7/28/2009

वक़्त के संग चलते चलते .........

समय के साथ चलने के लिए कई बार इंसान को बदलना पड़ता ,पुराने विचारो के साथ नए विचारो का सामंजस्य कुछ इस तरह से बिठाना पड़ता हैं की पुराने संस्कारो का भी आदर हो और नए विचारो का भी स्वागत । बात सिर्फ़ इंसान के बदलने की ही नही हैं .समय के साथ स्वयं को बनाये रखने के सभी को बदलना पड़ता हैं चाहे वे फ़िर वाद्य ही क्यो नही हो .हम पिछली पोस्ट में बात कर रहे थे सितार की ,सितार जिसने समय के साथ स्वयं को बदल कर आज अन्य वाद्यों के समक्ष एक कड़ी चुनौती प्रस्तुत की हैं ।

7/24/2009

नाम ही काफी हैं ..

कहते हैं नाम में क्या रखा हैं ,पर अगर किसीका नाम ही उसकी पहचान के लिए काफी हो तो?नही मैं न तो किसी दैवीय अवतार की बात कर रही हूँ नही किसी महान कलाकार की । मैं जिसकी बात कर रही हूँ उसने बड़े ही कम समय में केलोकप्रियता के वह आयाम छु लिए हैं जिसे पाने के लिए अच्छे अच्छे तरस जाते हैं । जिसकी आवाज़ की मधुरता के कारण न जाने कितनो ने इसे चाहा हैं,जिसके सुरों ने शायद ही किसी इन्सान को भावविभोर न किया हो।जिसे चाहने वालो की संख्या की गिनती करना असंभव हो और जो देश में ही नही विदेशो में भी छा

कुछ अनुमान लगाया आपने ?चलिए मैं ही बता देती हूँ मैं बात कर रही हूँ ,सितार की । सितार जिसके तारो को छेड़ते ही ह्रदय में संगीत की स्वर लहरिया हिलोले लेने लगती हैं ,जो मुझे बचपन से अतिप्रिय हैं




१८ वी और १९ वी शताब्दी में सितार के कई महान कलाकार हुए ,पहले की सितारे या तो आकार में बड़ी होती थी या छोटी । आज की तरह मध्यम आकार की सितारे तब नही होती थी ,समय के साथ साथ सितार का विकास हुआ,उसका स्वरूप बदला साथ ही साथ उस पर बजायी जाने वाली वादन सामग्री परिवर्धित हुई । अब उदाहरण के लिए पहले बड़ी सितारों पर सिर्फ़ आलाप, जोड़, मिंड का काम ही होता था ,और छोटी सितारों पर द्रुतलय काम ,उस समय ऐसी कोई भी सितार नही थी जिस पर आलाप से लेकर तानो और झाला तक यानि धीमी लय से लेकर द्रुत लय तक का काम एक साथ किया जा सके.शाह सदारंग ने सितार पर बजायी जा सकने वाली पहली योग्य गत बनाई, उस्ताद मसीत खान साहब की बनाई मसीत खानी गते और उस्ताद राजा खां साहब की बनाई राजा खानी गते बड़ी लोकप्रिय हुई । मसीत खानी गत यानि विलंबित (धीमी )लय में बजने वाली गत ,और राजा खानी द्रुत लय में बजने वाली गत हुआ करती थी .जिस प्रकार गायन में बंदिश या ख्याल के सहारे राग या गायन का विस्तार होता हैं उसकी प्रकार वादन में गतो की सहायता से राग और वादन का विस्तार किया जाता हैं .उस्ताद इमदाद हुसैन खां साहब ने सितार में वादन के बारह अंगो का समावेश किया ,इस समय वादकों ने सितार के बाज को काफी विकसित किया ।चित्र में उस्ताद इमदाद हुसैन खां साहब सितार वादन करते हुए



सितार का एक पुराना चित्र भी दे रही हूँ ऐसी सितारे हमने भी बचपन में काफी देखि हैं



सितार की स्वर यात्रा में आज बस इतना ही ,अगली पोस्ट में सितार का विकास कैसे हुआ ,किन महान संगीतग्यो का योगदान इसमें रहा,और आज सितार की वादन शैली कितनी अधिक परिवर्धित्त हो गयी हैं आदि ।
लीजिये सुनिए स्वर्गीय उस्ताद इमदाद खान साहेब का सितार वादन, राग हैं खमाज ,यह एक बहुत ही दुर्लभ ,अप्राप्य रिकॉर्डिंग हैं ।
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7/21/2009

शत शत नमन ..


किराना घराने की महान गायिका आदरणीय गंगुबाई हंगल जी का आज निधन हो गया उन्हें शत शत नमन

उनके पुण्य स्मरण स्वरुप प्रस्तुत हैं उनके गायन की रीकोर्डरिंग्स ....

राग कलावती

7/09/2009

कभी सुना हैं इंटरनेटीय संगीत ?

सभी संगीतकार मानते हैं संगीत ईश्वर की तरह यत्र तत्र सर्वत्र हैं,झरने की झर झर में ,चिडियों की ची ची में,हवा की गति में ,बारिश की रिमझिम में,सृष्टि के कण कण में संगीत का वास हैं,संगीत उत्त्पत्ति काल से लेकर ,मंदिरों से निकल कर,दरबारों से निकल कर ,सर्वसाधारण मनुष्य तक पंहुचा,युग बदला . २० वे शतक में संगीत ग्रामोफोन (Gramophone),रेकॉर्ड्स ,सिडी (c.d)और फ़िर कम्प्यूटर (computer )तक पहुँचा । पहले संगीत प्रेमी मिलों पैदल चल कर एक गाँव से दुसरे गाँव संगीत सुनने जाते थे ,वे अब अपने ही शहर ,गाँव में बैठे बैठे ,) टीवी (T.V),और म्यूजिक प्लेयर (music player )पर संगीत सुनने लगे । २० वे शतक के उत्तरार्ध में विश्व में क्रन्तिकारी तकनिकी विकास हुआ ,और इस विकास का सशक्त स्वरूप सामने आया इंटरनेट के रूप में ।

पहले घर में दो चार घंटे अकेले रहना यानि या तो किताबो का साथ या टीवी के शौकीनों के लिए धारावाहिकों का । लेकिन क्या कभी किसी ने सोचा था की कुछ सालो बाद हम सब घर में रहकर भी पुरे विश्व से कुछ इस कदर जुड़ जायेंगे,जैसे पुरा विश्व हमारे साथ हमारे घर में ,हमारे आँगन में बस रहा हो ?"वसुधैव कुटुम्बकम " का स्वप्न इंटरनेट के कारण एक आज सत्य हो पाया हैं ।

हाँ तो बात हो रही थी कला और कलाकारों की ,संगीत और संगीतकारो की ,कला प्रेमियों की संगीत प्रेमियों की । शिक्षण के क्षेत्र में इंटरनेट ने जहाँ अहम् भूमिका निभाई हैं वहां कला और संगीत के क्षेत्र में भी । गूगल पर इंडियन क्लास्सिकल म्यूजिक (indian classical music )डाला और सर्च बटन पर क्लिक किया की हजारो साइट्स जो भारतीय संगीत से संबंध रखती हैं सामने आ जाती हैं .कुछ संगीतकारों की अपनी साइट्स ,कुछ हिन्दी गीतों को समर्पित साइट्स ,कुछ विशुद्ध भारतीय शास्त्रीय संगीत को समर्पित जिनमे संगीतकारों का संगीत सुनने के लिए ,डाउनलोड करने के लिए सहज उपलब्ध होता हैं । इस प्रगति के साथ ही एक बड़ी प्रगति उन साइट्स के रूप में सामने आई हैं जो शास्त्रीय संगीत का शिक्षण देती हैं । संगीत संस्थानों के साथ ही कुछ कलाकारों ने भी अपनी इसी ही साइट्स बने हैं । ब्लॉग तो इंटरनेट का वरदान हैं,संगीत प्रेमी ,संगीतकार इस मध्यम के जरिये अपने विचार श्रोताओ ,संगीत रसिको तक पहुँचा रहे हैं ।

कुछ दिन पहले पुणे में अंडरस्कोर रेकॉर्ड्स द्वारा एक सेमिनार का आयोजन किया गया ,जिसका विषय था संगीत आपका संगत इंटरनेट की । वहां आमंत्रित कलाकारों,अपनी स्वयं की वेबसाइट्स रखने वाले संगीत प्रेमियों,वाद्य निर्माताओ ने इस विषय में अपने विचार वयक्त किए ,इस विषय पर गहन चर्चा हुई की इंटरनेट के द्वारा संगीत की शिक्षा कैसे दी जा सकती हैं ,संगीत को अधिक से अधिक श्रोताओ तक कैसे पहुचाया जा सकता हैं ,इंटरनेट पर संगीत जगत को अधिक समृद्ध कैसे किया जा सकता हैं ,विषय नया था ,दिलचस्प भी था। काफी नई बातें सामने आई । आख़िर समय के साथ ताल मिलकर चलने के लिए संगीत को भी अपनी गति द्रुत करनी होगी और अपना सुर नए विश्व के सुर से मिलाना होगा ।

सुर ताल की संगती करती यह कुछ साइट्स :

http://www.shadjamadhyam.com/ पर जहाँ ऑनलाइन संगीत की शिक्षा दी जाती हैं वहीं http://www.parrikar.org/ पर महान शास्त्रीय संगीत गायकों का संगीत(Archiv music ) सुनने के लिए सहज उपलब्ध हैं । http://www.musicindiaonline.com/ से तो काफी संगीत प्रेमी परिचित हैं । राजीव जी का यह पेज,पुराने गायकों का संगीत, जो ७८ rpm के युग में रिकॉर्ड हुआ था उपलब्ध करवा कार हमें पुराने शास्त्रीय संगीत गायकों के संगीत से परिचित करवाता हैं : http://courses.nus.edu.sg/course/ellpatke/Miscellany/music.htm .आदरणीय शुभा मुद्गल जी का यह ब्लॉग http://www.shubhamudgal.com/ संगीत जगत के कई विचारणीय मुद्दों से हमारा परिचय करवाता हैं और हमारी जानकारी बढ़ाता हैं । http://sarod.com पर हम उस्ताद अमज़द अली खान साहेब के विषय में जहाँ काफी कुछ जान सकते हैं वहीं उनके सरोद वादन के कुछ अंश देख भी सकते हैं । http://homepage.mac.com/patrickmoutal/macmoutal/rag.html इस पेज पर भी आप बहुत अच्छा संगीत सुन सकते हैं .

कुछ वाद्य निर्माताओ की भी अपनी साइट्स हैं जहाँ आप और हम संगीत वाद्यों की ऑनलाइन शॉपिंग कर सकते हैं जैसे http://www.rikhiram.org/

तो भारतीय संगीत अब इंटरनेटीय संगीत हो रहा हैं ,मुझे तो यही लगता हैं की यह इंटरनेटीय संगीत भारतीय संगीत का हाथ थाम उसे महान ऊँचाइयों तक ले जाएगा ।

इति
वीणा साधिका
राधिका