12/24/2008

क से कक्षा में बैठ कर स से संगीत नही सिखा जा सकता ..

सा रे गा मा पा ध नि सा ...............कुछ बेसुरे,कनसुरे ,छोटे ,बड़े स्वर मुझे शाम से सुनाई दे रहे थी,फ़िर सुनाई दिया भजन सदा शिव भज मना निस दिन ...........चार साल बाद आज भी वही स्वर सुनाई देते हैं ,उतने ही बेसुरे ,उतने ही कनसुरे फर्क सिर्फ़ इतना ही हैं की अब गाये जाने वाले राग और बंदिशे पहले से अधिक और अलग हैं ।
मेरे पास संगीत सिखने की इच्छा रखकर एक मेरे ही उम्र की युवती आई ,मैंने उससे कहा की क्या सीखा हैं अब तक ? उसने गर्व से बताया ,मैंने विद किया हैं । मैंने कहा अच्छा कुछ सुनाओ । उसने शुरू किया ...सा मा री पा गा धा मा नि... घर्षण युक्त आवाज और वही बेसुरापन ,ग को गा ,म को मा ,प को पा कहना और विद पास .शायद वह कल के लिए एम् ऐ भी पास कर ले ।

दोष उस लड़की का नही ,दोष हैं संगीत की विद्यालयीन शिक्षण प्रणाली का । आदरणीय भातखंडे जी ने इस आशा से की शास्त्रीय संगीत का प्रचार होगा विद्यालयीन संगीत शिक्षण प्रणाली को प्रतिष्ठित किया था ,तब अच्छे गुरु थे ,मन लगा कर समय देकर सीखने वाले विद्यार्थी थे ,तो यह प्रणाली कुछ सही लगती थी। लेकिन आज विद्यालयों में जैसा सीखाया जाता हैं उससे संगीत की सिर्फ़ अधोगति ही हो सकती हैं ,ढेर सारा पाठ्यक्रम २०-२५ राग, हर राग में बंदिशे ,आलाप ताने,अब शास्त्रीय संगीत याने कोई बच्चो का खेल तो हैं नही की पट से सीख लिया ,यह तो मेहनत और बहुत सारा समय देकर सीखी जाने वाली विद्या हैं ।
विद्यार्थी कक्षा पास कर लेते हैं ,लेकिन वास्तव में कुछ भी सीख नही पाते ,इसलिए अगर किसी को शास्त्रीय संगीत का शिक्षण लेना हैं तो व्यवस्थित किसी गुरु के पास जाकर ही सीखना उचित होगा ,ऐसा मेरा पक्का मत हैं ,क से कक्षा में बैठकर ग से गंधार को गा और म से मध्यम को मा गाया जा सकता हैं पर स से संगीत की सुंदर ,सुवय्वस्थित और सारगर्भित शिक्षा नही ली जा सकती।
इति
वीणा साधिका
राधिका

12 comments:

  1. मैं सहमत हूं आपकी बातों से।

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  2. बहुत बहुत सही कहा आपने..........जैसा आपने उस वुद्यार्थी के विषय में बताया,मैं स्वयं भी इस से गुजर चुकी हूँ.
    प्रकरण बड़ा लंबा है,कभी समय मिला तो सुनाउंगी .

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  3. sahi kaha aapne..main sehmat hun aapki baatoo se..

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  4. namshkar radhikajee,
    aap ne ik dum sahi kaha.
    music ya koi bhi art form kisi bhi school ya collage main nahi sikha ja sakta.wahan se to aap kewal us subject ki digree le saktey hain.lekin asli siksha to kisi kabil guru ke pass ja kar hi mil sakta hain.

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  5. वास्तव में संगीत साधना जीवन भर की तपस्या मांगती है अगर आपको सही अर्थ में संगीत सीखना है तब !

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  6. सटीक अवलोकन है आपका! किसी भी क्षेत्र में सैद्धांतिक और व्यवहारिक ज्ञान में अन्तर है| पाठ्यक्रम मात्र एक ढांचा तैयार करता है, उस ढांचे को सही रूप देना, सुचारू रूप से भरना और फिर जीवंत करना, व्यवहारिक ज्ञान और अभ्यास के साथ ही हो सकता है|
    विचित्र वीणा की परम्परा जीवंत रखने के लिए आपका अभिनन्दन!

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  7. पूर्ण अंतर्मन से मैं भी ऐसा ही सोचता हूँ, सच

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    http://prajapativinay.blogspot.com/

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  8. बिलकुल सही लिखा आप ने, आप की बात से सहमत हू, संगीत सीखा नही जाता इस के लिये तपस्या की जाती है, दिल मे श्र्धा होनी चाहिये, प्रेम होना चाहिये, वरना तो दो चार उलटे सीधे हाथ पाव मार कर कान फ़ोडु आवाजे ही सुनाई देगी जेसी आज कल आ रही है.
    ओर सच्चा संगीत कार लोगो पर जादू कर देता है, अपने मधुर संगीत से.
    धन्यवाद

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  9. Aapki bat se asahmat nahin hua ja sakta.

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  10. कहा तो आपने सही ही है....मगर इससे संगीत-विद्यालय को एकदम से नकार देना भी तो उचित नहीं जान पड़ता...(अरे मेरा कोई स्कूल-विस्कूल नहीं हैं संगीत का)असल में यह विद्या तो लगन और एकाग्रता की है..........जो गुनी है...वो अपना रास्ता खोज ही लेगा....जो नहीं है...उसका कोई नहीं है....मगर जैसा कि उड़नतश्तरी जी ने कहा.................बाजार तो आकर्षित हो ही जाता है और उनका काम पूरा. :)तो बाज़ार की बला से सब बल्ले-बल्ले ही है....!!!!

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