10/21/2009

रिश्ते यु भी बनते हैं

कभी सोचा भी नहीं था की दूर कहीं झारखंड में मेरा कोई अपना होगा ,वो  जिसे मैंने अब तक देखा ही नहीं ,जिसका नाम भी आज से दो साल पहले तक मैंने नहीं सुना था .एक दिन अचानक  जैसे ईश्वर ने ही खुश होकर मेरे लिए किसी को भेजा हो, ऐसा ही प्यारा सा रिश्ता "बड़ी दीदी "का मेरे पास आता हैं और हमेशा के लिए मुझे एक प्यारी सी बड़ी दीदी से मिलवाता हैं .
मैं बात कर रही हूँ ,हम सबकी प्रिय चिठ्ठाकार रंजना दीदी की ,जिनके विचार ,जिनकी पोस्ट हमेशा से ही उनसे अपनत्व का आभास कराती रही ,और उनका बड़प्पन की उन्होंने ही मुझे अपनी छोटी बहन मान लिया .बड़ा अच्छा लगता हैं ,की घर में सब भाई बहनों में सबसे बड़ी होने वाली मुझे, आज एक बहुत सुलझी हुई,महान विचारो वाली लेखिका जो तकनिकी संसथान में प्रबंध निदेशक भी हैं ,अपनी बड़ी बहन के रूप में मिल गयी हैं .प्रस्तुत हैं मेरी बड़ी दीदी(रंजना दीदी) से हुई वीणापाणी के लिए हुई मेरी बातचीत .




दीदी भारतीय संगीत आपकी नज़र में क्या हैं ?
भारतीय संगीत ,संगीत की आत्मा है... आत्मा का खुराक है...मुक्ति का द्वार है... शाश्वत सात्विक आनंद का श्रोत  है...


कितनी देर संगीत सुनती हैं आप ?


गृहस्थ आश्रम में प्रवेश से पूर्व पढाई लिखाई के बाद सारा समय साहित्य और संगीत को ही समर्पित था..परन्तु व्यस्तताओं के साथ यह समयावधि भी न्यूनतम होती गयी..मुझे एकांत में संगीत में डूबना प्रिय है..इसमें किसी प्रकार का विघ्न यदि उपस्थित होता है तो बड़ा ही अरुचिकर लगता है..संगीत मेरे लिए ईश्वर से जोड़ने वाली कड़ी है और यह टूटे ,कैसे सही होगा....इधर तो कई वर्षों से एकांत का नितांत ही अभाव रहा है...फिर भी यथासंभव प्रयास होता है मेरा कि सोने से पहले तथा  सुबह उठकर संगीत का आनंद लूँ.


दीदी आपको वोकल ज्यादा पसंद है या इन्स्ट्रूमेंटल ?
 दोनों ही तरह के संगीत प्रिय हैं..


 संगीत की कितनी प्राथमिकता है आपके  जीवन में?
    बहुत बहुत अधिक .


क्या आपके पास आपके पसंदीदा संगीत का कलैक्शन भी हैं या जैसा सुनने को मिल जाए?
ईश्वर की कृपा से अच्छा  खासा संग्रह है मेरे पास..


आपको क्या लगता हैं दीदी एफएम क्रांति भारतीय संगीत के प्रसार के लिए सहायक है या अपसंस्कृति ?


एक एम् संगीत पूर्णतः बाजारवाद की चपेट में है.आज संगीत के नाम पर जो भी फिल्मो में या गैर फिल्मी संगीत रचित होतें हैं निन्यानवे प्रतिशत शोर के सिवाय कुछ भी नहीं और ये ऍफ़ एम् चैनल  केवल शोर ही परोसते हैं...इसलिए ये संगीत का कितना भला करेंगे,समझा जा सकता है..


आप सिर्फ श्रोता हैं या खुद भी संगीत की किसी विधा की शिक्षा ली है?


मैंने बाल्यावस्था में शास्त्रीय संगीत की लगभग तीन वर्ष तक विधिवत शिक्षा ली थी.परन्तु विपरीत परिस्थितिवश  वह अधूरी ही रह गयी..विवाह के बाद हम जिस जगह रहते थे वहां स्थानीय बच्चों(बड़े बच्चों) महिलाओं  के साथ मिलकर एक म्यूजिक ग्रुप भी बनाया था और बहुत से शो किये..पर स्थानान्तरण के साथ ही वह ग्रुप भी छूट गया और वर्टिगो (कान की बीमारी) के कारण स्वयं का गाना/रियाज तथा सुनना भी बहुत कम हो गया...लेकिन अब जब कुछ स्वस्थ हूँ,फिर से संगीत शिक्षा नए सिरे से आरम्भ करने की ठानी है...देखा जाय इसबार यह पूरी हो पाती है या नहीं.


और ख़ुशी की बात यह हैं की इस  भेंटवार्ता के कुछ ही दिनों बाद दीदी ने मुझे बताया की उन्होंने संगीत की शिक्षा लेना आरम्भ कर दी हैं . 


आपके परिवार में संगीत का माहौल है या सिर्फ आपकी रुचि विकसित हुई?


मेरे पिताजी विशुद्ध तकनीकी क्षेत्र  के होते हुए भी स्वयं ही गीत लिखते और उन्हें गाया करते थे...उनका गायन किसी को भी विभोर कर देता था.मुझमे संगीत से प्रेम उन्हीके संस्कार से विरासत में मिला जो उत्तरोत्तर विकसित हुआ..


भारतीय संगीत की  लोकप्रियता अपेक्षाकृत कम होने के कारण?(आपको क्या लगता हैं की भारतीय संगीत क्यों लोगो को दूसरे संगीत के मुकाबले कम आकर्षित कर रहा हैं ?)


यह तथ्य मुझे भी बड़ा ही आहत किया करता है,परन्तु सत्य तो यही है. मुझे इसके मूल में जो पहला कारण दीखता है वह यह है कि अनेक माध्यमो द्वारा जो अनजाने ही लोगों के मन में पाश्चात्य भाषा संस्कृति और संगीत को श्रेष्ठ साबित करते हुए उसके प्रति आदर आस्था का भाव गहरे ह्रदय में आरोपित किया जा रहा है तथा इसके विपरीत भारतीय शास्त्रीय संगीत,भाषा,संस्कृति आदि  के प्रति तिरस्कार का भाव  बैठाया जा रहा है,उसके कारण ही शास्त्रीय संगीत  अधिकाँश भारतीय संगीत श्रोताओं द्वारा उपेक्षित तिरस्कृत  हो रहा है..


दूसरा कारण यह है कि जैसे जैसे लोगों में आहार विहार आदि के कारण तमोगुण का  विकास  होता जा रहा है,स्वाभाविक ही सतोगुण युक्त शास्त्रीय संगीत व्यक्ति को वह उन्माद नहीं दे पाती जो आज का शोर शराबा वाला संगीत दिया करती है.आज अधिकाँश लोगों को रूह का सुकून नहीं बल्कि उत्तेजक ऐसा संगीत चाहिए जो कान दिमाग के तंतुओं को झकझोर सके,पैरों को थिरका सके...


फिर भी मैं बहुत ही आशान्वित इसलिए हूँ कि जैसे पश्चिम आज अतिभौतिकता और वैयक्तिकता से ऊबकर भारतीयता को स्वीकार रहा है और उसीमे उसे सात्विक आनंद तथा शांति मिल रही है कभी न कभी उनका अनुकरण कर ही सही घर से गए भी फिर घर को लौटकर आयेंगे और अपने सभ्यता संस्कृति की श्रेष्ठता को स्वीकार करेंगे..


मुझे यह भी हर्षित किया करता है कि आज विभिन्न संस्थानों द्वारा  बड़े सार्थक प्रयास किये जा रहे हैं शास्त्रीय संगीत को राष्ट्रिय अंतराष्ट्रीय बड़े मंचों पर स्थापित करने की भी और सर्वसाधारण के बीच भी लाने की...


वैसे पूर्णतः हतोत्साहित होने की बात नहीं है,आज भी संवेदनशील प्रबुद्ध वर्ग इससे गहरे जुड़ा हुआ है.गायक तथा श्रोता का अनुपात पिछले दो दशक से बेहतर ही हुआ है..




आप किस तरह का संगीत पसंद करती  हैं दीदी  ?(भारतीय शास्त्रीय  संगीत,लोक संगीत ,सुगम संगीत यथा गीत ,भजन ,ग़ज़ल ,या फ़िल्मी संगीत )


उपर्युक्त सभी..हाँ फिल्म संगीत में  केवल वैसे गीत जो कोमल मधुर कर्णप्रिय हों और उसमे शास्त्रीय संगीत का थोडा सा भी पुट हो.


आपका पसंदिता कोई गीत ?(संभव हो तो आपकी आवाज़ में)
यह कठिनतम प्रश्न है..एक गीत ध्यान में लाने का प्रयास करते ही दिमाग में रेलम पेल मच जाती है.ह्रदय से जुड़े सारे तो अपने ही हैं,तो उसमे से किसे आगे करूँ और किसे पीछे...लगभग एक दशक पहले एक फिल्म आई थी "सरदारी बेगम" ...उसमे एक गीत था..." चली पी के नगर....बन के दुल्हन.....मैके में जी घबरावत है...अब साँची नगर को जाना है.....ये झूठा नगर कहलावत है...." और  छुन्नुलाल  मिश्र जी की गाई ...." सर धरे मटकिया डोले रे.....कोई श्याम मनोहर लो रे "....


आपके अनुसार क्या प्रयास किये जाने चाहिए भारतीय संगीत को लोकप्रिय बनाने हेतु ?
जैसे वयानुसार औषधि की मात्रा कम से अधिक की जाती है,वैसे ही शास्त्रीय संगीत सुनने समझने में जो अपरिपक्व बालक सम हैं उन्हें पहले फ़िल्मी गीतों के माध्यम से शास्त्रीयता  के पुट वाले संगीत(क्योंकि आम भारतीय जनमानस पर जितना प्रभाव सिनेमा का पड़ता है,उतना और किसी का भी नहीं),तत्पश्चात उपशास्त्रीय गायन (सेमी क्लासिकल)/ संगीत  और फिर शास्त्रीय संगीत का खुराक यदि दिया जाय तो उसकी ग्रहण शक्ति का विकास किया जा सकता है और इस संगीत को व्यापकता मिल सकती है...


अगर आपको भारतीय संगीत के किसी एक वाद्य को चुनने का मौका मिला तो आप किस वाद्य को अपना वोट देंगे ,जैसे सितार गिटार, वीणा, सरोद, वायलिन.


मैं वहां से भाग निकलूंगी,बिना वोट किये....क्योंकि मुझे सभी प्रिय हैं.हाँ सारंगी तथा संतूर  मुझे सर्वाधिक प्रिय हैं .


अगर कोई संगीत को अपना केरियर चुनना चे तो आप उसे क्या सलाह देना पसंद करेंगी दीदी ?


मार्ग सरल नहीं...यह अपार आस्था, धैर्य और श्रम मांगती है.स्थापित होने में समय लगता है और सबसे बड़ी बात कि यदि लक्ष्य धन और प्रतिष्ठा प्राप्ति हो तो यह कैरियर विकल्प सबसे बुरा है.यदि कोई इसके प्रति निष्काम समर्पण की भावना रखता है तो देर सबेर नाम प्रतिष्ठा और धन तो मिलना ही है.


तो यह थे भारतीय संगीत के बारे में रंजना दीदी के सुविचार .
अगली कड़ी में फिर जानेंगे किसी महान ब्लोगर के संगीत के बारे में विचार
तब तक के लिए नमस्ते .






13 comments:

  1. मैं रंजना जी से वैसे तो मिल चुकी हूँ ..पर यहाँ मिलना भी अच्छा लगा.

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  2. रंजना दीदी को हमारा भी सलाम

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  3. ranjana ji ko hamara bhi namaskaar .....sachmuch sangeet hain hi aesi cheez jiska koi jawaab nahi hota
    kishore ghildiyal
    http//jyotishkishore.blogspot.com

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  4. भारतीय संगीत के विषय में अच्छे सदविचार है ....

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  5. आपके सवालों के रंजना जी द्वारा दिए गए जबाब अच्‍छे लगे .. मैने भी अपना जबाब डायरी में कब से लिख रखा है .. पर ईमेल नहीं कर पाती हूं !!

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  6. रंजना जी से फोन के माध्यम और व्यक्तिगत ईमेल के माध्यम से परिचित हूँ..और वो मेरे परिवार से जुड़ी हैं. ये भी अजब सा रिश्ता हो लिया..बताओ, मैं उनका बड़ा भाई..यहाँ उसे जानने का मौका पा रहा हूँ.

    सच, बहुत अच्छा लगा यह साक्षात्कार..आभार कहूँ? :)

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  7. यहाँ इस तरह रंजना जी से मिलना बहुत अच्छा लगा

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  8. बहुत ही अच्छा लगा यह साक्षात्कार,रंजना जी के व्यक्तित्व के इस पक्ष से मिलकर प्रसन्नता हुई...उनका कहना बिलकुल सही है....संगीत,इश्वर तक पहुँचने की एक कड़ी है

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  9. रंजना जी से यहां मुलाकात अच्छी लगी

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  10. तुम्हारी आत्मीयता ने तो अभिभूत कर दिया राधिका....
    ईश्वर की आभारी हूँ कि उन्होंने एक पवित्र हृदया,परम गुनी, सुसंस्कृत, माँ शारदा की अनन्य उपासिका से मेरा परिचय करवाया....यह मेरा बहुत बड़ा सौभाग्य है....
    मैं तो ब्लॉग जगत की भी बहुत बहुत आभारी हूँ,जहाँ मुझे एक से बढ़कर एक प्रबुद्ध और अनुकरणीय व्यक्तित्व से परिचित होने और बहुत कुछ सीखने समझने को मिला...अनजाने रिश्ते जब इस तरह स्नेह और आदर लुतातें हैं तो मन विभोर हो जाया करता है....

    शास्त्रीय संगीत के संरक्षण हेतु किये जा रहे तुम्हारे समस्त सराहनीय प्रयास पूर्णतया सफलता पायें,यही ईश्वर से प्रार्थना है....

    October 22, 2009 7:56 PM


    तुम्हारी आत्मीयता ने तो अभिभूत कर दिया राधिका....
    ईश्वर की आभारी हूँ कि उन्होंने एक पवित्र हृदया,परम गुनी, सुसंस्कृत, माँ शारदा की अनन्य उपासिका से मेरा परिचय करवाया....यह मेरा बहुत बड़ा सौभाग्य है....
    मैं तो ब्लॉग जगत की भी बहुत बहुत आभारी हूँ,जहाँ मुझे एक से बढ़कर एक प्रबुद्ध और अनुकरणीय व्यक्तित्व से परिचित होने और बहुत कुछ सीखने समझने को मिला...अनजाने रिश्ते जब इस तरह स्नेह और आदर लुतातें हैं तो मन विभोर हो जाया करता है....

    शास्त्रीय संगीत के संरक्षण हेतु किये जा रहे तुम्हारे समस्त सराहनीय प्रयास पूर्णतया सफलता पायें,यही ईश्वर से प्रार्थना है....

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  11. भीढ़ भरे ब्लॉग जगत मैं रंजाना दीदी का साक्षात्कार एक अलग किस्म की खुसबू लिए है | उनके विचारों से मैं अक्षरसः सहमत हूँ ..., कहीं काटने लायक कोई बात ही नहीं है |

    राधिका जी आपका बहुत बहुत धन्यवाद की आपने उनके सुन्दर विचारों को ब्लॉग पे रखा |

    एक सार्थक पोस्ट ...

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  12. sangeet kshetra me aapke dwara kiye ja rahe prayaas hetu aapka bahut bahut baabhaar va dhanyavaad
    jyotishkishore.blogspot.com

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  13. hi radhika, feel good after reading this blog. i don't know anything about music. but im agree with Ranjna didi, as she is saying today's music is just selling noise. I hope, i will learn a lot about music from you.

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