12/29/2010

वही रास्ता वही मंजिल

वह जहाँ होता हैं  वहाँ शांति ही शांति होती हैं ,प्रेम होता हैं ,विश्वास होता हैं ,उसका हर रूप ह्रदय में अद्भुत आनंद भर देता हैं .
उसकी खोज मैंने,आपने ही नही संसार के हर उस प्राणी ने की जिसने उसे प्रेम किया चाहा,उसकी जरुरत महसूस की हर संभव कोशिश की ,कुछ ने उसे पाया कुछ ने पकरे खोया .कुछ बिरलो ने तो उसकी खोज में  सारा संसार छोड़ दिया .किसीको वह 
मिला मंदिर में ,मस्जिद में,गुरूद्वारे में .किसी को शब्दों में ,किसी को चित्रों में तो किसी ने गीतों में उसे पा लिया .
नाद ब्रह्म स्वरुप हैं ,और संगीत ईश्वरीय कला .कभी वह सरस्वती स्वरूप हैं, 


कभी प्रथम पूज्य गणेश के उदर में बसा हुआ ,


कभी राधा के प्रेम विरह में ,

तो मीरा के भजन में ,

शंकर ,शारदा ,गणेश ,कृष्ण .ईश्वर के हर रूप से प्रस्फुटित हुआ हैं संगीत.
नए वर्ष की शुरुवात अगर खोज  के प्रथम स्वर और  अंतिम पड़ाव  से हो ,तो किसी भी संगीत प्रेमी और और संगीतज्ञ के लिए 
इससे सुखद और क्या हो सकता हैं ??
इन्टरनेट पर सर्च करते हुए मुझे कुछ बहुत अच्छी संगीतज्ञ ईश्वर की तस्वीरे मिली ..आप के लिए वही तस्वीरे ...
























9/17/2010

प्रथम पुरस्कार

कुछ तस्वीरे हैं मेरी प्यारी सुरस्वती की.देखिये और बताईये की जब घर में साक्षात् सुरस्वती विराजमान हो तो मन उसकी आराधना में ज्यादा लगना स्वाभाविक हैं न :-)
सोसायटी की फेंसीड्रेस  कॉम्पिटीशन में आरोही सरस्वती बनी और उसने बड़ा मन लगाकर सबके सामने वीणा बजायी (जितना वह बजा सकती हैं यानि वीणा के तारो को छेड़ना)

और अभी मिली ताज़ा खबर के  अनुसार आरोही को इस प्रतियोगिता में  १ से ५ और ६ से १२ दोनों ग्रुप्स में प्रथम पुरस्कार मिला हैं .गणपति बाप्पा की जय ............








8/15/2010

स्वतंत्रता दिवस की शुभकामनायें


 


आदरणीय गुरूजी का बजाय जन गण मन .सुनते समय कृपया अपने स्थान पर खड़े हो जाये यह अनुरोध 

http://ww.smashits.com/player/flash/flashplayer.cfm?SongIds=11311

8/08/2010

आसानियाँ या आज़ादियाँ ?

आज वीणापाणी पर एक गाना जो मुझे बहुत पसंद हैं क्योकि ये गाना जीवन को दिशा देता हैं .
पहले फोन नही थे हम घंटो लम्बे लम्बे ख़त लिखते थे ,पहले पिज्जा बर्गर नही थे हम हर त्यौहार देर देर तक बैठ कर परंपरागत मिठाइयाँ और पकवान बनाते थे .पहले एक जैसी धुन पर बनते एक ही ताल में बजते ,ताल तो क्या कहे रिदम पर बजते गाने नही थे ,न वेस्ट का अन्धानुकरण था ,न चकमक दीखते जीवन को  पाने की आशा में खोती स्वसंस्कृति और अत्यंत समृद्ध होकर भी अपने ही देश में अपने चाहने वालो को पुकारता भारतीय शास्त्रीय संगीत .तब सभाएं हुआ करती थी घंटों हर उम्र के संगीत रसिक कलाकार बैठ कर शास्त्रीय संगीत सुना,सिखा करते थे ,आज न वो समय हैं ,न किसी के पास वैसा समय .सब भाग रहे हैं ,भागती धुनों पर अपने उद्देश्य ,संस्कृति संगीत को जाने बिना .बस सिखने जो कार के साथ भागता म्युज़िक हो .भारतीय संगीत आज भी वही हैं ,वक्त के साथ उसके उपासको ने संगीत को और ऊँचे स्तर पर ला दिया हैं .लेकिन अब हमें आसनियो की आदत पड़ गयी हैं .झटपट नुडल्स की तरह ऐसा संगीत जो झटपट सीख ले प्रेजेंट कर ले  सीखना चाहते हैं .शास्त्रीय संगीत जिसमे विस्तार हैं सोच हैं पर अब उससे लोगो को इतना प्यार नही हैं .इन्ही आसानियों और आजादियों में फर्क बताता .सोच के रस्ते और भूल की राह की चेतावनी देता मेरा यह पसंदिता गाना .आपके लिए .

7/12/2010

दक्षिण और उत्तर के स्वर

आज वीणापाणी  में सुनिए मेरे पसंद के  राग :राग चारुकेशी और  राग किरवाणी  
राग चारुकेशी और राग किरवाणी .दोनों ही राग दक्षिणात्य   संगीत पद्धति (South  Indian  style  of  Indian  Classical  Music  )से लिए गए हैं .अर्थात दोनों राग ऐसे हैं जो दक्षिण में खूब गाये बजाये जाते हैं ,हिन्दुस्तानी या उत्तर भारतीय पद्धति में उनका समावेश किया गया हैं .दोनों ही राग बड़े सुंदर हैं  दक्षिणात्य संगीत पद्धति में रागों की समय वयवस्था को उतना महत्व नही है जितना की उत्तर भारतीय पद्धति  में हैं और इलसिए सबसे अच्छी बात यह हैं की ये सर्वकालिक  माने जाते हैं .आप सभी जानते हैं की हमारी संगीत पद्धति में सभी रागों के गायन वादन का अपना एक समय निश्चित हैं .वैसे माना  जाता हैं की चारुकेशी का समय मध्यरात्रि हैं और किरवाणी का सायंकाल परंतु  दोनों राग किसी भी समय गाये बजाये जा सकते हैं .समय का कोई बंधन नही .ये राग इतने  सरल और सुमधुर हैं की इनमे कलाकार स्वरों की मनचाही  कल्पना कर सकता हैं ,अन्य रागों की तरह इनमे कोई कड़क बंधन भी नही हैं ,स्वरों के पंखो पर आसीन कलाकार राग व्योम में स्वकल्पना के कई रंग बिखरा सकता हैं .

राग चारुकेशी दक्षिणात्य पद्धति के चारुकेशी  मेल से ही उत्पन्न हैं ,इस राग की सम्पूर्ण जाती का राग हैं अर्थात इसमें सभी स्वर लगते हैं ध,नि कोमल हैं बाकी स्वर शुद्ध हैं .प् वादी सा संवादी हैं .
पंडित देबाशीष भट्टाचार्य राग चारुकेशी :







राग किरवानी :किरवानी मेल से ही उत्पन्न .ग और ध कोमल बाकि स्वर शुद्ध .वादी सा संवादी प ,जाती सम्पूर्ण
पंडित  रविशंकर :राग किरवानी



पंडित शिवकुमार शर्मा :राग किरवाणी


http://old.musicindiaonline.com/p/x/vUfxSKwT1t.As1NMvHdW/

4/06/2010

क्या ये देशद्रोह नहीं ?(सभी भारतियों से एक अपील )

मुंबई का वाशी इलाका ,शाम के सात का समय.कंधे पर गिटार लिए बड़े उदास मन से मैं घर को लौट रही थी ,ऑटो में बैठ कर घर कब पहुंची कुछ पता नहीं ,पुरे समय मेरा दिमाग सोचता रहा ,कभी सारी बातो के लिए मन में दुःख हो रहा था,कभी अपने आप पर गुस्सा आ रहा था .हुआ कुछ यह था की मेरे यहाँ आने वाले शिष्यों के लिए मुझे गिटार खरीदना था ,मेरे घर से वाशी की यह दुकान सबसे पास पड़ती हैं ,सोचा यही से गिटार खरीद लेती हूँ.दुकानदार से पूछा भाई हवाइयन गिटार हैं ,उसने मुझे कुछ ऐसी नज़र से देखा जैसे मैंने कोई पुरातत्व संग्रहालय में रखी जाने वाली सातसौ साल पुरानी चीज़ मांगली हो .बोला अरे दीदी आप क्या बात कर रही हो ,आजकल ये गिटार बिकती ही कहाँ  हैं ,कोई नहीं बजाता,ये सब तो पुरानी बातें हैं ,मेरे यहाँ वेस्टर्न गिटार इलेक्ट्रोनिक गिटार सब हैं आप वह ले जाईये ,मैंने कहाँ नहीं कोई बात नहीं मुझे हवाइयन  गिटार ही चाहिए .बोला आप उसे बजा कर क्या करोगी ,बेकार हैं ,कोई नहीं सुनता ,सब तो यही म्यूजिक सुनते हैं .आप क्यों सीखना चाहती हो ?कुछ नहीं मिलेगा इंडियन म्यूजिक बजाकर सब यही वेस्टर्न ही पसंद करते हैं .

उस समय न जाने क्यों उससे कुछ बात करने का मन नहीं हुआ .लेकिन बाद में मुझे स्वयं पर ही बहुत गुस्सा आया,दुसरे दिन फिर गिटार खरीदने मैं उसी दुकान पर गयी ,स्वभावत: उस दुकानदार ने वही सब बातें बताई ,पर फिर मैंने उसे अपना परिचय दिया ,उसे बताया की मैं अपने लिए नहीं अपने शिष्यों के लिए गिटार खरीद रही हूँ ,और अगर उसे भारतीय संगीत और उससे जुडी परम्परा ,लोकप्रियता और महानता के बारे में कुछ नहीं पता तो उसे ऐसी बातें करके भारतीय संगीत का अपमान नहीं करना चाहिए .

कल मेरे एक शिष्य के साथ फिर कुछ ऐसा ही हुआ ,वह गया यहाँ के एक बड़े से मॉल में गिटार खरीदने ,गिटार चेक करने के लिए उसने उसे इंडियन स्टाइल से बजाना शुरू किया ,लेकिन दूकानदार ने कहाँ अरे ये तो गलत तरीका हैं ,यह तो सितार बजाने का तरीका हैं ,गिटार तो कभी भी ऐसे नहीं बजता ,अपना टाइम वेस्ट मत करो,वेस्टर्न म्यूजिक सीखो ,सब वही सुनते हैं .ऐसे म्यूजिक को कोई नहीं सुनता ,जबसे ये बात मेरे शिष्य ने मुझे बताई हैं ,तबसे बड़ा गुस्सा आ रहा हैं .

आप जानते हैं मेरे पास हर दिन कम से कम तीन से चार फोन आते हैं ,हर बार वही प्रश्न ,क्या आप वेस्टर्न गिटार सिखाती हैं ?हमें सीखनी हैं .हर बार जब मैं यह पूछती हूँ की आपको वेस्टर्न गिटार ही क्यों सीखनी हैं तो उत्तर मिलता हैं क्योकि सब वही बजाते हैं .

मुद्दा यह नहीं हैं की लोग वेस्टर्न म्यूजिक सीख रहे हैं,उससे भी बढ़कर मुद्दे की बात यह हैं की वो क्यों सीख रहे हैं ?क्या भारतीय संगीत इतना बेकार रहा हैं ,या उसे सीखना वाकई बोरिंग और अत्यंत कठिन हैं ,या उसे सिखने में वाकई इतना ज्यादा समय देना पड़ता हैं जो आजकल देना संभव नहीं हैं .

सच यह हैं की नयी पीढ़ी को भारतीय संगीत क्या हैं यह पता ही नहीं हैं ,बॉलीवुड सिनेमा में पहले जो गाने रागों पर आधारित होते थे,अब गानों में हीरो वेस्टर्न गिटार हाथ में ले कोई इंडियन गाना गाते हैं .मॉल्स में जहाँ तह वेस्टर्न म्यूजिक बजता हैं ,वही दुकानों में बिकता हैं .पहले प्लेनेटेम में जहाँ भारतीय संगीत का विभाग सुंदर केसेट्स और सिड़ीस से भरा रहता था ,वहाँ अब एक दो चुनिंदा सिड़ीस ही नज़र आती हैं .

हम भारतीय हैं ,बड़े आनंद से भारत में रहते हैं ,देश की चुनाव प्रक्रिया में वोट दे दिया तो दिया.कभी देश की दुर्वय्वस्था पर बड़ा सा लेक्चर झाड देते हैं .लेकिन अपने देश की संस्कृति की रक्षा के लिए हम कितने सजग हैं .हम सुबह उठते हैं ,काम पर जाते हैं खाते पीते सो जाते हैं.जो लोग भारतीय संगीत की हानी परोक्ष अपरोक्ष रूप से कर रहे हैं ,उनका विरोध क्या हम कर रहे हैं ?जो लोग भारतीय संगीत के बारे में ऐसी भ्रांतियां फैला रहे हैं ,जो लोग मिडिया और अन्य संचार माध्यमो के द्वारा संभव होकर भी भारतीय संगीत के लिए कुछ नहीं करके वेस्टर्न की धुन बजा बजा कर हमारे युवाओ को भ्रमित कर रहे हैं उनके बारे में हमने क्या सोचा हैं ?क्या ये देश द्रोह नहीं हैं ?हमारे संगीत मुनिजनो ने संगीत के प्रचार प्रसार के लिए अपनी सारी उम्र लगा दी और हम ?

अगर आपको लगता हैं की यह गलत हैं ,आप भारतीय संगीत को पसंद करते हैं ,जाने अनजाने गुनगुनाते हैं ,फिर वह लोक संगीत हो या उपशास्त्रीय ,ग़ज़ल भजन,गीत ,शास्त्रीय कुछ भी ,तो आप वीणापाणी की भारतीय संगीत के प्रचार की  मुहीम का हिस्सा बन सकते हैं.अपना प्रिय संगीत ,आपके आसपास कितने लोग भारतीय संगीत सीख रहे हैं ,इसकी जानकारी ,जो सीख नहीं रहे वो क्यों नहीं सीख रहे इसकी जानकारी ,अगर आपका बच्चा स्कूल में सीख रहा हैं तो वह कौनसा संगीत सीख रहा हैं ,आपके आसपास कौन कौनसी संगीत संस्थाएं संगीत शिक्षा दे रही हैं ,और वह किस तरीके से और क्या सीख रही हैं ,यह सब बातें मुझे लिखकर भेज सकते हैं ,आपके नाम के साथ वह में अपने ब्लॉग पर प्रकाशित करुँगी ,वीणापाणी का एक उद्देश्य हैं भारतीय संगीत का प्रचार .मुझे उसके लिए हर भारतीय की मदद चाहिए .एक भारतीय होने के नाते मैं भारतीय संगीत को नयी पीढ़ी से दूर होते हुए नहीं देख सकती .भरोसा हैं की आप सब भी नहीं देख सकते .इसलिए मुझे अपने विचार लिख भेजिए .अपने बच्चो को भारतीय संगीत के बारे में जानकारी दे.अगर आप पत्रकार हैं तो कृपया अपने लेख का विषय इस समस्या को बनाये .आप सभी श्रेष्ट ब्लोगर हैं कृपया ब्लॉग जगत में इस गंभीर विषय में चिंतन करे इस पर लिखे . 

भारतीय संगीत साधिका 
डॉ. राधिका 

3/30/2010

सुर ना सधे.......................

 क्या गाऊ मैं?सुर के बिना जीवन सुना ............सुर ना सधे ?
कितना सुंदर गीत हैं न!और कितनी सुन्दरता से एक गायक की मनोवय्था का वर्णन हैं ।
सुर की महिमा अपार हैं ,सम्पूर्ण जीव सृष्टि मैं सुर विद्यमान हैं ,उसी एक सुर को साधने में संगीत्घ्यो की सारी आयु निकल जाती हैं ,पर सुर हैं की सधता ही नही हैं । कहते हैं ........
" तंत्री नाद कवित्त रस सरस नाद रति रंग ।
अनबुढे बूढे,तीरे जो बूढे सब अंग । "

अर्थात - तंत्री नाद यानि संगीत,कविता आदि कलाए ऐसी हैं की इनमे जो पुरी तरह से डूब गया वह तर गया और जो आधा-अधुरा डूबा ,वह डूब गया अर्थात उसे यह कलाए प्राप्त नही हो सकी ,वह असफल हो गया ।
सच हैं ,कला सीखना,कला से प्रेम करना एक बात हैं ,पर कला की साधना करना दूसरी बात!एक बार पक्का निर्णय हो गया की हमें यह कला सीखनी हैं तो उस कला के लिए अपना सम्पूर्ण जीवन समर्पित किए बिना काम नही चलता,सब कुछ भूल कर दिन रात एक करके रियाज़ करना होता हैं ,साधना करनी पड़ती हैं ,तपस्या करनी पड़ती हैं । तब कही जाकर सुर कंठ में उतरता हैं ,हाथो से सृजन बनकर वाद्यों की सुरिल लहरियों में बहता हैं ।

कलाकार होना कोई सरल काम नही। आप चाहे लेखक हो,संगीतग्य हो,चित्रकार हो ,उस विधा में आपको स्वयं को भुला देना होता हैं,और एक बार जब ये कलाए आपको अपना बना लेती हैं,जब आप इनके आनंद में खो जाते हैं ,तो दुनिया में कोई दुःख नही रहता ,कोई मुश्किल नही रहती ,आप योगियों,मनीषियों की तरह आत्मानंद प्राप्त करते हैं । जीवन सुंदर -सरल और मधुर हो जाता हैं। इन कलाओ के नशे में जो डूब गया उसके लिए नशा करने की जरुरत ही नही रह जाती,सुर सुधा से बढ़कर कोई सुधा नही ,कला सुधा ही सबसे सरस सुधा हैं।
इन कलाओ जब कृपा होती हैं ,तो सारे संसारी जनों का प्रेम मिलता हैं,तभी तो यह कलाए स्वयं ईश्वर को भी प्रिय रही हैं ।कंठ से जब सुर सरिता बहती हैं तो नही गाना पड़ता "सुर ना सधे क्या गाऊ मैं ?"बस उसके लिए जरुरी हैं साधना अर्थात रियाज़ !


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3/25/2010

दौर - ऐ क्रश कोर्स

एक समय की बात हैं ,एक राजा था ,उसके दो राजकुमार थे ,एक का नाम राम दुसरे  का श्याम ,राम बिचारा सीधा सादा,जो काम करता बड़ी मेहनत और लगन से,राजा ने उसे धनुर्विद्या सिखाई ,बड़े धैर्य से सीखी ,राजा ने चित्रकला सिखाई ,तो चित्रों में ही खुदको डुबो दिया ,राजा ने गायन कला सिखाई ,तो ऐसे सीखी की तानसेन को भी नाज़ हो जाये ,इस प्रकार राजा ने जो जो विद्या सिखाई उसने इसमें बड़ी मेहनत से निपुणता हासिल की .


श्याम .........उसका स्वभाव बड़ा ही चंचल, राजा जो सिखाता ,एक पल में ही उसका मन भर जाता ,एक दिन चित्र निकाले,दुसरे दिन कुछ गीत रचे ,तीसरे दिन अर्थमंत्री से धन का वह्य्वार जाना तो चौथे दिन तलवार बाजी की ,राम पर राजा को बड़ा गर्व था और श्याम की बड़ी चिंता .राम श्याम दोनों बड़े हुए ,राम का बड़ा नाम हुआ ,वह चक्रवती सम्राट हुआ और श्याम सब आधा अधुरा सीखकर कुछ भी न कर सका .

समय बढ़ता गया राम और श्याम बुढे हुए और उनकी मृत्यु  हो गयी .बरसो तक चित्रगुप्त के यहाँ उनके कर्मो के हिसाब किताब चलते रहे ,२१ वि सदी में राम और श्याम का पुनरजन्म हुआ.राम बिचारा सीधा साधा बालक ,जिस कला को सिखने बैठता घंटो उसी में डूबा रहता ,श्याम चंचल उसके लिए कुछ पल ही काफी थे कई कलाओ को जानने के लिए .माँ राम से तंग दुखी .उसे लगता मानसिक रूप से कमजोर हैं राम ,उसके लिए बड़ी चिंतित .श्याम हर प्रतियोगिता में अव्वल ,हमेशा औरो से एक कदम आगे .
समय बढता गया माँ सहीं थी राम न तो जीवन में बड़ा धन कमा पाया न नाम बस एक कमरे में बैठ कर चित्र ही बनाता रहा . बच्चे उस पर हँसते .लोगबाग ताने देते .श्याम ........श्याम अब राजा था ,जहाँ जाता छा जाता ,वो थोडा बहुत गा भी लेता ,जरुरत पड़ने पर चित्र भी बना लेता .कभी लंबा सा भाषण भी दे देता ,अच्छे खासे पैसे भी कमा लेता और एक बड़ा सा नेम  प्लेट भी उसने घर के दरवाजे पर लगा रखा था .


जानते हैं उसकी इस सफलता का राज क्या था? .. क्रश कोर्स .राम जहाँ सारा दिन सारी रात चित्र ही निकलता रहता ,श्याम उतने ही समय में कई सारे क्रश कोर्स कर डालता .उसने अपनी २६ साल की उम्र में ३२ क्रश कोर्स किये थे .चित्रकला का क्रश कोर्स ,सुसंवाद (उत्कृष्ट बातचीत )का क्रश कोर्स ,विभिन्न भाषाओ का क्रश कोर्स ,इसी तरह कई अनेक क्रश कोर्स .


समय क्या किसी के लिए रुकता हैं ,वह अपनी गति से बढ़ता गया ,राम और श्याम अब ५० की उम्र पार कर चुके ,श्याम को अब क्रश कोर्स में सीखी किसी कला से आनंद नहीं मिलता ,खुदका व्यवसाय भी अब उसके बच्चे ही सँभालते .एक समय जहाँ श्याम राजा था अब एक अकेला वृद्ध ,जिसको कोई भी मान सम्मान नहीं देता .


राम की कला धीरे धीरे बढती गयी ,देश विदेश में उसका नाम होने लगा ,लोग उसके बनाये चित्रों की प्रदर्शनियां देखने को व्याकुल रहते ,देश के महान चित्रकारों में उसका नाम शामिल हुआ ,५० -५५ की उम्र में उसके साथ कई लोग थे और थी उसकी चित्रकला जो हर सुख दुःख में उसका साथ देती .


जानते हैं यह कहानी मैंने आप को क्यों सुनाई ? कल ही अखबार में पढ़ा ,यही मेरे घर के पास एक छोटी सी म्यूजिक अकादेमी हैं ,जहाँ ,फास्ट म्यूजिक सिखाया जाता हैं .(फास्ट म्यूजिक संगीत की कोई नई विधा नहीं बल्कि संगीत को जल्दी जल्दी  सिखाने की विधा हैं )' वहाँ संगीत का क्रश कोर्स करवाया जा रहा हैं मैं सोचती रह गयी संगीत का क्रश कोर्स ???????????????????????????????शास्त्रीय संगीत का क्रश कोर्स(crash course ) .जिस विधा को सिखने के लिए मैंने इतने साल समर्पित कर दिए उसका क्रश कोर्स .


उस अकादेमी में सारे वाद्य हैं ,सुबह से रात तक अकादेमी में बच्चे ,युवा सीखते हैं .चार छ: महीने सीखने के बाद कहते हैं ,सच कुछ नहीं आया .      क्यों ?क्योकि मुंबई की तेज गति से ताल मिला कर अकादेमी में गायन वादन भी फटाफट सिखाया जाता हैं .अकादेमी में सिखाने वाले कई गुरु ऐसे भी हैं जिनका स्वर ज्ञान ही शुद्ध नहीं हैं .सिर्फ यही अकादेमी नहीं कई संगीत संस्थाओ का यही हाल हैं ,फटाफट बहुत कुछ सिखाया जाता हैं ,पर बच्चो को कोई भी चीज़ ठीक से नहीं आती ,न वे सुर लगा पाते हैं ,न ताल पकड पाते हैं ,चलिए इतना कर भी लिया तो गायन या वादन में कलाकारी का कोई नमो निशान नहीं होता .


मेरी छोटी बेटी को चिप्स वेफर्स बड़े पसंद हैं ,आते जाते आलू चिप्स वेफर्स खाती रहती हैं .मैंने घर में चिप्स लाना ही बंद कर दिया हैं ,क्योकि मैं चाहती हूँ की वो भरपेट खाना खाए ,पौष्टिक भोजन खाए ताकि हमेशा स्वस्थ रहे .शायद हर माँ यही चाहती हैं ,फिर संगीत और अन्य कलाओ के बारे में क्यों नहीं ??क्रश कोर्स करके थोडा बहुत जो सिखा उससे क्या हासिल हो पायेगा ,चलिए समझ लाने के लिए बच्चे को क्रश कोर्स करवा भी दिया तो कम से कम बाद में तो यह उसे उस कला की विधिवत  और सम्पूर्ण शिक्षा दी जानी जरुरी हैं ,जिसमे उसकी रूचि हो .


संगीत शिक्षण को व्यवसाय मात्र बनाकर सिर्फ आर्थिक दृष्टया इन संस्थाओ का भला हो सकता हैं ,लेकिन हम अपने देश की एक समृद्ध परम्परा का बड़ा नुकसान कर रहे हैं इस बात का जरा एहसास नहीं हैं इन संस्थाओ को .


बच्चे को स्कूल में डालते समय कितनी जाँच  पड़ताल करते हैं माता पिता ,कोई नया टेक्निकल इंस्टीट्युट ज्वाइन करने से पहले कितनी जानकारी लेते हैं उसके बारे में युवा .पर संगीत संस्थाओ को ज्वाइन करते समय सर्वसाधारण और सबसे महत्वपूर्ण बात होती हैं "आपके यहाँ फ़ीस कितनी हैं "?कितने महीने में कोर्स हो जायेगा ?क्या कोई सर्टिफिकेट मिलेगा ?


कल रामनवमी थी ,मैं सोच रही थी ,राम का जन्म हुए कई युग हुए ,पर आज भी बच्चे बुढे जवान कितना मानते हैं राम को .राम सच में कितने महान होंगे इतने युगों तक उनका गुणगान हम करते हैं .मैं मानती हूँ की राम महान थे ईश्वर थे ,पर कल कही यह विचार भी मन में आया की वह महान थे यह तो सच ही हैं ,लेकिन यह भी सच हैं की हमारे पूर्वजो ने ,हमारे बड़ो ने हमें राम की पूजा करना उन्हें ईश्वर मानना सिखाया ,यह उनके संस्कार ही हैं की राम और कृष्ण आज भी हमारे मन में वैसे ही जिवंत हैं .


जब तक हमारा किसी व्यक्ति से किसी कला से पूर्ण परिचय नहीं होता हम उसकी महानता को नहीं समझ पाते.जरुरी हैं की हम क्रश कोर्स करने के बजाये इन कलाओ के समीप जाये ,उनको समझे ,और अपनी सांगीतिक धरोहर को बचाए .