गणपत विघन हरण गजानन ...सुनते सुनते मन हंसध्वनी के सुश्राव्य मधुर गायन में खो गया ,उनकी आवाज़ मानो कोयल की कुक सी मधुर ,निखल ,निरागस ,मानो माँ शारदा स्वयं कंठ में विराजमान होकर हंसध्वनी के स्वरों के रूप में श्रोता को दिव्य दर्शन दे रही हैं . मैं बात कर रही हूँ गान स्वरस्वती विदुषी किशोरी अमोणकर जी की । विदुषी किशोरी अमोणकर जी की माँ आदरणीय मोगुबाई कुर्डीकर जी भारतीय शास्त्रीय संगीत की महानतम गायिका हुई हैं । जयपुर घराने की गायिका आदरणीय किशोरी जी ने गायन की स्वतंत्र शैली का निर्माण किया हैं ,मिंड युक्त गंभीर आलापचारी किशोरी जी के गायन को गहनता प्रदान करती हैं , गमक का सुंदर गायन ,बोलो का शुद्ध उच्चारण ,सुरीली,सुंदर विभिन्न प्रकार की तानो का गायन,किशोरी जी के गायन को परिपूर्ण कर शोता के ह्रदय को झंकृत कर देता हैं . संगीत सम्राज्ञी विदुषी किशोरी जी को संगीत सम्राज्ञी पुरस्कार के साथ संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार ,व अन्य कई पुरस्कारों के साथ ही पद्मविभूषण से भी नवाजा जा चुका हैं . प्रस्तुत हैं विदुषी किशोरी अमोणकर द्वारा प्रस्तुत राग हंसध्वनी :
विदुषी किशोरी अमोणकर द्वारा गाया गया भजन ..प्रभुजी मैं अरज करू .....
धन्यवाद
ReplyDeleteदो-तीन घंटे लगाकर काफ़ी कुछ सुन डाला. अब आपके यहाँ regular student होना पड़ेगा.
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