12/31/2008

जातियाँ .........शास्त्रीय संगीत में भी ??

जातियाँ?और वह भी शास्त्रीय संगीत में ?उस पर इन जातियों को इतना मान ,इतना सम्मान .इनका इतना महत्त्व ?जहाँ देश में जाती - पाती की भावना का त्याग करने की बात समझी जाने लगी हैं ,वहां शास्त्रीय संगीत में आज भी जातियों को सम्मान दिया जा रहा हैं !क्यो?कैसे ?प्रश्नों की श्रृंखला मस्तिष्क में घुमने लगी हैं ?मुझे भी ऐसा ही लगा था जब पहली बार मैंने संगीत में जातियों की बात सुनी थी

संगीत जिसे सभी धर्मो,जातियों के मनुष्यों को आपसी प्रेम और मानवता के बंधन में गूंथने का अटूट साधन माना जाता हैं ,उसमे जातियाँ ?भारतीय संगीत कुछ ऐसा हैं जिसने देश के ही नही विदेशी जनो को भी,चाहे वह किसी भी देश ,धर्म ,जाति के हो, कला के एक अनुपम संसार से जोड़ा हैं। संगीतकार चाहे किसी भी धर्म का हो ,किसी भी जाति का हो ,जब वह संगीत जगत में खो जाता हैं तो वह जाति ,धर्म सबसे उपर उठ कर सिर्फ़ संगीतकार और कलाकार हो जाता हैं,भारत में कितने हिंदू ,मुस्लिम और कितने ही अन्य धर्मो के कलाकारों ने सामान प्रेम भाव से संगीत की आराधना ,पूजा कर भारतीय जनमानस को कला के अद्वितीय जगत से जोड़ा हैं ,संसार भर में आनंद और संगीत को प्रचारित कर ,हर धर्म,सम्प्रदाय और जाति से उपर होकर सिर्फ़ भारतीय होने का कर्तव्य निभाया हैं फ़िर संगीत में जातियाँ ????

दरअसल आजकल जैसी राग गायन प्रणाली प्रचार में हैं ,वैसी प्राचीन कल में नही थी,उस समय राग ही नही हुआ करते थे ,अब आप सोचेंगे की फ़िर शास्त्रीय संगीतज्ञ कैसे गायन वादन करते थे ?तो उत्तर यह हैं की उस समय जातिगायन प्रणाली प्रचार में थी ,यही जातियाँ वास्तव में मूल राग थी ,इनसे ही आगे चलकर कई राग भी बने ,इन जातियों के दस लक्ष्ण भी बताये गए हैं जैसे ग्रह ..अंश...मन्द्र.न्यास..अल्पत्व..बहुत्व..आदि आदि

किंतु उस समय ही नही आज के शास्त्रीय संगीत में भी जातियाँ हैं ,स्वाभाविक रूप से इन जातियों का प्राचीनकाल में प्रचलित जाति गायन से कोई सम्बन्ध नही हैं,यह जातियाँ हैं रागों की जातियाँ अगर आपको याद हो तो मैंने पहले भी इन जातियों के बारे में थोड़ा आपको बताया था

आप सभी जानते हैं की

" योयं ध्वनी विशेषस्तु स्वरवर्णविभूषित :
रंजको जनचित्तानाम राग: कथितौ बुधै: "

अर्थात ध्वनी की उस विशेष रचना को जो स्वर वर्णों से युक्त और सुंदर हो और जो लोगो के चित्त का रंजन करे उन्हें आनंद दे वह राग राग में कई बातो कई होना जरुरी हैं ,जैसे कम से कम पॉँच स्वर ,आरोह ,अवरोह ,सा स्वर का वर्ज होना ,वादी -संवादी होना ,आदि किंतु यह बात बड़ी मजेदार हैं की किसी राग में कितने स्वर लगते हैं उस आधार पर उस राग की जाति निश्चित होती हैं ,मुख्यत :रागों की तीन जातियाँ मानी जाती हैं :औडव, षाडव ,सम्पूर्ण ,यह बहुत सरल हैं :-जिस राग में पॉँच स्वर लगते हैं वह औडव जाती का ,जिस राग में : स्वर लगते हैं वह षाडव जाती का ,और जिस राग में सतो स्वर लगते हैं वह सम्पूर्ण जाती का हुआ लेकिन किसी राग में आरोह में पॉँच और अवरोह में सात ,तो किसी में अवरोह में : आरोह में पॉँच ,किसी में आरोह में : ,अवरोह में पॉँच भी स्वर लगते हैं .तभी तो इतने सारे राग हैं इस कारण रागों की और नौ प्रकार की जातियाँ बनी :-सम्पूर्ण-सम्पूर्ण,सम्पूर्ण-षाडव,सम्पूर्ण -औडव। षाडव-सम्पूर्ण,षाडव -षाडव,षाडव-औडव। औडव-सम्पूर्ण,औडव-षाडव,औडव-औडव हैं सरल।
तो यह हैं शास्त्रीय संगीत की जातियाँ ,सुंदर ,उपयोगी और महत्त्व पूर्ण जातियाँ ,जिनके कंधो पर शास्त्रीय संगीत की राग प्रणाली का महल खड़ा हैं ,हैं शास्त्रीय संगीत बहुत सरल ,बहुत दिलचस्प ,बहुत सहज बताये क्या अब भी आपको शास्त्रीय संगीत कुछ बिरला और अनोखा ही लगता हैं ?और अगर अब भी लगता हैं तो मेरी शास्त्रीय संगीत सरल और सहज रूप में आप तक पहुँचाने ,समझाने की कोशिश हमेशा जारी रहेगी।
इति
वीणा साधिका
राधिका

9 comments:

  1. नव वर्ष की आप और आपके परिवार को हार्दिक शुभकामनाएं !!!नया साल आप सब के जीवन मै खुब खुशियां ले कर आये,ओर पुरे विश्चव मै शातिं ले कर आये.
    धन्यवाद

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  2. nav warsh ki haardik subhkaamnaaye...

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  3. आपको, आपके परिवारजनों और मित्रों को नव-वर्ष की शुभकामनाएं!

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  4. राधिका जी इस प्रयास के लिये बहुत आभार और नव वर्ष मँगलमय हो !
    - स स्नेह,
    -लावण्या

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  5. shastriya sangeet par lekh ke liye dhanyawaad..nav varsh ki haardik shubhkaamnaye..

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  6. सुर-ताल का संगम बना रहे नए साल में।
    समरस होना ही है उत्सवधर्मिता , सो नित्य बनी रहे।
    शुभकामनाएं...

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  7. आपके जीवन में नववर्ष -२००९ सारी खुशियाँ लाये.

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  8. Your blog is dedicated to classical music of India, thanks for promotion it and stay motivated and keep going...

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