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2/04/2013

VeenaPani The Institute Of Indian Classical Music

VeenaPani 

The Institute Of Indian Classical Music


The biggest asset of Indian culture is its music. The Indian classical music is one of the richest heritage of our country. The scope of Hindustani classical music is so vast that it cannot be scaled in degrees and courses.It is meant to be learned and pursued for a lifetime. Veenapani- The institute of Indian classical music is a place where students who are keen on pursuing the art of Indian classical music ,are tutored in a way to master this art. Our students are learners and worshippers of music and they need not test their knowledge in terms of examinations. 
Along with vocals we also teach all kinds of instruments like Vichitraveena, sitar,violin,Indian slide guitar,rudra veena,keyboard,santoor,jaltarang etc.
Along with shastriya(classical) music we also teach upa-shastriya(semi-classical) and light music. All those who are whole-heartedly ready to learn music are most welcome at our institute.Its in Navi Mumbai India 




Ph-09833703592


12/29/2010

वही रास्ता वही मंजिल

वह जहाँ होता हैं  वहाँ शांति ही शांति होती हैं ,प्रेम होता हैं ,विश्वास होता हैं ,उसका हर रूप ह्रदय में अद्भुत आनंद भर देता हैं .
उसकी खोज मैंने,आपने ही नही संसार के हर उस प्राणी ने की जिसने उसे प्रेम किया चाहा,उसकी जरुरत महसूस की हर संभव कोशिश की ,कुछ ने उसे पाया कुछ ने पकरे खोया .कुछ बिरलो ने तो उसकी खोज में  सारा संसार छोड़ दिया .किसीको वह 
मिला मंदिर में ,मस्जिद में,गुरूद्वारे में .किसी को शब्दों में ,किसी को चित्रों में तो किसी ने गीतों में उसे पा लिया .
नाद ब्रह्म स्वरुप हैं ,और संगीत ईश्वरीय कला .कभी वह सरस्वती स्वरूप हैं, 


कभी प्रथम पूज्य गणेश के उदर में बसा हुआ ,


कभी राधा के प्रेम विरह में ,

तो मीरा के भजन में ,

शंकर ,शारदा ,गणेश ,कृष्ण .ईश्वर के हर रूप से प्रस्फुटित हुआ हैं संगीत.
नए वर्ष की शुरुवात अगर खोज  के प्रथम स्वर और  अंतिम पड़ाव  से हो ,तो किसी भी संगीत प्रेमी और और संगीतज्ञ के लिए 
इससे सुखद और क्या हो सकता हैं ??
इन्टरनेट पर सर्च करते हुए मुझे कुछ बहुत अच्छी संगीतज्ञ ईश्वर की तस्वीरे मिली ..आप के लिए वही तस्वीरे ...
























4/06/2010

क्या ये देशद्रोह नहीं ?(सभी भारतियों से एक अपील )

मुंबई का वाशी इलाका ,शाम के सात का समय.कंधे पर गिटार लिए बड़े उदास मन से मैं घर को लौट रही थी ,ऑटो में बैठ कर घर कब पहुंची कुछ पता नहीं ,पुरे समय मेरा दिमाग सोचता रहा ,कभी सारी बातो के लिए मन में दुःख हो रहा था,कभी अपने आप पर गुस्सा आ रहा था .हुआ कुछ यह था की मेरे यहाँ आने वाले शिष्यों के लिए मुझे गिटार खरीदना था ,मेरे घर से वाशी की यह दुकान सबसे पास पड़ती हैं ,सोचा यही से गिटार खरीद लेती हूँ.दुकानदार से पूछा भाई हवाइयन गिटार हैं ,उसने मुझे कुछ ऐसी नज़र से देखा जैसे मैंने कोई पुरातत्व संग्रहालय में रखी जाने वाली सातसौ साल पुरानी चीज़ मांगली हो .बोला अरे दीदी आप क्या बात कर रही हो ,आजकल ये गिटार बिकती ही कहाँ  हैं ,कोई नहीं बजाता,ये सब तो पुरानी बातें हैं ,मेरे यहाँ वेस्टर्न गिटार इलेक्ट्रोनिक गिटार सब हैं आप वह ले जाईये ,मैंने कहाँ नहीं कोई बात नहीं मुझे हवाइयन  गिटार ही चाहिए .बोला आप उसे बजा कर क्या करोगी ,बेकार हैं ,कोई नहीं सुनता ,सब तो यही म्यूजिक सुनते हैं .आप क्यों सीखना चाहती हो ?कुछ नहीं मिलेगा इंडियन म्यूजिक बजाकर सब यही वेस्टर्न ही पसंद करते हैं .

उस समय न जाने क्यों उससे कुछ बात करने का मन नहीं हुआ .लेकिन बाद में मुझे स्वयं पर ही बहुत गुस्सा आया,दुसरे दिन फिर गिटार खरीदने मैं उसी दुकान पर गयी ,स्वभावत: उस दुकानदार ने वही सब बातें बताई ,पर फिर मैंने उसे अपना परिचय दिया ,उसे बताया की मैं अपने लिए नहीं अपने शिष्यों के लिए गिटार खरीद रही हूँ ,और अगर उसे भारतीय संगीत और उससे जुडी परम्परा ,लोकप्रियता और महानता के बारे में कुछ नहीं पता तो उसे ऐसी बातें करके भारतीय संगीत का अपमान नहीं करना चाहिए .

कल मेरे एक शिष्य के साथ फिर कुछ ऐसा ही हुआ ,वह गया यहाँ के एक बड़े से मॉल में गिटार खरीदने ,गिटार चेक करने के लिए उसने उसे इंडियन स्टाइल से बजाना शुरू किया ,लेकिन दूकानदार ने कहाँ अरे ये तो गलत तरीका हैं ,यह तो सितार बजाने का तरीका हैं ,गिटार तो कभी भी ऐसे नहीं बजता ,अपना टाइम वेस्ट मत करो,वेस्टर्न म्यूजिक सीखो ,सब वही सुनते हैं .ऐसे म्यूजिक को कोई नहीं सुनता ,जबसे ये बात मेरे शिष्य ने मुझे बताई हैं ,तबसे बड़ा गुस्सा आ रहा हैं .

आप जानते हैं मेरे पास हर दिन कम से कम तीन से चार फोन आते हैं ,हर बार वही प्रश्न ,क्या आप वेस्टर्न गिटार सिखाती हैं ?हमें सीखनी हैं .हर बार जब मैं यह पूछती हूँ की आपको वेस्टर्न गिटार ही क्यों सीखनी हैं तो उत्तर मिलता हैं क्योकि सब वही बजाते हैं .

मुद्दा यह नहीं हैं की लोग वेस्टर्न म्यूजिक सीख रहे हैं,उससे भी बढ़कर मुद्दे की बात यह हैं की वो क्यों सीख रहे हैं ?क्या भारतीय संगीत इतना बेकार रहा हैं ,या उसे सीखना वाकई बोरिंग और अत्यंत कठिन हैं ,या उसे सिखने में वाकई इतना ज्यादा समय देना पड़ता हैं जो आजकल देना संभव नहीं हैं .

सच यह हैं की नयी पीढ़ी को भारतीय संगीत क्या हैं यह पता ही नहीं हैं ,बॉलीवुड सिनेमा में पहले जो गाने रागों पर आधारित होते थे,अब गानों में हीरो वेस्टर्न गिटार हाथ में ले कोई इंडियन गाना गाते हैं .मॉल्स में जहाँ तह वेस्टर्न म्यूजिक बजता हैं ,वही दुकानों में बिकता हैं .पहले प्लेनेटेम में जहाँ भारतीय संगीत का विभाग सुंदर केसेट्स और सिड़ीस से भरा रहता था ,वहाँ अब एक दो चुनिंदा सिड़ीस ही नज़र आती हैं .

हम भारतीय हैं ,बड़े आनंद से भारत में रहते हैं ,देश की चुनाव प्रक्रिया में वोट दे दिया तो दिया.कभी देश की दुर्वय्वस्था पर बड़ा सा लेक्चर झाड देते हैं .लेकिन अपने देश की संस्कृति की रक्षा के लिए हम कितने सजग हैं .हम सुबह उठते हैं ,काम पर जाते हैं खाते पीते सो जाते हैं.जो लोग भारतीय संगीत की हानी परोक्ष अपरोक्ष रूप से कर रहे हैं ,उनका विरोध क्या हम कर रहे हैं ?जो लोग भारतीय संगीत के बारे में ऐसी भ्रांतियां फैला रहे हैं ,जो लोग मिडिया और अन्य संचार माध्यमो के द्वारा संभव होकर भी भारतीय संगीत के लिए कुछ नहीं करके वेस्टर्न की धुन बजा बजा कर हमारे युवाओ को भ्रमित कर रहे हैं उनके बारे में हमने क्या सोचा हैं ?क्या ये देश द्रोह नहीं हैं ?हमारे संगीत मुनिजनो ने संगीत के प्रचार प्रसार के लिए अपनी सारी उम्र लगा दी और हम ?

अगर आपको लगता हैं की यह गलत हैं ,आप भारतीय संगीत को पसंद करते हैं ,जाने अनजाने गुनगुनाते हैं ,फिर वह लोक संगीत हो या उपशास्त्रीय ,ग़ज़ल भजन,गीत ,शास्त्रीय कुछ भी ,तो आप वीणापाणी की भारतीय संगीत के प्रचार की  मुहीम का हिस्सा बन सकते हैं.अपना प्रिय संगीत ,आपके आसपास कितने लोग भारतीय संगीत सीख रहे हैं ,इसकी जानकारी ,जो सीख नहीं रहे वो क्यों नहीं सीख रहे इसकी जानकारी ,अगर आपका बच्चा स्कूल में सीख रहा हैं तो वह कौनसा संगीत सीख रहा हैं ,आपके आसपास कौन कौनसी संगीत संस्थाएं संगीत शिक्षा दे रही हैं ,और वह किस तरीके से और क्या सीख रही हैं ,यह सब बातें मुझे लिखकर भेज सकते हैं ,आपके नाम के साथ वह में अपने ब्लॉग पर प्रकाशित करुँगी ,वीणापाणी का एक उद्देश्य हैं भारतीय संगीत का प्रचार .मुझे उसके लिए हर भारतीय की मदद चाहिए .एक भारतीय होने के नाते मैं भारतीय संगीत को नयी पीढ़ी से दूर होते हुए नहीं देख सकती .भरोसा हैं की आप सब भी नहीं देख सकते .इसलिए मुझे अपने विचार लिख भेजिए .अपने बच्चो को भारतीय संगीत के बारे में जानकारी दे.अगर आप पत्रकार हैं तो कृपया अपने लेख का विषय इस समस्या को बनाये .आप सभी श्रेष्ट ब्लोगर हैं कृपया ब्लॉग जगत में इस गंभीर विषय में चिंतन करे इस पर लिखे . 

भारतीय संगीत साधिका 
डॉ. राधिका 

3/25/2010

दौर - ऐ क्रश कोर्स

एक समय की बात हैं ,एक राजा था ,उसके दो राजकुमार थे ,एक का नाम राम दुसरे  का श्याम ,राम बिचारा सीधा सादा,जो काम करता बड़ी मेहनत और लगन से,राजा ने उसे धनुर्विद्या सिखाई ,बड़े धैर्य से सीखी ,राजा ने चित्रकला सिखाई ,तो चित्रों में ही खुदको डुबो दिया ,राजा ने गायन कला सिखाई ,तो ऐसे सीखी की तानसेन को भी नाज़ हो जाये ,इस प्रकार राजा ने जो जो विद्या सिखाई उसने इसमें बड़ी मेहनत से निपुणता हासिल की .


श्याम .........उसका स्वभाव बड़ा ही चंचल, राजा जो सिखाता ,एक पल में ही उसका मन भर जाता ,एक दिन चित्र निकाले,दुसरे दिन कुछ गीत रचे ,तीसरे दिन अर्थमंत्री से धन का वह्य्वार जाना तो चौथे दिन तलवार बाजी की ,राम पर राजा को बड़ा गर्व था और श्याम की बड़ी चिंता .राम श्याम दोनों बड़े हुए ,राम का बड़ा नाम हुआ ,वह चक्रवती सम्राट हुआ और श्याम सब आधा अधुरा सीखकर कुछ भी न कर सका .

समय बढ़ता गया राम और श्याम बुढे हुए और उनकी मृत्यु  हो गयी .बरसो तक चित्रगुप्त के यहाँ उनके कर्मो के हिसाब किताब चलते रहे ,२१ वि सदी में राम और श्याम का पुनरजन्म हुआ.राम बिचारा सीधा साधा बालक ,जिस कला को सिखने बैठता घंटो उसी में डूबा रहता ,श्याम चंचल उसके लिए कुछ पल ही काफी थे कई कलाओ को जानने के लिए .माँ राम से तंग दुखी .उसे लगता मानसिक रूप से कमजोर हैं राम ,उसके लिए बड़ी चिंतित .श्याम हर प्रतियोगिता में अव्वल ,हमेशा औरो से एक कदम आगे .
समय बढता गया माँ सहीं थी राम न तो जीवन में बड़ा धन कमा पाया न नाम बस एक कमरे में बैठ कर चित्र ही बनाता रहा . बच्चे उस पर हँसते .लोगबाग ताने देते .श्याम ........श्याम अब राजा था ,जहाँ जाता छा जाता ,वो थोडा बहुत गा भी लेता ,जरुरत पड़ने पर चित्र भी बना लेता .कभी लंबा सा भाषण भी दे देता ,अच्छे खासे पैसे भी कमा लेता और एक बड़ा सा नेम  प्लेट भी उसने घर के दरवाजे पर लगा रखा था .


जानते हैं उसकी इस सफलता का राज क्या था? .. क्रश कोर्स .राम जहाँ सारा दिन सारी रात चित्र ही निकलता रहता ,श्याम उतने ही समय में कई सारे क्रश कोर्स कर डालता .उसने अपनी २६ साल की उम्र में ३२ क्रश कोर्स किये थे .चित्रकला का क्रश कोर्स ,सुसंवाद (उत्कृष्ट बातचीत )का क्रश कोर्स ,विभिन्न भाषाओ का क्रश कोर्स ,इसी तरह कई अनेक क्रश कोर्स .


समय क्या किसी के लिए रुकता हैं ,वह अपनी गति से बढ़ता गया ,राम और श्याम अब ५० की उम्र पार कर चुके ,श्याम को अब क्रश कोर्स में सीखी किसी कला से आनंद नहीं मिलता ,खुदका व्यवसाय भी अब उसके बच्चे ही सँभालते .एक समय जहाँ श्याम राजा था अब एक अकेला वृद्ध ,जिसको कोई भी मान सम्मान नहीं देता .


राम की कला धीरे धीरे बढती गयी ,देश विदेश में उसका नाम होने लगा ,लोग उसके बनाये चित्रों की प्रदर्शनियां देखने को व्याकुल रहते ,देश के महान चित्रकारों में उसका नाम शामिल हुआ ,५० -५५ की उम्र में उसके साथ कई लोग थे और थी उसकी चित्रकला जो हर सुख दुःख में उसका साथ देती .


जानते हैं यह कहानी मैंने आप को क्यों सुनाई ? कल ही अखबार में पढ़ा ,यही मेरे घर के पास एक छोटी सी म्यूजिक अकादेमी हैं ,जहाँ ,फास्ट म्यूजिक सिखाया जाता हैं .(फास्ट म्यूजिक संगीत की कोई नई विधा नहीं बल्कि संगीत को जल्दी जल्दी  सिखाने की विधा हैं )' वहाँ संगीत का क्रश कोर्स करवाया जा रहा हैं मैं सोचती रह गयी संगीत का क्रश कोर्स ???????????????????????????????शास्त्रीय संगीत का क्रश कोर्स(crash course ) .जिस विधा को सिखने के लिए मैंने इतने साल समर्पित कर दिए उसका क्रश कोर्स .


उस अकादेमी में सारे वाद्य हैं ,सुबह से रात तक अकादेमी में बच्चे ,युवा सीखते हैं .चार छ: महीने सीखने के बाद कहते हैं ,सच कुछ नहीं आया .      क्यों ?क्योकि मुंबई की तेज गति से ताल मिला कर अकादेमी में गायन वादन भी फटाफट सिखाया जाता हैं .अकादेमी में सिखाने वाले कई गुरु ऐसे भी हैं जिनका स्वर ज्ञान ही शुद्ध नहीं हैं .सिर्फ यही अकादेमी नहीं कई संगीत संस्थाओ का यही हाल हैं ,फटाफट बहुत कुछ सिखाया जाता हैं ,पर बच्चो को कोई भी चीज़ ठीक से नहीं आती ,न वे सुर लगा पाते हैं ,न ताल पकड पाते हैं ,चलिए इतना कर भी लिया तो गायन या वादन में कलाकारी का कोई नमो निशान नहीं होता .


मेरी छोटी बेटी को चिप्स वेफर्स बड़े पसंद हैं ,आते जाते आलू चिप्स वेफर्स खाती रहती हैं .मैंने घर में चिप्स लाना ही बंद कर दिया हैं ,क्योकि मैं चाहती हूँ की वो भरपेट खाना खाए ,पौष्टिक भोजन खाए ताकि हमेशा स्वस्थ रहे .शायद हर माँ यही चाहती हैं ,फिर संगीत और अन्य कलाओ के बारे में क्यों नहीं ??क्रश कोर्स करके थोडा बहुत जो सिखा उससे क्या हासिल हो पायेगा ,चलिए समझ लाने के लिए बच्चे को क्रश कोर्स करवा भी दिया तो कम से कम बाद में तो यह उसे उस कला की विधिवत  और सम्पूर्ण शिक्षा दी जानी जरुरी हैं ,जिसमे उसकी रूचि हो .


संगीत शिक्षण को व्यवसाय मात्र बनाकर सिर्फ आर्थिक दृष्टया इन संस्थाओ का भला हो सकता हैं ,लेकिन हम अपने देश की एक समृद्ध परम्परा का बड़ा नुकसान कर रहे हैं इस बात का जरा एहसास नहीं हैं इन संस्थाओ को .


बच्चे को स्कूल में डालते समय कितनी जाँच  पड़ताल करते हैं माता पिता ,कोई नया टेक्निकल इंस्टीट्युट ज्वाइन करने से पहले कितनी जानकारी लेते हैं उसके बारे में युवा .पर संगीत संस्थाओ को ज्वाइन करते समय सर्वसाधारण और सबसे महत्वपूर्ण बात होती हैं "आपके यहाँ फ़ीस कितनी हैं "?कितने महीने में कोर्स हो जायेगा ?क्या कोई सर्टिफिकेट मिलेगा ?


कल रामनवमी थी ,मैं सोच रही थी ,राम का जन्म हुए कई युग हुए ,पर आज भी बच्चे बुढे जवान कितना मानते हैं राम को .राम सच में कितने महान होंगे इतने युगों तक उनका गुणगान हम करते हैं .मैं मानती हूँ की राम महान थे ईश्वर थे ,पर कल कही यह विचार भी मन में आया की वह महान थे यह तो सच ही हैं ,लेकिन यह भी सच हैं की हमारे पूर्वजो ने ,हमारे बड़ो ने हमें राम की पूजा करना उन्हें ईश्वर मानना सिखाया ,यह उनके संस्कार ही हैं की राम और कृष्ण आज भी हमारे मन में वैसे ही जिवंत हैं .


जब तक हमारा किसी व्यक्ति से किसी कला से पूर्ण परिचय नहीं होता हम उसकी महानता को नहीं समझ पाते.जरुरी हैं की हम क्रश कोर्स करने के बजाये इन कलाओ के समीप जाये ,उनको समझे ,और अपनी सांगीतिक धरोहर को बचाए .

7/09/2009

कभी सुना हैं इंटरनेटीय संगीत ?

सभी संगीतकार मानते हैं संगीत ईश्वर की तरह यत्र तत्र सर्वत्र हैं,झरने की झर झर में ,चिडियों की ची ची में,हवा की गति में ,बारिश की रिमझिम में,सृष्टि के कण कण में संगीत का वास हैं,संगीत उत्त्पत्ति काल से लेकर ,मंदिरों से निकल कर,दरबारों से निकल कर ,सर्वसाधारण मनुष्य तक पंहुचा,युग बदला . २० वे शतक में संगीत ग्रामोफोन (Gramophone),रेकॉर्ड्स ,सिडी (c.d)और फ़िर कम्प्यूटर (computer )तक पहुँचा । पहले संगीत प्रेमी मिलों पैदल चल कर एक गाँव से दुसरे गाँव संगीत सुनने जाते थे ,वे अब अपने ही शहर ,गाँव में बैठे बैठे ,) टीवी (T.V),और म्यूजिक प्लेयर (music player )पर संगीत सुनने लगे । २० वे शतक के उत्तरार्ध में विश्व में क्रन्तिकारी तकनिकी विकास हुआ ,और इस विकास का सशक्त स्वरूप सामने आया इंटरनेट के रूप में ।

पहले घर में दो चार घंटे अकेले रहना यानि या तो किताबो का साथ या टीवी के शौकीनों के लिए धारावाहिकों का । लेकिन क्या कभी किसी ने सोचा था की कुछ सालो बाद हम सब घर में रहकर भी पुरे विश्व से कुछ इस कदर जुड़ जायेंगे,जैसे पुरा विश्व हमारे साथ हमारे घर में ,हमारे आँगन में बस रहा हो ?"वसुधैव कुटुम्बकम " का स्वप्न इंटरनेट के कारण एक आज सत्य हो पाया हैं ।

हाँ तो बात हो रही थी कला और कलाकारों की ,संगीत और संगीतकारो की ,कला प्रेमियों की संगीत प्रेमियों की । शिक्षण के क्षेत्र में इंटरनेट ने जहाँ अहम् भूमिका निभाई हैं वहां कला और संगीत के क्षेत्र में भी । गूगल पर इंडियन क्लास्सिकल म्यूजिक (indian classical music )डाला और सर्च बटन पर क्लिक किया की हजारो साइट्स जो भारतीय संगीत से संबंध रखती हैं सामने आ जाती हैं .कुछ संगीतकारों की अपनी साइट्स ,कुछ हिन्दी गीतों को समर्पित साइट्स ,कुछ विशुद्ध भारतीय शास्त्रीय संगीत को समर्पित जिनमे संगीतकारों का संगीत सुनने के लिए ,डाउनलोड करने के लिए सहज उपलब्ध होता हैं । इस प्रगति के साथ ही एक बड़ी प्रगति उन साइट्स के रूप में सामने आई हैं जो शास्त्रीय संगीत का शिक्षण देती हैं । संगीत संस्थानों के साथ ही कुछ कलाकारों ने भी अपनी इसी ही साइट्स बने हैं । ब्लॉग तो इंटरनेट का वरदान हैं,संगीत प्रेमी ,संगीतकार इस मध्यम के जरिये अपने विचार श्रोताओ ,संगीत रसिको तक पहुँचा रहे हैं ।

कुछ दिन पहले पुणे में अंडरस्कोर रेकॉर्ड्स द्वारा एक सेमिनार का आयोजन किया गया ,जिसका विषय था संगीत आपका संगत इंटरनेट की । वहां आमंत्रित कलाकारों,अपनी स्वयं की वेबसाइट्स रखने वाले संगीत प्रेमियों,वाद्य निर्माताओ ने इस विषय में अपने विचार वयक्त किए ,इस विषय पर गहन चर्चा हुई की इंटरनेट के द्वारा संगीत की शिक्षा कैसे दी जा सकती हैं ,संगीत को अधिक से अधिक श्रोताओ तक कैसे पहुचाया जा सकता हैं ,इंटरनेट पर संगीत जगत को अधिक समृद्ध कैसे किया जा सकता हैं ,विषय नया था ,दिलचस्प भी था। काफी नई बातें सामने आई । आख़िर समय के साथ ताल मिलकर चलने के लिए संगीत को भी अपनी गति द्रुत करनी होगी और अपना सुर नए विश्व के सुर से मिलाना होगा ।

सुर ताल की संगती करती यह कुछ साइट्स :

http://www.shadjamadhyam.com/ पर जहाँ ऑनलाइन संगीत की शिक्षा दी जाती हैं वहीं http://www.parrikar.org/ पर महान शास्त्रीय संगीत गायकों का संगीत(Archiv music ) सुनने के लिए सहज उपलब्ध हैं । http://www.musicindiaonline.com/ से तो काफी संगीत प्रेमी परिचित हैं । राजीव जी का यह पेज,पुराने गायकों का संगीत, जो ७८ rpm के युग में रिकॉर्ड हुआ था उपलब्ध करवा कार हमें पुराने शास्त्रीय संगीत गायकों के संगीत से परिचित करवाता हैं : http://courses.nus.edu.sg/course/ellpatke/Miscellany/music.htm .आदरणीय शुभा मुद्गल जी का यह ब्लॉग http://www.shubhamudgal.com/ संगीत जगत के कई विचारणीय मुद्दों से हमारा परिचय करवाता हैं और हमारी जानकारी बढ़ाता हैं । http://sarod.com पर हम उस्ताद अमज़द अली खान साहेब के विषय में जहाँ काफी कुछ जान सकते हैं वहीं उनके सरोद वादन के कुछ अंश देख भी सकते हैं । http://homepage.mac.com/patrickmoutal/macmoutal/rag.html इस पेज पर भी आप बहुत अच्छा संगीत सुन सकते हैं .

कुछ वाद्य निर्माताओ की भी अपनी साइट्स हैं जहाँ आप और हम संगीत वाद्यों की ऑनलाइन शॉपिंग कर सकते हैं जैसे http://www.rikhiram.org/

तो भारतीय संगीत अब इंटरनेटीय संगीत हो रहा हैं ,मुझे तो यही लगता हैं की यह इंटरनेटीय संगीत भारतीय संगीत का हाथ थाम उसे महान ऊँचाइयों तक ले जाएगा ।

इति
वीणा साधिका
राधिका