कुछ अनुमान लगाया आपने ?चलिए मैं ही बता देती हूँ मैं बात कर रही हूँ ,सितार की । सितार जिसके तारो को छेड़ते ही ह्रदय में संगीत की स्वर लहरिया हिलोले लेने लगती हैं ,जो मुझे बचपन से अतिप्रिय हैं ।
१८ वी और १९ वी शताब्दी में सितार के कई महान कलाकार हुए ,पहले की सितारे या तो आकार में बड़ी होती थी या छोटी । आज की तरह मध्यम आकार की सितारे तब नही होती थी ,समय के साथ साथ सितार का विकास हुआ,उसका स्वरूप बदला साथ ही साथ उस पर बजायी जाने वाली वादन सामग्री परिवर्धित हुई । अब उदाहरण के लिए पहले बड़ी सितारों पर सिर्फ़ आलाप, जोड़, मिंड का काम ही होता था ,और छोटी सितारों पर द्रुतलय काम ,उस समय ऐसी कोई भी सितार नही थी जिस पर आलाप से लेकर तानो और झाला तक यानि धीमी लय से लेकर द्रुत लय तक का काम एक साथ किया जा सके.शाह सदारंग ने सितार पर बजायी जा सकने वाली पहली योग्य गत बनाई, उस्ताद मसीत खान साहब की बनाई मसीत खानी गते और उस्ताद राजा खां साहब की बनाई राजा खानी गते बड़ी लोकप्रिय हुई । मसीत खानी गत यानि विलंबित (धीमी )लय में बजने वाली गत ,और राजा खानी द्रुत लय में बजने वाली गत हुआ करती थी .जिस प्रकार गायन में बंदिश या ख्याल के सहारे राग या गायन का विस्तार होता हैं उसकी प्रकार वादन में गतो की सहायता से राग और वादन का विस्तार किया जाता हैं .उस्ताद इमदाद हुसैन खां साहब ने सितार में वादन के बारह अंगो का समावेश किया ,इस समय वादकों ने सितार के बाज को काफी विकसित किया ।चित्र में उस्ताद इमदाद हुसैन खां साहब सितार वादन करते हुए ।
सितार का एक पुराना चित्र भी दे रही हूँ ऐसी सितारे हमने भी बचपन में काफी देखि हैं ।
सितार की स्वर यात्रा में आज बस इतना ही ,अगली पोस्ट में सितार का विकास कैसे हुआ ,किन महान संगीतग्यो का योगदान इसमें रहा,और आज सितार की वादन शैली कितनी अधिक परिवर्धित्त हो गयी हैं आदि ।
लीजिये सुनिए स्वर्गीय उस्ताद इमदाद खान साहेब का सितार वादन, राग हैं खमाज ,यह एक बहुत ही दुर्लभ ,अप्राप्य रिकॉर्डिंग हैं ।
|
वाह वाह वाह .....राधिका जी....आनंद आगया सुनकर.........अत्यंत रोचक एवं जानकारीपरक इस आलेख के लिए आपका बहुत बहुत आभार.
ReplyDeleteआपसे निवेदन है कि कभी अपना बजाया हुआ भी ब्लॉग के इस माध्यम से सुनने का अवसर दीजिये न....
मेरे पिताजी सितार बजाया करते थे...उन्होंने पांच साल सितार शौकिया तौर पर सीखा ...जब भी उन्हें अपने काम से फुर्सत मिलती वो सितार बजाते...ये कोई तीस साल या उस से भी पुरानी बात होगी...तब से सितार के प्रति एक आकर्षण जागा जो अभी तक है...जयपुर के संगीत समारोह में जब भी कहीं सितार वादन होता मैं सुनने पहुँच जाता...कमाल का वाद्य है...सितार. शुक्रिया बहुत महत्व पूर्ण जानकारी देने के लिए.
ReplyDeleteनीरज
RAADHIKA JI BAHOT HI KHUBSURAT AUR ROCHAK JAANKAARI DI AAPNE MAN MUGDH HO GAYAA .... BAHOT BAHOT BADHAAYEE IS RACHANAA KE LIYE..
ReplyDeleteARSH
बहुत आभार इस आलेख के लिए. बहुत आनन्द आ गया.
ReplyDeleteसितार के बादे में सुंदर जानकारी के लिए आभार.
ReplyDeleteबादे=बारे ...भूलसुधार
ReplyDeletewah
ReplyDeletebhut achhi jankari sitar ke bare me
ReplyDeleteabhar
बिलकुल सही कहा आपने। नाम ही काफी है।
ReplyDelete............
ब्लॉग के लिए ज़रूरी चीजें!