह जीवन पुनः रश्मिरथ पर सवार हो -हजारो हजारो रंग समेट आएगा......
अपने विचारो में मैं जीवन के कितने रंग देख आई . मुंबई की भागम भाग वाले भीड़ भाड़ वाले जीवन में,सुबह का यह दृश्य भाग्यशालियों को ही नसीब होता हैं और मैं शयद उन्ही भाग्यवनों में से एक हूँ । सुना तो था मुंबई ऐसी मुंबई वैसी । सोचा जीवन को हजारो आकर और रूप देती मुंबई के जीवन का रंग भी देख ही लू और इसलिए मैं सपरिवार मुंबई रहने चली आई। कभी घर का सामान ठीक करने, कभी घर से जुड़ी सारी वयव्स्थाये करने में एक- देड महीने का समय पंख लगा कर उड़ गया .एक शहर से दुसरे शहर स्थानांतरण सरल तो कभी होता नही न ! इसी कारण ब्लॉग भी न लिख पाई।
आशा करती हूँ की अब जब मुंबई आ ही गई हूँ तो मुंबई और जीवन एक हजारो रंग देख ही लुंगी और जो भी रंग मुझे पसंद आएगा उसे आप पाठको तक अपनी पोस्ट के माध्यम से जरुर पहुचाउंगी ।
अच्छा तभी कहूँ,इतने दिनों से आप नजर क्यों नहीं आ रहीं......
ReplyDeleteईश्वर करें, उस भीड़ भाड़ ताम झाम वाले शहर में भी रूहानी सुकून देने लायक बहुत कुछ आपको मिले...
tabhi aap gayab thi
ReplyDeleteऐसे ही जीवन के रंगों को हमारे साथ साझा करती रहें। अच्छी लगी आपकी पोस्ट।
ReplyDelete-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
राधिका जी
ReplyDeleteभारतीय शास्त्रीय संगीत के प्रति आपका यह लगाव देखकर एवं आपका ब्लाग पढ़कर दिल गदगद हो गया । चँूकि मैं शास्त्रीय संगीत से जूड़ा व्यक्ति हूँ साथ ही भारतीय संस्कृति को संरक्षित करना मेरा पेशा है। मैं वायलिन बजाता हूँ ।
डाक्टर अरविंद जी ने किसी वाद्य पर राग मालकौंस की फरमाइश की है। आप तक पहुँचा रहा हूँ।
ReplyDeleteमुंबई में आपका स्वागत है लेकिन सूर्योदय का इतना सुन्दर दृश्य वहां कहाँ.??? आप क्या मुलुंड या बोरीवली में रह रहीं हैं जहाँ से हो सकता सूर्य इतना सुन्दर उगता दीखता हो...वर्ना हमारी बालकनी से तो ये रोज का दृश्य है....सामने पहाड़ और उस पर से उगता सूर्य...अद्भुत
ReplyDeleteनीरज
राधिका जी आपकी पोस्ट रिफ्रेशिंग और ऊर्जा से भरी लगी. लेकिन केवल मुंबई नहीं दूसरे छोटे शहरों में भी लोग सुप्रभात के सौंदर्य को देखने और महसूस करने से वंचित रह जाते हैं, कुछ लाइफस्टाइल के कारण कुछ, मजबूरी के कारण. जैसे व्यावसायिक बाध्यता के कारण मुझे देर रात तक जागना पड़ता है. यदाकदा ही सूर्यदेव और पक्षियों को सुप्रभात बोल पाता हूं. लेकिन प्रकृति तो चौबीस घंटे आपका अभिवादन करने को तैयार है, महसूस तो करिए. इसके लिए देखें ojhagiri.blogspot.com
ReplyDeleteराधिका जी आपको अपने ब्लॉग पर अपने ईमेल का लिंक देना चाहिए । ताकि कोई आपसे संपर्क स्थापित करना चाहे तो उसके पास एक सूत्र हो ।
ReplyDeleteदरअसल मुझे पता था कि आपका ताल्लुक विचित्र वीणा से है इसलिए बताना जरूरी समझा कि विविध भारती पर इन दिनों सुबह साढ़े सात बजे संगीत सरिता में पंडित रमेश प्रेम से बातचीत पर आधारित और विचित्र वीणा पर केंद्रित श्रृंखला आ रही है । शुक्रवार और शनिवार को इसकी पहली और दूसरी कडियां प्रसारित हुई हैं ।
उम्मीद है कि आप अपने शहर में इसे सुन पायेंगी ।
कोई दिक्कत हो तो मेरे ईमेल पते पर संपर्क करें ।
यूनुस खान विविध भारती
Apke blog ko dekhkar bada sukun mila...wakai ap par veena-vadini Saraswati maan ki kripa hai.
ReplyDeleteसभी पाठको को बहुत बहुत धन्यवाद ,
ReplyDeleteधन्यवाद युनुस जी आपने जो जानकारी दी उस हेतु ,
मैं विविध भारती पर यह कड़ी सुनने का अवश्य प्रयत्न करुँगी,इस वीणा साधिका के लिए विचित्र वीणा पर आधारित यह कड़ी बहुत ज्ञानवर्धक होगी .
आपको पुनः: धन्यवाद