एक ८-१० साल की लड़की ब्लेक एंड व्हाइट टीवी देख रही हैं,अभी कुछ ही दिनों पहले उसके घर टीवी आया हैं ,दूरदर्शन के राष्ट्रीय चेनल पर गाना आ रहा हैं बजे, बजे सरगम बजे हर तरफ़ से सरगम बजे .........वह साथ गुनगुना रही हैं । अचानक आवाज आती हैं राधिका ...
मैं सालो की दुरिया कई क्षणों में तय करके वापस अपने घर, अपने आज में लौट आती हूँ ,पतिदेव मुझसे कह रहे हैं ,कितना अच्छा गाना हैं यह देस राग का । दूरदर्शन का नेशनल नेटवर्क आज कितने महीनो ...नही सालो बाद हमारे घर लगाया हुआ हैं ,पतिदेव की टीवी में लगातार चेनल बदलने की आदत ने आज वह गीत सुनवा दिया जो बरसो पहले हर घर में हर भारतीय की जुबान पर होता था ,जिसे गुनगुनाना हर व्यक्ति को पसंद था । वह गीत जो अतुल्य हैं ,अविस्मरणीय हैं ,अद्वितीय हैं ।
आज जब टीवी चेनलो की भीड़ में दूरदर्शन की वह सादगी ढूंढने जाते हैं तो कहीं नही मिलती ,मिलते हैं तो कभी उल्ट पुलट कहानियो पर आधारित अटपटे से धारावाहिक जो दिन में से दस बार दोहराए जाते हैं या अजीबोगरीब रियलिटी शोस जो वास्तविकता से बहुत दूर, बनावटी और दिखावटी होते हैं । दिन भर गीत गुंजाने वाले चेनलो में से एक भी चेनल पर ,एक भी गीत ऐसा नही आता जिसकी तुलना बजे सरगम या मिले सुर मेरा तुम्हारा गीत से की जाए ।
इन गीतों की बात ही अलग थी ,सुंदर सुरीले,सुस्वरबद्ध । इनके संगीत संयोजन की तो जितनी तारीफ की जाए कम हैं ,इतने वाद्य इतने वादक,इतने गायक और उनका गायन। पर कहीं भी गीत की कड़ी अलग नही होती ,हर शब्द अपने आप में अर्थ पूर्ण और भावः पूर्ण,लय का ,स्वर का सुगतीमय उतार चढाव और बेहतरीन पिक्चराइज़ेशन । तभी तो आज इस युग में जहाँ स्वर युक्त ,श्रुति मधुर गीत सुनने को कान तरस जाते हैं वही यह दोनों गीत अपनी गरिमा और स्वयं के प्रति भारतीय जनमानस के लगाव को बनाये हुए हैं ।
आज इतने चेनल हैं इतने एफएम रेडियो चेनल हैं ,पर कौनसे चेनल ने भारतीय संगीत को सम्मान और स्थान दिया हैं ?हर चेनल बस पैसा कमाने की दौड़ में शामिल हैं ,भारतीय संस्कृति ,सभ्यता ,संगीत इन सबसे किसी भी चेनल का कोई लेना देना नही हैं ।आज भी भारतीय संगीत को जो थोड़ा सा आश्रय मिल रहा हैं वह दूरदर्शन के चेनल्स पर या ऑल इंडिया रेडियो पर । हाँ वर्ल्ड स्पेस का " गंधर्व" चेनल भारतीय संगीत प्रेमियों के लिए आशा की सुनहली किरण हैं ।
जो भी हो अगर दूरदर्शन आज भी अपने प्रसारण ,प्रसारण सामग्री अधिक उन्नत करे तो वह भी लोगो के दिलो पर पुनः छा सकता हैं ,ऐसा मैं विश्वास से कह सकती हूँ ,क्योकि भारतीय संस्कृति को सहेजने वाले दूरदर्शन को उन लोगो का सहयोग हमेशा मिलेगा जी अपनी भारतीयता पर गर्व हैं । आख़िर वह देश भी जहाँ दूरदर्शन का राज हुआ करता था हमारा ही था, भले ही समय आगे बढ़ गया हो वह आज भी हमारा देस ही हैं ।
लीजिये सुनिए गीत "बजे सरगम हर तरफ से "....
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बहुत ख़ूबसूरत नग़मा है, मेरा पसंदीदा है
ReplyDeleteबहुत अच्छा गीत सुनाया.....
ReplyDeleteविषय का विवेचन अच्छा किया है । बहुत अच्छा लिखा है आपने ।
ReplyDeletehttp://www.ashokvichar.blogspot.com
राधिका जी आप का ब्लॉग इतना सुंदर है की यहाँ आ कर सारे अवसाद दूर हो जाते हैं...रही सही कसर आप की लेखनी और संगीत कर देता है...आपने सच कहा...दिल को राहत पहुँचने वाला सुमुधुर शास्त्रीय संगीत भूले भटके अगर कहीं सुनाई देता है तो दूरदर्शन पर ही...क्यूँ हमारे देश में एक भी ऐसा चेनल नहीं है जो संगीत रसिकों को २४ घंटे शुद्ध शास्त्रीय गायन वादन सुनवाये? पैसा कमाने में लगे चेनलों को नुक्सान में जाने का डर है या संगीत की समझ नहीं है...मेरा मानना है की अगर कोई ऐसा चेनल शुरू हो तो दर्शकों की संख्या लाखों में होगी...
ReplyDeleteगन्धर्व का जिक्र आपने खूब किया मेरे घर वर्ल्ड स्पेस के सिर्फ़ दो चेनलस में से एक फ़रिश्ता या गन्धर्व हमेशा बजते मिलेंगे...
नीरज
आपके द्बारा किया जा रहा प्रयास अनुकरणीय है राधिका जी.
ReplyDelete- विजय
दूरदर्शन और आकाशवाणी की opening tune भी कितनी सुरीली होती थीं. अब तो शायद बजती ही नहीं हैं. सिर्फ़ संगीत ही नहीं, धारावाहिक और नाटक भी ऐसे थे कि आज लोग उनके लिए मारे मारे फ़िर रहे हैं. मगर दूरदर्शन जैसे चैनल्स की किस्मत होती है कि वे कल्ट बनकर ही रह जाएँ.
ReplyDeleteबहुत ही अच्छा प्रयास. दूरदर्शन के अलावा आपके ब्लोग पर ये महत सेवा जारी रहे ये ईश से प्रार्थना.
ReplyDeleteआपके अगले पोस्ट की प्रतिक्षा में...
ReplyDeleteसुंदर एवं रमणीय रचना
ReplyDeleteits an awesome blog which is a testimony of your dedication towards the art of music simply superb...
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