नाटक शब्द से हम सभी परिचित हैं ,मराठी नाटक,हिन्दी नाटक ,गुजराती नाटक ,बंगाली नाटक,तमिल नाटक और नन्हे मुन्ने बच्चो का शरारत और मासूमियत से भरा नाटक । लेकिन क्या आपने महानाटक भी सुना हैं ,शयद आप सोचेंगे बहुत बडा नाटक यानि महानाटक ...जी नही मैं यहाँ जिस महानाटक की बात कर रही हूँ वह शास्त्रीय संगीत का महानाटक हैं ,लेकिन दक्षिण भारतीय शास्त्रीय संगीत का । चौक गए न !यह कुछ समझ नही आ रहा न ?
आप में से शायद ही कोई होगा जिसने सरस्वती वीणा का नाम नही सुना होगा ,पर क्या आप जानते हैं की दक्षिण भारतीय शास्त्रीय संगीत में एक अन्य वीणा प्रचार में हैं जिसे महानाटक वीणा भी कहा गया हैं , इस वीणा का प्रचार में नाम हैं गोट्टूवाद्यम् ,अब जब आप मेरे ब्लॉग के पाठक हैं तो आपके लिए विचित्र वीणा शब्द अपरिचित तो हैं ही नही,बस विचित्र वीणा की तरह ही सारिका याने परदे विहीन वाद्य हैं गोट्टू वाद्यम् ,हलाकि दोनों वाद्य एक दुसरे से कई बातों में अलग हैं ।देखिये प्रथम चित्र गोट्टू वाद्यम्
गोट्टू वाद्यम् नाम तमिल भाषा का हैं , तमिल में लकडी की छड़ी को कोडु कहा जाता हैं ,कोडु वाद्यम् को ही गोट्टूवाद्यम् नाम मिला ,इस वाद्य को तारो पर लकडी के टुकड़े कों दबाकर बजाया जाता हैं । अमरावती की मूर्तियों में भी वाद्यों को लकड़ी के टुकडो से बजाते हुए बताया गया हैं ,जेनकन नमक जापानी वाद्य भी लकड़ी के टुकड़े को तारो पर सरकाकर ही बजाया जाता हैं मत यह भी हैं की प्राचीन एकतन्त्री वीणा का ही परिष्कृत रूप दक्षिण भारतीय गोट्टू वाद्यम् या महानाटक वीणा हैं । एक ही लड़की का बना गोट्टू वाद्यम् इक्ड्न्डा गोट्टू वाद्यम् कहा जाता हैं ,लेकिन अगर इस वाद्य में तुम्बा अलग लकडी का बना हो और बाकी भाग एक ही लकड़ी का बना हो तो उसे एकडांडी गोट्टू वाद्यम् कहते हैं ,साधारण गोट्टू वाद्यम् में तुम्बा,दांडी,सरोकी अलग अलग लकड़ी के बने होते हैं ,और एक होता हैं "तरफ़दार गोट्टू वाद्यम्" तरफ याने मुख्य तारो के नीचे की तरफ़ लगे बारीक़ तार जो प्रतिध्वनी उत्पन्न करते हैं।
देखिये द्वितीय चित्र :विचित्र वीणा वादन करती हुई राधिका बुधकर , चित्र में दर्शाई गई मेरी विचित्र वीणा
कहने वाले कहते हैं की उत्तर भारतीय विचित्र वीणा नया वाद्य हैं पर मैं इस तर्क से असहमत हूँ ,जैसा की गोट्टू वाद्यम् के संबंध में मैंने बताया की "एक मतानुसार यह एकतन्त्री वीणा का ही परिष्कृत रूप हैं ",ठीक वही बात मैं विचित्र वीणा के बारे में भी कहूँगी ,एकतंत्री वीणा वह वीणा थी जिस में सिर्फ़ एक ही तंत्री याने तार हुआ करता था और उसे भी इसी प्रकार पत्थर से बजाते थे जैसे हम विचित्र वीणा को बजाते हैं ,सितार का विकास बहुत बाद में हुआ,पहले अत्यन्त प्राचीन कल में जब नए नए वाद्य बने होंगे तो मनुष्य ने कुदरती पत्थर से घिस कर वाद्यों को बजाने का प्रयत्न किया होगा इसलिए मैं मानती हूँ की विचित्र वीणा यह बहुत ही ,प्राचीन वाद्य हैं ,बस मध्य काल मैं यह वाद्य विलुप्त सा हो गया होगा . विचित्र वीणा बहुत बडा वाद्य हैं आपने सितार तो देखी ही होगी उस पर पीतल या धातु के परदे आडे लगे हुए भी देखे होंगे देखे चित्र
अब विचित्र वीणा पर यह परदे होते नही ,वास्तव में ये परदे हमें स्वरों का अंदाज़ देते हैं याने वाद्य पर कौनसा स्वर कहाँ आ रहा हैं ये बताते हैं,गोट्टू वाद्यम् हो या विचित्र वीणा दोनों में यह परदे नही होने के कारण ये वाद्य बजाना बहुत कठिन हो जाता हैं ,साथ ही इन दोनों वाद्यों को उंगलियों से नही, गोट्टू वाद्यम् तो लकड़ी यानि कोडु और कांच के गट्टे से भी बजाया जाता हैं ,पर विचित्र वीणा या तो कांच के गट्टे से या मैं इसे शालिग्राम शीला से बजाती हूँ ,बजाया जाता हैं ।विचित्र वीणा और गोट्टू वाद्यम् के संबंध में एक मजेदार तथ्य यह भी हैं की जहाँ हम विचित्र वीणा बजाते हैं ,दक्षिण भारतीय चित्र वीणा बजाते हैं ,जी हाँ गोट्टू वाद्यम् का एक नाम चित्र वीणा भी हैं । तो हुआ न हमारा शास्त्रीय संगीत चित्र विचित्र । किंतु सुरीला और मधुर चाहे वह उत्तर भारतीय हो या दक्षिण भारतीय । वीणाओ की बात भी ले तो भी, हैं तो वीणा भारतीय ही । काफी समय से कई पाठक चाहते थे की मेरा विचित्र वीणावादन मैं अपने ब्लॉग पर दू, तो लीजिये आज सुनिए मैंने विचित्र वीणा पर बजाई राग कीरवाणी में धुन ।
बहुत सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDelete---आपका हार्दिक स्वागत है
चाँद, बादल और शाम
अच्छी जानकारी दी....आपके द्वारा बजायी गयी बजाई राग कीरवाणी में धुन भी अच्छी लगी।
ReplyDeleteजानकारीपूर्ण आलेख.
ReplyDeleteवीणा की जानकारी देने के लिए आपको बहुत-बहुत धन्यवाद । शास्त्रीय संगीत किसके दिल को नही भाता है । संगीत की सरिता तो यही से बहती है । शुक्रिया
ReplyDeleteइतनी तकनीकी जानकारियां सहेज पाना मेरे लिए तो बडा ही मुश्किल काम होगा। मैं तो इतने मे ही तृप्त हूं कि 'महानाटक' किसी वीणा का भी नाम होता है।
ReplyDeleteक्या बात है राधिका। वाह! बहुत सुदर बजाती हो।
ReplyDeleteफिर टिप्पणी करने से तरोक नहीं पा रही अपने आप को। बहुत ही सुंदर। मंजी हुई कलाकार हो तुम तो। बहुत सुंदर। वाह! तुम्हें आपत्ति न हो तो इसका सी.डी बर्न कर लूँ मैं?
ReplyDeleteji manoshi yah cd bazar me uplabdh hain .
ReplyDeleteअहोभाग्य!!! पहली बार विचित्रवीणा सुनाने को मिली. शायद पहले भी सुनी हो मगर अज्ञान इतना बड़ा है कि फर्क करना मुश्किल है.
ReplyDeletenice very nice because we use which western instruments like guitar or anoter like drums so somebody understands these are from basicly foreigners while theser become outers due to our ignorances plz savt our heritage and like this all things those are gradualy going out of context....plz
ReplyDeleteवाह वाह वाह आपकी संगीत के प्रति रुचि और आपका उसे प्रस्तुत करने का अंदाज़। बधाई बढिया ब्लॉग के लिए
ReplyDeleteआपके ब्लॉग पर आकर सुखद अनुभूति हुयी.इस गणतंत्र दिवस पर यह हार्दिक शुभकामना और विश्वास कि आपकी सृजनधर्मिता यूँ ही नित आगे बढती रहे. इस पर्व पर "शब्द शिखर'' पर मेरे आलेख "लोक चेतना में स्वाधीनता की लय'' का अवलोकन करें और यदि पसंद आये तो दो शब्दों की अपेक्षा.....!!!
ReplyDeleteवाह! वाह! बहुत सुदर!
ReplyDeleteNice Blog..keep it up.
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वाह वाह...
ReplyDeleteबहुत मधुर है.
जैसा मैंने पहले कहा, मुझे राग का ज्ञान नहीं है.
पर ये सचमुच संगीत है..
बधाई हो इस सुन्दर प्रस्तुति पर.
जयंत