आज क्रॉस वर्ड गई ,सोचा कुछ अच्छी किताबे खरीद लू ,कुछ किताबे चुनी ही थी की एक किताब पर नज़र गई,लर्न सितार इन १० डेस ,पास ही एक और किताब रखी थी ,लर्न गिटार इन फिफ्टीन डेस,काफी लम्बी श्रृंखला थी ,वैसे तो कई बार किताबो की दुकानों में ,किताबो के ठेलो पर ,रेलवे स्टेशन पर भी इस तरह की किताबे देखी हैं ,और हमेशा इन्हे देखकर हँसी ही आई हैं ,किंतु आज पता नही क्यो,एक किताब उठा कर देखि ,सोचा जो संगीत मैं इन २२-२३ सालो में भी पुरा नही सीख पाई वो ये दस दिन में कैसे सीखते हैं ?जब किताब खोली तो पहले पेज पर था यह सितार हैं चित्र,इसे ऐसे लेकर बैठा जाता हैं ,दूसरा अध्याय था सितार पर मिजराब के बोल ,तीसरा सा ,रे ग म प ध नि कैसे बजाना सीखता था,चौथे में सितार पर एक गत,पांचवे में तान ,छठे में वन्देमातरम कैसे बजाना,सातवे में सितार पर एक फिल्मी गीत ,नवे अध्याय में कलाकरों के चित्र ,दसवे अध्याय में संगीत की कुछ बेसिक जानकारिया और किताब समाप्त,सीखने वालो ने शायद इंतनी ही सरलता और तेजी से सीख भी ली सितार । कमाल हैं बडे बडे संगीतज्ञ हो गए ,कलाकार हो गए पर किसी ने भी यह नही कहा की हमने फला वाद्य या गायन् इतने दिनों या महीनो में सीख लिया,सब यही कहते रहे की हम सीख रहे हैं । मेरे पास भी सीखने के लिए ऐसे विद्यार्थी आते हैं ,जो पहला प्रश्न यह करते हैं की कितने महीनो में वीणा बजाना पुरी तरह से आ जाएगा?अब कितने महीनो में पुरी तरह से आप वीणा बजाना सीख सखते हैं इसका उत्तर न तो मेरे पास था न हैं, क्योकि संगीत एक कला हैं ,कला आत्मा की अभिवयक्ति हैं , कला देवी हैं ,कला ज्ञान का वह सागर हैं जो कभी ख़त्म नही होता ,हम जितना सीखते हैं हमारी अंत: प्रेरणा हमें और नया सिखने समझने पर बाध्य करती हैं,हमारी समझ और बढती हैं ,ऐसे में इस प्रश्न का उत्तर क्या हो सकता हैं सिवाय इसके की भई आप दिनों में मत सीखना चाहो इस विद्या को ,और अगर आपको कुछ दिन में सीखके खत्म करना हैं तो मुझे सीखाना नही आता ।
इंग्लिश सीखिए सिर्फ़ ९० दिनों में ,किताब आती हैं न ! यह ठीक उसी तरह हैं ,जिस तरह कोई भी भाषा कुछ दिनों में नही सीखी जा सकती उसी तरह कला भी कुछ दिनों में सिर्फ़ किताब पढ़के या सिर्फ़ चार दिन गुरु के पास जाकर नही सीखी जा सकती ।
दरअसल इस तरह की किताबो के कारण या विद्यालयों में सिखाये जाने वाले आधे अधूरे संगीत के कारण,मिलती डिग्रियों के कारण,अन्य विषयों की पढ़ाई के दबाव के कारण ,या बढती महंगाई ,कम होती नौकरिया और पैसा कमाने की बढती इच्छा के कारण इस तरह के लोगो का एक वर्ग बढ़ता जा रहा हैं जिसके लिए संगीत कला महज एक दिखावी शौक या इसे गाना भी आता हैं वाला गुण हैं ,जैसे किसी लड़की की शादी होने वाली हो उसे खाना बनाने के साथ और घर के अन्य कामो के साथ उसके डॉक्टर होने की बड़ी बड़ी उपलब्धियों के साथ एक और गुण जिसे उसके बायोडाटा में जोड़ा जा सकता हैं की इसे गाना भी आता हैं ।
वस्तुत: संगीत कला एक ऐसी कला हैं जिसके लिए पुरा जीवन ...नही केवल एक जीवन नही..कई जीवन भी सीखने ,समझने के लिए लग जाए तो आश्चर्य नही कला या विद्या समर्पण मांगती हैं,सतही तौर पर सीखा गया संगीत न सुर देता हैं और न गीत ,सिर्फ़ दिखावा देता हैं और कला की कद्र को कम करता हैं ।
कोई कहता हैं हमारा बेटा इंजिनियर हैं ,कोई डॉक्टर ,कोई बड़ी कम्पनी का डायरेक्टर ,कितने लोग हैं भारत में जो पुरे विश्वास और आनंद से कहते हैं की उनका बेटा या बेटी सन्गीत्ज्ञ हैं ? बड़ी बड़ी डिग्रियों,नौकरियों की आड़ में संगीत जैसी कला को सीखने के लिए चाहिए समर्पण ,समय और धैर्य जो आज कितने कम लोगो में हैं ,सब दौड़ रहे हैं ,बडे पद को ,नाम को हासिल करने के लिए ,और भारतीय संस्कृति की आत्मा कही खो रही हैं,नई पीढी सुन रही हैं ,जॉज , पॉप रॉक ,बस नही सुन रही तो शास्त्रीय संगीत . क्रॉस वर्ड में ही सीडी देखने गई तो शास्त्रीय संगीत वाले विभाग में शुद्ध शास्त्रीय संगीत की चार छ: सिडिस को छोड़ बाकी सारी मिलावटी संगीत की सिडिस थी,जिनमे विदेशी संगीत पर भारतीय संगीत का तड़का लगा हुआ था ,ठीक हैं फ्यूजन अच्छा हो तो कोई बुराई नही ,पर मुझे यह कन्फ्यूजन हो गया की मैं भारतीय संगीत वाले विभाग में सीडी देख रही हूँ या विदेशी संगीत वाले विभाग में । कहते हैं युवा पीढी को फ्यूजन में ही आनंद आ रहा हैं ..पर शुद्ध भारतीय संगीत मूल्य क्या हैं ,वह क्या चीज़ हैं इस बात का ज्ञान करवाने की जिम्मेदारी या तो हम कलाकारों पर ही हैं या ,आज के माता पिता पर या बुजुर्गो पर ।जब तक हम स्वयं अपनी कला और संस्कृति की कद्र नही जानेंगे तो दुसरे कैसे जानेंगे ,जब तक हम स्वयम् प्रयत्न नही करेंगे तब तक सरकार और अन्य सांस्कृतिक संश्तःये कितना और क्या कर लेंगी,कला और कलाकारों को सम्मान देने की जिम्मेदारी भी भारतीय समाज की ही हैं न!
इति
वीणा साधिका
राधिका
ीअगर स्वर साम्राज्ञी लता कहती हैं कि वे आज भी सीख रही हैं और मडोना कहती हैं कि music is endless journey. तो सगीत दो महीनों में असम्भव!
ReplyDeleteराधिकाजी आपने बिलकुल ठीक कहा है.
ReplyDeleteदर-असल शास्त्रीय संगीत का सीधा ताल्लुक रूह और क़ुदरत से है. और वह हासिल ही होता है इन दो नियामतों से. गुरू तो आपके फ़न को मांजने का काम करते हैं. सच्चे और खरे गुरू तो किसी कुपात्र को सीखाने में रूचि ही नहीं लेते . मेरा मानना है कि गुरूजनों के पास एक अंर्तदृष्टि होती जिससे वे पहचान लेते हैं कि बंदे पर क़ुदरत की कृपा बरस रही है या नहीं.
बाजार तो आकर्षित हो ही जाता है और उनका काम पूरा. :)
ReplyDeleteशास्त्रीय संगीत पर लिखा आलेख यथार्थ के धरातल पर खरा उतरा है, राधिका बुधकर जी ...
ReplyDeleteआपने गागर में सागर जैसी बात काग दी है, हम आपके साथ हें:-
"संगीत एक ऐसी कला हैं जिसके लिए पूरा जीवन ...नहीं, केवल एक जीवन नही..कई जीवन भी सीखने ,समझने के लिए लग जाए तो आश्चर्य नहीं... कला या विद्या समर्पण माँगती हैं, सतही तौर पर सीखा गया संगीत न सुर देता हैं और न गीत ,सिर्फ़ दिखावा देता हैं और कला की कद्र को कम करता हैं ।"
आपका
-विजय
बहन जी आपने सारा मूड खराब कर दिया हमारा ...हम तो सचमुच ये सोचकर आये थे कि....
ReplyDeleteकोई भी कला में संपूर्ण नहीं होता और कला की संपूर्णता की भी सीमा नहीं है। वह भी अनंत है।
ReplyDeleteबहुत सही लिखा आप ने , आज के कान फ़ोडु संगीत को सुनना भी सजा लगता है,बस इस से ज्यादा नही लिखूगां.
ReplyDeleteधन्यवाद
sikhna kabhi khatm nahin hota
ReplyDelete*VERY GOOD
ReplyDeleteपं हृदयनाथ मंगेशकर ने भी हाल ही में एक कार्यक्रम में कहा कि "वे एक बहुत अदना से कलाकार हैं और जो भी उनसे बन पड़ा करने की कोशिश की है और कई लोगों से वे अभी भी कुछ न कुछ सीख रहे हैं…" सीखने की प्रक्रिया अनन्त है… सुरेश वाडकर ने भी कहा है कि "जिस दिन कलाकार सोच ले कि मुझे इस कला का सब कुछ आ चुका है अब सीखने को कुछ नहीं बचा, वह दिन उस कलाकार के जीवन का अन्तिम दिन होगा…" लेकिन आजकल के हॉटडॉग और पिज्जा के "इन्स्टण्ट" जमाने में "साधना" करना कोई नहीं चाहता… धूप में देर तक रखे गये गुलकन्द का स्वाद हो या चीनी के बर्तन में रखे हुए पुराने अचार का स्वाद हो… आज की पीढ़ी उसे समझना ही नहीं चाहती… फ़िर भी कुछ जुनूनी लोग हैं जो अपने काम में पूरी तल्लीनता से लगे हुए हैं और उन्हें युवा पीढ़ी का सीमित ही सही लेकिन साथ मिल रहा है…
ReplyDeletesahi .. hai . main v 5 saaloon se guitar balja raha hoon pata nahi ki kab siikhoonga ... anntheen siksha hai puurnta matlab kuch raha hi nahi... accha laga padkar ..
ReplyDeletenice to read ...good info...
ReplyDeleteराधिका जी, दो महीने का समय तो बहुत ज़्यादा है. लगता है आपने अभी तक मेरी नई किताब "दो मिनट में तानसेन कैसे बनें" नहीं पढी है, जल्दी ही कुछेक प्रतियाँ भिजवाता हूँ.
ReplyDeleteनव -वर्ष मँगलमय हो
ReplyDeleteVery musically uplifting article Radhika ji
प्राकृतिक ज्ञान प्राप्तिका कोई भी शार्ट कट नही होता | तकनीकी तो निर्धारित समय में तो सीखी जा सकती है परन्तु ज्ञान की पहली सीढ़ी तो अवश्य होती है पर 'ज्ञान का '' अन्तिम सोपान '' 'मैं 'आज तक नही ढूँढ पाया लगभग ४७-४८ वर्ष हो गये हैं |
ReplyDelete''कालचक्र''
हा...हा..हा..हा..हा..दो महीनों में शास्त्रीय-संगीत....मज़ा आ गया...मज़ा आ गया....बल्ले-बल्ले.....दरअसल हर चीज़ की स्पीड अब पहले की अपेक्षा बड़ी तेज़ हो गयी है....कुछ भी सम्भव है भई........हर चीज़ की गरिमा को कम करने का....नष्ट करने का है यह युग....अब शास्त्रीय-संगीत भी सही....अंत में तो सब कुछ को नष्ट होना ही ना.....!!
ReplyDeleteनही जी! कुछ चीजे जैसे आत्मतत्व(आत्मा ) जो ईश्वरीय हैं ,प्रेम और संगीत कभी भी नष्ट नही होते ,क्योकि ये उस परम तत्व परमात्मा के रूप हैं जो अजन्मा और अनश्वर हैं .
ReplyDeleteआप सिखाती रहे हम सीखने को तैयार बैठे हैं....पर समय थोड़ा और बढ़ा लेती तो ठीक रहता...और मैं संजय पटेल जी की बातों से सहमत हूँ...
ReplyDeleteजिन्होंने महर्षि सान्दीपनी से मात्र चौसठ दिनों में चौंसठ विद्याओं का ग्यान प्राप्त कर लिया था |जिन्होंने शिशुपाल जैसे अधर्मी के भी सौ अपराधों को क्षमा कर दिया था |जिन्होंने सोलह हजार एकसौ कन्याओं को दुराचारी दैत्य की कैद से मुक्त कर उनके मान की रक्षा के लिये उन सबसे विवाह किया था |ऐसे प्रभु श्रीकृष्ण को हमारा अनंत प्रणाम है |
ReplyDeleteह्मे संगीत सिखने के लिये क्या करना होगा
ReplyDeleteसंगीत सिखने के लिए अपने आप को जानना जरुरी है
ReplyDeleteअपनी आत्मा का समर्पण जरुरी है
महनत जरुरी है
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